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August 27, 2025

मीडिया की स्वतंत्रता बनाम पीड़ित की गरिमा । यौन अपराध मामलों में पहचान उजागर करना: कब अपराध, कब अपवाद । Advocate Rahul Goswami

 

मीडिया की स्वतंत्रता बनाम पीड़ित की गरिमा । यौन अपराध मामलों में पहचान उजागर करना: कब अपराध, कब अपवाद । Advocate Rahul Goswami

⚖️ यौन अपराध मामलों में पहचान उजागर करना: कब अपराध, कब अपवाद
Section 72 (BNS),
  

उपधारा (1): अगर कोई व्यक्ति किसी पीड़ित ( जिसके साथ यौन अपराध, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, बच्चों पर अपराध हुआ) की पहचान छापता है या प्रकाशित करता है जैसे पीड़ित का नाम, फोटो, पता, स्कूल, ऑफिस, रिश्तेदार, या कोई भी ऐसी जानकारी जिससे पीड़ित की पहचान उजागर हो सकती है, तो ऐसा करना दंडनीय अपराध होगा। Section 72 (1) BNS 


⚖️ दंड:


कैद: अधिकतम 2 वर्ष (कठोर या साधारण)


जुर्माना: न्यायालय तय करेगा

या दोनों हो सकते हैं।




 

⚖️ अपवाद (exceptions)
Section 72 (2) BNS 
 

नीचे बताए गए मामलों में पीड़ित की पहचान प्रकाशित की जा सकती है:


(a) अगर थाने का प्रभारी अधिकारी या जांच करने वाला पुलिस अधिकारी लिखित आदेश देकर अच्छी नीयत (good faith) से जांच के उद्देश्य से जानकारी प्रकाशित करने की अनुमति देता है।


(b) अगर स्वयं पीड़ित लिखित में अनुमति देता है कि उसकी पहचान प्रकाशित की जा सकती है।


(c) अगर पीड़ित की मृत्यु हो गई है, या वह बच्चा है, या मानसिक रूप से अस्वस्थ है, तो उसके निकट संबंधी (next of kin) लिखित में अनुमति दे सकते हैं।



लेकिन, शर्त:


निकट संबंधी केवल मान्यता प्राप्त सामाजिक कल्याण संस्थान के अध्यक्ष या सचिव को ही अनुमति दे सकते हैं।


कोई अन्य व्यक्ति या संगठन सीधे अनुमति नहीं ले सकता।




उदाहरण 1:


किसी लड़की के साथ बलात्कार हुआ है। अगर कोई अखबार, वेबसाइट, यूट्यूब चैनल, या सोशल मीडिया उसकी तस्वीर या नाम प्रकाशित करता है, तो वह धारा 72(1) के तहत अपराध है।


उदाहरण 2:

अगर पीड़ित स्वयं वीडियो में आकर अपना नाम बताना चाहती है, और वह लिखित में अनुमति देती है, तो यह धारा 72(2)(b) के तहत वैध होगा।


उदाहरण 3:

अगर पुलिस जांच के दौरान जानकारी सार्वजनिक करना चाहती है, तो वह धारा 72(2)(a) के तहत लिखित आदेश जारी कर सकती है।



August 26, 2025

गैंग रेप के मामलों में सख्त और स्पष्ट नियम । सजा । BNS SECTION 70 ।

 
गैंग रेप के मामलों में सख्त और स्पष्ट नियम । सजा । BNS SECTION 70 ।BNS SECTION 70 । #Advocate_Rahul_Goswami_Gonda

“भारत में महिलाओं की सुरक्षा संवैधानिक और कानूनी रूप से सबसे बड़ी प्राथमिकता है। हाल ही में Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS), 2023 ने गैंग रेप के मामलों में सख्त और स्पष्ट नियम लागू किए हैं, जो समाज को एक मजबूत संदेश देते हैं कि महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन सहन नहीं किया जाएगा।”


⚖️ वयस्क महिलाओं के साथ गैंग रेप
Section 70 (1) BNS


यदि किसी महिला के साथ एक या अधिक लोगों का समूह बलात्कार करता है, या सभी आरोपी साझी मंशा (common intention) के तहत अपराध करते हैं, तो समूह का हर सदस्य अपराधी माना जाएगा।


⚖️ सजा:


कम से कम 20 साल का कठोर कारावास,

अधिकतम आजीवन कारावास, यानी पूरा जीवन जेल में बिताना।

इसके अलावा जुर्माना भी लगेगा।



⚖️ जुर्माने की विशेष शर्तें:


यह “न्यायपूर्ण और उचित” होना चाहिए।

पीड़िता के चिकित्सा खर्च और पुनर्वास के लिए इस्तेमाल होगा।

जुर्माना सीधे पीड़िता को दिया जाएगा।



⚖️ 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के साथ गैंग रेप
section 70 (2) BNS


  

यदि पीड़िता अल्पवयस्क (18 साल से कम) है, और अपराध समूह या साझा मंशा के तहत हुआ है, तो हर आरोपी को बलात्कार का अपराधी माना जाएगा।




⚖️ सजा:


आजीवन कारावास, या मृत्यु दंड, इसके साथ जुर्माना, जो पीड़िता के चिकित्सा और पुनर्वास के लिए दिया जाएगा।



 संदेश: कानून ने स्पष्ट कर दिया कि किसी भी समूह द्वारा किए गए अपराध में सभी आरोपी जिम्मेदार होंगे, और न्याय पीड़िता के पक्ष में सुनिश्चित होगा। 

बच्चों के खिलाफ अपराधों को सबसे गंभीर अपराध माना है। यह सख्त दंड और जुर्माना सुनिश्चित करता है कि समाज में इस तरह की हरकतों पर कड़ा रोक लगे।




August 19, 2025

झूठे वादे या धोखे से संबंध बनाना अपराध , धारा 69 BNS , धोखे से बनाए गए शारीरिक संबंध की सज़ा


झूठे वादे या धोखे से संबंध बनाना अपराध है । धारा 69 BNS , धोखे से बनाए गए शारीरिक संबंध की सज़ा #Advocate_Rahul_Goswami




⚖️ धारा 69 : धोखे से बनाए गए शारीरिक संबंध की सज़ा


यदि कोई पुरुष किसी महिला के साथ धोखे या झूठे वादे (जैसे शादी का वादा करने पर भी वास्तव में शादी का इरादा न होना) के आधार पर शारीरिक संबंध स्थापित करता है, और यह संबंध बलात्कार की परिभाषा में नहीं आता, तब भी इसे अपराध माना जाएगा।




⚖️ ✅ सज़ा

ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की कैद (साधारण या कठोर) और जुर्माना दोनों हो सकते हैं।




⚖️ स्पष्टीकरण (Explanation):


 धोखे के साधन” (Deceitful Means) में शामिल हैं:


● झूठा वादा करके शादी का विश्वास दिलाना।


● नौकरी देने या पदोन्नति का झूठा लालच देना।


● अपनी पहचान (Identity) छुपाकर शादी करना।




➡️ सारांश:

महिला को बहकाकर, धोखा देकर या झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाना कानूनन अपराध है, भले ही इसे "बलात्कार" की श्रेणी में न रखा जाए।

August 18, 2025

अधिकार का दुरुपयोग और धारा 68

 



समाज में जब किसी व्यक्ति को अधिकार या जिम्मेदारी दी जाती है, तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह उसका सही उपयोग करेगा। लेकिन जब यही अधिकार किसी महिला को बहलाने, फुसलाने या दबाव डालने के लिए इस्तेमाल होता है, तब कानून सख्त हो जाता है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 68 इसी स्थिति को संबोधित करती है।




⚖️ अधिकार का दुरुपयोग और धारा 68



“Whoever, being in a position of authority or in a fiduciary relationship…”


धारा 68 कहती है कि यदि कोई व्यक्ति—


● अधिकार या विश्वास की स्थिति में है,


● सरकारी कर्मचारी है,


● जेल, रिमांड होम, महिला/बाल गृह का अधीक्षक या कर्मचारी है,


● या अस्पताल का प्रबंधक/स्टाफ है,


 और वह अपने पद या विश्वास का दुरुपयोग कर किसी महिला को यौन संबंध के लिए प्रेरित करता है, तो यह अपराध है।


⚠️ बलात्कार से अलग स्थिति:

➡ यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि यह अपराध बलात्कार (Section 63, BNS) की श्रेणी में नहीं आता।

➡ यहाँ संबंध जबरदस्ती बलपूर्वक नहीं होता, बल्कि पद, अधिकार या भरोसे का गलत फायदा उठाकर बनाया जाता है।





⚖️ सज़ा और दंड



कानून इस अपराध को गंभीर मानता है और इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान है:


●  न्यूनतम 5 साल की कैद (सख्त कैद)


●  अधिकतम 10 साल तक की कैद


●  साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा।




⚖️ स्पष्टीकरण (Explanations)



1. यौन संबंध वही है जो धारा 63 में बताया गया है।


2. सहमति (consent) से जुड़ी व्याख्या भी धारा 63 से लागू होगी।


3. "Superintendent" का मतलब सिर्फ अधीक्षक नहीं, बल्कि कोई भी अधिकारी होगा जो नियंत्रण रखता हो।


4. "अस्पताल" और "महिला/बाल गृह" की परिभाषा धारा 64(2) से ली जाएगी।




⚖️ उदाहरण


● जेल का अधीक्षक महिला कैदी को दबाव डालकर यौन संबंध बनाता है।


● डॉक्टर इलाज के बहाने मरीज से संबंध स्थापित करता है।


●  यदि कोई शिक्षक अपने पद/विश्वास का दुरुपयोग करके किसी छात्रा को यौन संबंध बनाने के लिए बहलाता, फुसलाता या दबाव डालता है ।


●  सरकारी कर्मचारी अपनी पद-शक्ति का इस्तेमाल कर महिला को बहलाता है।

August 17, 2025

बलात्कार के दौरान महिला की मृत्यु या वेजिटेटिव स्टेट ! सज़ा क्या होगी

बलात्कार के दौरान महिला की मृत्यु या वेजिटेटिव स्टेट ! सज़ा क्या होगी



 

⚖️ धारा 66 BNS – बलात्कार के दौरान महिला की मृत्यु या वेजिटेटिव स्टेट


अगर कोई व्यक्ति धारा 64(1) या 64(2) के अंतर्गत बलात्कार करता है और उस अपराध के दौरान महिला को ऐसी चोट पहुँचाता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है, या महिला Persistent Vegetative State (यानी कोमा जैसी स्थिति जिसमें महिला लंबे समय तक बेहोश, निर्जीव अवस्था में रहती है और सामान्य जीवन जीने में असमर्थ हो जाती है) में चली जाती है, तो ऐसे अपराधी को –


● कम से कम 20 वर्ष की कठोर कारावास होगी,


● जो बढ़ाकर आजीवन कारावास (पूरी प्राकृतिक जीवन भर जेल में रहना) तक हो सकती है,


● या फिर मृत्युदंड (Death Penalty) भी दिया जा सकता है।







⚖️ धारा 67 BNS – पत्नी से जबरन यौन संबंध (पति-पत्नी का अलग रहना)


👉 अगर कोई पति अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाता है, जबकि पत्नी उससे अलग रह रही हो (चाहे न्यायालय के आदेश से अलग रह रही हो या अपने स्तर पर), और पत्नी की सहमति न हो, तो पति को –


● कम से कम 2 साल की सजा,


● जो बढ़ाकर 7 साल तक की कैद हो सकती है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।






⚖️ स्पष्टीकरण (Explanation):


इस धारा में “यौन संबंध (sexual intercourse)” का अर्थ वही है जो धारा 63 में बताया गया है ।





⚠️ 📝 सरल शब्दों में:
धारा 66: अगर बलात्कार से महिला की मौत हो जाए या वह हमेशा के लिए बेहोशी/असहाय अवस्था में चली जाए 
→ सजा = 20 साल से लेकर फाँसी तक।


धारा 67: अगर पति अलग रह रही पत्नी से उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाए 

→ सजा = 2 से 7 साल तक + जुर्माना।


August 17, 2025

"नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार करने वालों को – उम्रकैद या फिर फाँसी।”

  
"नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार करने वालों को  –  उम्रकैद या फिर फाँसी।”



देश में अपराध की सबसे वीभत्स घटनाओं में से एक है – नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार। यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि पूरी मानवता के लिए शर्मनाक कलंक है। इसी गंभीर समस्या से निपटने के लिए भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 65 बनाई गई है।


📝 इस प्रावधान में नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार के मामलों में कानून ने अत्यधिक कठोर दंड का प्रावधान किया है ताकि ऐसे अपराधों पर सख्ती से रोक लगाई जा सके।





    Section 65 (1) BNS    


● यदि कोई व्यक्ति 16 वर्ष से कम आयु की महिला/लड़की के साथ बलात्कार करता है,


● उसे कम से कम 20 वर्ष का कठोर कारावास दिया जाएगा।


● यह सज़ा आजीवन कारावास तक बढ़ाई जा सकती है ( "आजीवन कारावास" का अर्थ है – उस व्यक्ति के जीवन की शेष प्राकृतिक आयु तक जेल में रहना।)


● साथ ही अपराधी को जुर्माने (fine) से भी दंडित किया जाएगा।


● यह जुर्माना पीड़िता के चिकित्सकीय खर्च व पुनर्वास (rehabilitation) के लिए न्यायसंगत और उचित होना चाहिए।


● यह जुर्माना सीधे पीड़िता को दिया जाएगा।






   विशेष परिस्थितियों में बलात्कार की सज़ा   

   Section 65 (2) BNS     


● यदि कोई व्यक्ति 12 वर्ष से कम आयु की महिला/लड़की के साथ बलात्कार करता है,


● उसे कम से कम 20 वर्ष का कठोर कारावास दिया जाएगा।


● यह सज़ा आजीवन कारावास (प्राकृतिक जीवन की शेष अवधि तक) या फिर मृत्युदंड तक हो सकती है।


● साथ ही अपराधी पर जुर्माना भी लगाया जाएगा।


● यह जुर्माना भी पीड़िता के चिकित्सा खर्च और पुनर्वास के लिए होना चाहिए।


● यह जुर्माना सीधे पीड़िता को ही दिया जाएगा।




⚖️ सरल शब्दों में समझें:


यदि पीड़िता 16 साल से कम है → सज़ा = 20 साल से लेकर उम्रकैद तक + जुर्माना (जो पीड़िता को मिलेगा)।


यदि पीड़िता 12 साल से कम है → सज़ा = 20 साल से लेकर उम्रकैद या मृत्युदंड तक + जुर्माना (जो पीड़िता को मिलेगा)।



August 15, 2025

बलात्कार के मामलों में सज़ा ! अधिकार और पद का दुरुपयोग करने वालों के लिए प्राकृतिक जीवनकाल तक की कैद

 

बलात्कार के मामलों में सज़ा ! अधिकार और पद का दुरुपयोग करने वालों के लिए प्राकृतिक जीवनकाल तक की कैद


  बलात्कार मामलों में सज़ा:    BNS की धारा 64 में आजीवन कारावास तक का प्रावधान


📜  महिलाओं के खिलाफ होने वाले गंभीर अपराधों पर सख़्त कार्रवाई के लिए भारतीय न्याय संहिता, 2023 में धारा 64 जोड़ी गई है। यह धारा बलात्कार के मामलों में सज़ा का प्रावधान करती है, जिसमें अपराध की प्रकृति के आधार पर कम से कम 10 साल का कठोर कारावास और अधिकतम प्राकृतिक जीवनकाल तक की कैद दी जा सकती है। साथ ही, दोषी को जुर्माना भी भरना होगा।




⚖️ साधारण मामलों में सज़ा


धारा 64(1) के तहत, यदि कोई व्यक्ति बलात्कार करता है और वह मामला विशेष श्रेणियों में नहीं आता, तो उसे 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा और जुर्माना हो सकता है।





⚖️ विशेष परिस्थितियों में और सख़्ती


धारा 64(2) में उन परिस्थितियों का उल्लेख है जहाँ अपराध और भी गंभीर माना जाएगा। इनमें शामिल हैं:


● पुलिस अधिकारी द्वारा थाने के परिसर में या हिरासत में बलात्कार


● लोक सेवक द्वारा अपनी हिरासत में महिला के साथ बलात्कार


● सशस्त्र बल का सदस्य सरकार द्वारा तैनात क्षेत्र में बलात्कार करे


● जेल, रिमांड होम, महिला/बाल संस्था के कर्मचारी या प्रबंधन द्वारा बलात्कार


● अस्पताल के स्टाफ या प्रबंधन द्वारा बलात्कार


● रिश्तेदार, अभिभावक, शिक्षक या विश्वास/अधिकार की स्थिति का दुरुपयोग


● गर्भवती महिला, मानसिक/शारीरिक रूप से अक्षम महिला या हिंसा के दौरान बलात्कार


● बलात्कार के दौरान गंभीर चोट, अंग-भंग, चेहरा बिगाड़ना या जान को खतरा


● एक ही महिला के साथ बार-बार बलात्कार


📜 इन मामलों में सज़ा कम से कम 10 साल और अधिकतम दोषी के जीवनकाल तक की कैद होगी, साथ में जुर्माना भी।




⚖️ उद्देश्य


📜 यह धारा अपराधियों पर सख़्त संदेश देती है कि बलात्कार, खासकर पद और अधिकार का दुरुपयोग कर किए गए अपराध, बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।




📝 निष्कर्ष (Conclusion):

धारा 64 का उद्देश्य महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। सरकार और न्यायपालिका का मानना है कि कड़ी सज़ा से ऐसे अपराधों पर रोक लगाने में मदद मिलेगी।

:

August 14, 2025

बलात्कार (Rape) के कानून पहले से कहीं अधिक व्यापक और सख्त

 



भारतीय न्याय संहिता, 2023’ ने बलात्कार (Rape) के कानून को पहले से कहीं अधिक व्यापक और सख्त बना दिया है। नई धारा 63 अब न केवल पारंपरिक यौन हिंसा के मामलों को बल्कि ऐसे सभी कृत्यों को कवर करती है जो महिला की इच्छा और गरिमा के खिलाफ हों।


⚖️ क्या बदला है?


पहले बलात्कार की परिभाषा मुख्य रूप से योनि में लिंग प्रवेश तक सीमित थी, लेकिन अब—


● मुख, गुदा, मूत्रमार्ग में भी लिंग प्रवेश,


● वस्तु या शरीर के अन्य भाग का प्रवेश,


● शरीर के किसी हिस्से से छेड़छाड़ कर प्रवेश कराना,


● मुख से यौन अंगों पर संपर्क,

—ये सभी परिस्थितियां बलात्कार के दायरे में आ गई हैं।



⚖️ कब मानेगा कानून ‘बलात्कार’?


कानून के मुताबिक, यह अपराध सात स्थितियों में माना जाएगा


1. महिला की इच्छा के विरुद्ध। 


2. बिना उसकी सहमति के।


3. डर या धमकी देकर सहमति लेना।


4. गलत पहचान (पति समझकर सहमति लेना)।


5. नशे या मानसिक असमर्थता में सहमति।


6. पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम हो।


7. जब वह सहमति व्यक्त करने में असमर्थ हो।



⚖️ सहमति की नई परिभाषा


● अब सहमति का मतलब है — महिला द्वारा स्पष्ट, स्वेच्छा और बिना किसी दबाव के किसी यौन क्रिया में भाग लेने की इच्छा जताना।


● सिर्फ यह कारण कि महिला ने शारीरिक विरोध नहीं किया, सहमति नहीं माना जाएगा।



⚖️ अपवाद (Exception)

चिकित्सीय प्रक्रिया बलात्कार नहीं मानी जाएगी।


पति-पत्नी के बीच यौन संबंध, बशर्ते पत्नी की उम्र 18 वर्ष से अधिक हो, बलात्कार नहीं है।


August 12, 2025

आपराधिक षड्यंत्र Criminal Conspiracy , अपराध की योजना और सहयोग

 

आपराधिक षड्यंत्र Criminal Conspiracy , अपराध की योजना और सहयोग Advocate Rahul Goswami


आपराधिक षड्यंत्र Criminal Conspiracy  का सिद्धांत इस धारणा पर आधारित है कि कई गंभीर अपराध योजना और सहयोग के बिना संभव नहीं होते।

Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 के Section 61 में इस अपराध का स्पष्ट प्रावधान है, जो पहले IPC की धारा 120A और 120B में था।



⚖️ कानूनी परिभाषा (Statutory Definition)


BNS के अनुसार – जब दो या दो से अधिक व्यक्ति


1. किसी अवैध कार्य को करने के लिए, या



2. किसी वैध कार्य को अवैध तरीके से करने के लिए

सहमति (Agreement) करते हैं, तो वह आपराधिक षड्यंत्र कहलाता है।




● अगर षड्यंत्र गंभीर अपराध (जैसे हत्या, आतंकवाद, राजद्रोह) के लिए है – केवल सहमति ही पर्याप्त है।


● अन्य मामलों में – सहमति के साथ कोई अभिनियमन (Overt Act) होना चाहिए।




⚖️ मुख्य तत्व (Essential Ingredients)


1. Persons Involved – कम से कम दो व्यक्ति।



2. Agreement – स्पष्ट (Express) या मौन (Implied)।



3. Unlawful Object or Unlawful Means

अवैध कार्य या वैध कार्य, अवैध साधनों से




4. Overt Act – केवल गैर-गंभीर मामलों में आवश्यक।





⚖️ न्यायिक व्याख्या (Judicial Interpretation)



🏛 Supreme Court Judgement In Kehar Singh v. State (1988) , इंदिरा गांधी हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा –


 "Conspiracy is mostly proved by circumstantial evidence, as it is hatched in secrecy."

(षड्यंत्र अक्सर गुप्त रूप से बनता है, इसलिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य से ही सिद्ध होता है।)





🏛 Supreme Court Judgement In State of Maharashtra v. Som Nath Thapa (1996) , कोर्ट ने कहा –


 "Meeting of minds is essential; mere presence or association is not conspiracy."

(मन का मिलन आवश्यक है; केवल साथ होना या परिचय होना षड्यंत्र नहीं है।)





⚖️ दंड प्रावधान (Punishment)


● गंभीर अपराध के लिए षड्यंत्र – वही सज़ा जो मूल अपराध के लिए है।


● अन्य मामलों में – 6 माह तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों।


● षड्यंत्र पूरा न हो, अपराध न हो पाए – फिर भी दंडनीय है।






⚖️ दृष्टिकोण (Critical Analysis)


सकारात्मक पक्ष:


● संगठित अपराध, आतंकवाद और कॉर्पोरेट फ्रॉड रोकने का प्रभावी उपकरण।


● अपराधियों को पहले ही पकड़ने में मदद करता है।


नकारात्मक पक्ष


● परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर निर्भरता से ग़लत सजा की संभावना।


● “Agreement” की परिभाषा लचीली है – दुरुपयोग का खतरा।



📝 निष्कर्ष:

"अपराध की जड़ सिर्फ हथियार या हाथ में नहीं, बल्कि दिमाग और सोच में होती है। Criminal Conspiracy कानून उसी सोच पर चोट करता है।"

हालांकि, इसका प्रयोग विवेकपूर्ण और साक्ष्य-आधारित होना चाहिए ताकि यह न्याय का हथियार बने, अन्यथा यह निर्दोषों के खिलाफ भी इस्तेमाल हो सकता है।



August 10, 2025

अलग नीयत या ज्ञान के साथ किया गया अपराध – उकसाने वाले की जिम्मेदारी

🏛 भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 50 , "एक खास कानूनी प्रावधान है, जो बताती है कि जब कोई व्यक्ति अपराध के लिए उकसाता है, लेकिन अपराध करने वाले की नीयत या ज्ञान अलग होता है, तो सजा कैसे तय होगी।"


भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 50 , "एक खास कानूनी प्रावधान है, जो बताती है कि जब कोई व्यक्ति अपराध के लिए उकसाता है, लेकिन अपराध करने वाले की नीयत या ज्ञान अलग होता है, तो सजा कैसे तय होगी।"


⚖️ WHAT THE LAW SAYS / कानून क्या कहता है



"Section 50 कहता है — यदि उकसाने वाला (Abettor) किसी खास इरादे से अपराध कराना चाहता है, लेकिन जिसे उकसाया गया (Abetted Person) वह अलग इरादे या ज्ञान से काम करता है, तो सजा उस इरादे के अनुसार मिलेगी जो उकसाने वाले का था।"


⚖️ SIMPLE EXPLANATION / आसान भाषा में समझें


"मतलब, अगर आपने किसी को चोट पहुँचाने के लिए उकसाया, लेकिन उसने हत्या कर दी — तो आपको हत्या का दोषी नहीं माना जाएगा, बल्कि चोट पहुँचाने के अपराध की सजा मिलेगी।"



 

⚖️ EXAMPLE CASES / उदाहरण


Example 1


✒A ने B को Z को हल्की चोट पहुँचाने के लिए उकसाया।


✒B ने गंभीर हमला कर Z को मार दिया।


✒A को सिर्फ चोट के अपराध की सजा मिलेगी।



Example 2


✒A ने B को Z की हत्या करने के लिए उकसाया।


✒B ने Z को केवल चोट पहुँचाई।


✒A को हत्या के प्रयास (Attempt to Murder) की सजा मिलेगी।





⚖️ KEY LEGAL POINTS /       मुख्य कानूनी बिंदु


1. सजा तय करते समय उकसाने वाले के इरादे को महत्व दिया जाएगा।



2. यदि अपराध करने वाले का इरादा अलग है, तो उसी के अनुसार अपराध माना जाएगा।



3. यह प्रावधान गलत इरादे से ज्यादा या कम गंभीर अपराध होने पर लागू होता है।





August 10, 2025

अपराध में प्लानर (Mastermind) की सजा


📜 " सिर्फ अपराध करना ही नहीं, उकसाना भी जुर्म – BNS की धारा 46 का  प्रावधान"


सिर्फ अपराध करना ही नहीं, उकसाना भी जुर्म – BNS की धारा 46 का  प्रावधान



⚖️ प्रावधान / Provosion
 


📜 भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 में धारा 46 एक ऐसा प्रावधान है जो साफ करता है —


✒"जो अपराध करवाने के लिए उकसाता है, योजना बनाता है या मदद करता है, वह भी उतना ही दोषी है जितना अपराध करने वाला।"




⚖️ क्या कहती है धारा 46? (What Section 46 Says)


✒किसी अपराध के लिए उकसाना (Instigation),


✒अपराध के लिए षड्यंत्र (Conspiracy) करना,


✒या अपराध को आसान बनाने के लिए सहायता (Aid) देना,


✒ यह सब दुष्प्रेरण (Abetment) कहलाता है और अपराध माना जाएगा।



⚖️ मुख्य बिंदु (Key Points)


1. अपराध न होने पर भी जुर्म – अगर अपराध नहीं हुआ, तब भी उकसाने वाला दोषी।



2. अक्षम व्यक्ति को उकसाना – बच्चा, मानसिक रोगी या कानूनी तौर पर अक्षम व्यक्ति को उकसाना भी अपराध।



3. उकसाने का उकसाना – किसी को उकसाने के लिए उकसाना भी जुर्म है।



4. सीधा संपर्क जरूरी नहीं – षड्यंत्र में शामिल होना ही काफी है, चाहे अपराधी से बात न हुई हो।




⚖️ उदाहरण (Illustrations)


✒A ने B को C की हत्या करने को कहा, B ने मना कर दिया – A दोषी।


✒A ने 6 साल के बच्चे को Z की हत्या के लिए उकसाया – बच्चा बरी, A पर हत्या का मुकदमा।


✒A ने मानसिक रोगी को घर में आग लगाने के लिए कहा – आगजनी का दोषी A।




⚖️ सजा का प्रावधान (Punishment Provision)


📜 धारा 46 खुद सजा तय नहीं करती, बल्कि कहती है कि —


✒ "सजा वही होगी जो उस अपराध के लिए तय है, जिसे करवाने के लिए उकसाया गया है।"


✒यानि अगर हत्या के लिए उकसाया, तो हत्या की ही सजा – फांसी या उम्रकैद।



⚖️ क्यों है अहम? (Why It’s Important)


✒अपराध की जड़ में अक्सर प्लानर (Mastermind) होता है, जो खुद हाथ गंदे नहीं करता।


✒धारा 46 ऐसे लोगों को भी सीधे कानूनी जाल में लाती है।



📝 निष्कर्ष (Conclusion): धारा 46 साफ संदेश देती है — "कानून की नजर में अपराधी सिर्फ वो नहीं जो वार करता है, बल्कि वो भी जो वार करवाता है।"



July 25, 2025

अगर अपराध व्यक्तिगत प्रकृति का हो, तो उसे समाप्त किया जा सकता है।


 

हाईकोर्ट का फैसला: आपसी समझौते पर FIR रद्द
⚖️ हाईकोर्ट का फैसला: आपसी समझौते पर FIR रद्द
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 498A, 377 और दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धाराओं के तहत दर्ज FIR को रद्द कर दिया क्योंकि पति-पत्नी में आपसी समझौता हो गया था और उन्होंने आपसी सहमति से तलाक ले लिया था।
📁 मामला क्या था?
- शिकायतकर्ता पत्नी ने पति और उसके परिवार वालों पर दहेज, अप्राकृतिक यौन संबंध और मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
- FIR संख्या: 737/2023
- धारा: 498A, 377 IPC, 3/4 Dowry Act
🤝 आपसी समझौता क्यों हुआ?
दोनों पक्षों ने Family Court में तलाक के लिए सहमति दी और एक समझौते के तहत सभी आरोपों को खत्म करने पर सहमति जताई।
🧑‍⚖️ कोर्ट का क्या निर्णय था?
- पत्नी खुद कोर्ट में उपस्थित हुई और कहा कि उसे FIR खत्म करने में कोई आपत्ति नहीं।
- कोर्ट ने कहा कि यदि विवाद सुलझ गया है, तो Section 482 CrPC के तहत केस को खत्म किया जा सकता है।
📚 सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला
- Gian Singh v. State of Punjab (2012)
- B.S. Joshi v. State of Haryana (2003)
- Narinder Singh v. State of Punjab (2014)
इन सभी में बताया गया कि आपसी समझौते के मामलों में, अगर अपराध व्यक्तिगत प्रकृति का हो, तो उसे समाप्त किया जा सकता है।
📝 निष्कर्ष
यह निर्णय बताता है कि यदि पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग हो जाते हैं और विवाद समाप्त हो चुका हो, तो हाईकोर्ट को मुकदमा खत्म करने की अनुमति है। इससे दोनों पक्ष अपने जीवन में आगे बढ़ सकते हैं।
June 23, 2025

"क्या कोई कार्य बिना किसी की अनुमति के करना अपराध है?"

 



BNS Section 30 – बिना सहमति के भलाई के लिए किया गया कार्य




धारा 30 (BNS) कहती है कि –


अगर कोई कार्य किसी व्यक्ति के हित (Benefit) के लिए सच्ची नीयत (Good Faith) से किया गया है, और उस समय उसकी सहमति लेना संभव नहीं था, तो वह अपराध नहीं माना जाएगा।


उदाहरण के लिए –

अगर कोई डॉक्टर बेहोश मरीज का इलाज बिना उसकी अनुमति के करता है, तो यह अपराध नहीं है।



🟡  किन शर्तों पर छूट मिलेगी? 


📌 यह छूट तभी मिलेगी जब:


1. कार्य सद्भावना में किया गया हो



2. उस समय सहमति लेना संभव नहीं था



3. व्यक्ति सहमति देने में अक्षम हो



4. उसका कोई अभिभावक या संरक्षक भी उपलब्ध न हो






🟡 किन मामलों में यह छूट नहीं मिलेगी? 


🚫 इस धारा के दो अपवाद (Exceptions) हैं –


1. अगर कार्य जानबूझकर किसी की मौत का कारण बनता है



2. अगर करने वाला जानता है कि इससे गंभीर हानि हो सकती है फिर भी करता है




यानि, Good Faith का मतलब यह नहीं कि आप कोई भी खतरा उठा सकते हैं।



🟡  न्यायशास्त्रीय विश्लेषण 


⚖️ यह धारा दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित है:


1. Mens Rea – यानी दोषपूर्ण मंशा नहीं है



2. Necessity Doctrine – यानी स्थिति की आवश्यकता थी




यह बताता है कि कभी-कभी कानून नीयत (Intent) और परिस्थिति (Circumstance) को देखकर छूट देता है।




🟡  निष्कर्ष और सलाह 


📚 धारा 30 हमें सिखाती है कि अगर हम किसी की भलाई के लिए ईमानदारी से कोई कार्य करें, और उसे नुकसान पहुंचाने की मंशा न हो, तो कानून उसे अपराध नही मानता।


लेकिन ध्यान रखें – सद्भावना का मतलब है – समझदारी और सावधानी के साथ काम करना।

June 05, 2025

"निजी हो या सरकारी, ट्रस्ट तोड़ा तो अपराध! | Section 316 (BNS)

"Criminal breach of trust"
 "आपराधिक न्यास भंग" 



🔸🔹 धारा 316 भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 : आपराधिक न्यास भंग (Criminal Breach of Trust)


जिसका आशय है – यदि किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति पर विश्वासपूर्वक नियंत्रण (entrusted) दिया गया हो और वह उस विश्वास का उल्लंघन कर संपत्ति का दुरुपयोग करता है, तो यह एक दंडनीय अपराध है।



🔹 महत्वपूर्ण बिंदु (Key Ingredients):


1. विश्वास में संपत्ति सौंपी गई हो (Entrustment of property)



2. बेईमानी से उस संपत्ति का दुरुपयोग या गबन किया गया हो (Dishonest misappropriation or use)



3. कानूनी दायित्व या अनुबंध की अवहेलना की गई हो (Violation of trust or contract)



4. जान-बूझकर स्वयं या किसी अन्य को ऐसा करने देना (Wilful act or negligence)






🔹 Explanation 1 का अर्थ 


> यदि कोई नियोक्ता कर्मचारी की वेतन से पीएफ (Provident Fund) या फैमिली पेंशन फंड के लिए राशि काटता है और वह उस राशि को संबंधित फंड में जमा करने में विफल रहता है, तो इसे भी "आपराधिक न्यास भंग" माना जाएगा, भले ही वह संस्था किसी प्रकार से छूट प्राप्त हो।




भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 316 (Section 316 – Criminal Breach of Trust) की Sub-section (1) से (5) 



✅  Sub-section (1) 


जो कोई किसी संपत्ति पर किसी भी प्रकार से विश्वासपूर्वक सौंपा गया हो, और वह उस संपत्ति का:


बेईमानी से गबन करता है,


या अपने व्यक्तिगत उपयोग में लेता है,


या कानून या अनुबंध के विरुद्ध उसका उपयोग या हेरफेर करता है,



तो वह व्यक्ति आपराधिक न्यास भंग (Criminal Breach of Trust) का दोषी होता है।




✅ Sub-section (2) 


> यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) में वर्णित अपराध करता है, तो उसे 10 वर्ष तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।



📝 सरल भाषा में:

अगर कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करता है तो उसे 10 साल तक की कैद और साथ में जुर्माना हो सकता है।





✅ Sub-section (3) 


> यदि कोई व्यक्ति जो किसी संस्था या न्यास (trust) के प्रबंधन से जुड़ा है, और वह:




संस्था या ट्रस्ट की संपत्ति का दुरुपयोग करता है,


या गलत तरीके से उसका इस्तेमाल करता है,



तो उसे भी उपधारा (2) की तरह 10 साल की सजा और जुर्माना हो सकता है।





✅ Sub-section (4) 


> यदि यह अपराध किसी सार्वजनिक सेवक (Public Servant) द्वारा किया गया है, और उस संपत्ति का संबंध:




सरकार के धन से है,


या किसी योजना या निधि से है,



तो उसे 10 साल तक की सजा और जुर्माना लगाया जाएगा, और सजा कठोर कारावास (rigorous imprisonment) हो सकती है।





✅ Sub-section (5) 


> यह धारा लागू होती है, चाहे अपराध करने वाला व्यक्ति सरकारी कर्मचारी हो या न हो।




📝 मतलब:

यह कानून सभी व्यक्तियों पर लागू होता है — सरकारी और गैर-सरकारी, दोनों।



---


📌 संक्षेप में (In Short):


उपधारा मुख्य बात सजा


(1) विश्वास भंग कर संपत्ति का दुरुपयोग अपराध सिद्ध

Explanation 1 PF/पेंशन फंड ना जमा करना भी अपराध अपराध सिद्ध

(2) कोई भी व्यक्ति 10 वर्ष + जुर्माना

(3) ट्रस्ट या संस्था से जुड़ा व्यक्ति 10 वर्ष + जुर्माना

(4) सार्वजनिक सेवक (Public Servant) 10 वर्ष तक कठोर कारावास + जुर्माना

(5) सभी पर लागू – सरकारी या निजी लागू होता है



June 05, 2025

"Risk लेना भी कानूनन मंजूर है!

  


जब कोई बालिग व्यक्ति खुद खतरा स्वीकार करके किसी कार्य के लिए सहमति देता है, और उस कार्य से अनजाने में नुकसान होता है, तो वह कानूनन अपराध नहीं माना जाता — बशर्ते न तो इरादा था और न ही संभावना थी कि गंभीर हानि या मृत्यु होगी।   भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 25 (Section 25)




धारा 25: ऐसा कार्य जो मृत्यु या गंभीर चोट पहुंचाने के लिए न किया गया हो और न ही ऐसा होने की संभावना हो, और जो सहमति से किया गया हो।


स्पष्टीकरण:


अगर कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जिसका उद्देश्य न तो किसी की मृत्यु करना है और न ही गंभीर चोट पहुँचाना है, और जिसे करने वाले को यह पता भी नहीं है कि इससे किसी की मृत्यु या गंभीर चोट हो सकती है —



⚡और वह कार्य किसी ऐसे व्यक्ति पर किया गया है:



⚡जिसकी आयु 18 वर्ष से अधिक है,



⚡जिसने स्वयं उस कार्य को करने की सहमति दी है (चाहे स्पष्ट रूप से या इशारे में),



⚡और उसने उस हानि का जोखिम स्वयं स्वीकार किया है —



⚡तो ऐसी स्थिति में कोई अपराध नहीं माना जाएगा, भले ही उस कार्य से कुछ हानि हो गई हो।



 निम्न परिस्थितियों में Section 25 के अंतर्गत आपराधिक नहीं होगा 


1. A और Z आपसी मनोरंजन के लिए तलवारबाज़ी (fencing) करने पर सहमत होते हैं।


इस समझौते में दोनों इस बात पर सहमत होते हैं कि खेल के दौरान अगर कोई सामान्य चोट लगती है तो वे उसे स्वीकार करेंगे।


यदि A ईमानदारी से खेलते हुए Z को चोट पहुँचा देता है, तो यह अपराध नहीं माना जाएगा।


कुछ अन्य परिस्थितियां जैसे

2. खेल प्रतियोगिता


3. जिम ट्रेनिंग


4. मार्शल आर्ट्स क्लास


5. डांस रिहर्सल


5. सर्कस या स्टंट शो


June 03, 2025

"अगर जबरन पिलाई शराब में हो गया अपराध? | Section 23 BNS Explained"





 "अगर कोई व्यक्ति नशे की हालत में ऐसा कार्य करता है, जो सामान्यतः अपराध होता है, लेकिन उस समय वह व्यक्ति यह नहीं समझ पा रहा था कि वह क्या कर रहा है या जो कर रहा है वह कानून के खिलाफ है — और यह नशा उसे बिना उसकी जानकारी के या उसकी इच्छा के विरुद्ध दिया गया था —

तो वह कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।"




मुख्य बातें:


1. यह धारा बिना मर्जी से कराए गए नशे की स्थिति में लागू होती है।



2. यदि कोई व्यक्ति नशे की वजह से यह नहीं जानता कि वह क्या कर रहा है, और यह नशा उसे जबरदस्ती या धोखे से दिया गया था —

तो वह कानूनी रूप से ज़िम्मेदार नहीं माना जाएगा।



3. लेकिन अगर किसी ने स्वेच्छा से नशा किया है, तब यह धारा लागू नहीं होगी।




उदाहरण:


⚡अगर किसी को पार्टी में चुपचाप शराब पिलाई जाती है और वह व्यक्ति नशे में किसी को मार देता है,

⚡तो कोर्ट देखेगी कि क्या वह जानबूझकर नशा किया गया था या बिना मर्जी के —

⚡अगर बिना मर्जी के था, तो उसे इस धारा के तहत बचाव मिल सकता है।

May 25, 2025

"जब एक ही कार्य बने कई अपराध" – क्या कहती है धारा 9?

 भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 9 / SECTION 71 IPC



धारा 9: जब कोई कार्य अनेक अपराधों से बना हो


यदि कोई कार्य जो एक अपराध है, ऐसे कई हिस्सों से मिलकर बना हो जिनमें से कोई भी हिस्सा अपने-आप में एक अपराध है, तो अपराधी को उन सभी अपराधों की सजा अलग-अलग नहीं दी जाएगी, जब तक कि कानून में ऐसा स्पष्ट रूप से न कहा गया हो।



यह दो स्थितियों में लागू होता है:


(a) जब कोई कार्य एक से अधिक कानूनों की परिभाषा में अपराध माना जाता है, Section 9 (2)(a) 

या

(b) जब कई ऐसे कार्य किए गए हों, जो अपने-आप में तो अपराध हों, लेकिन मिलाकर कोई अलग अपराध बनाते हों, Section 9 (2)(b) 


तो ऐसे मामलों में अपराधी को उस अपराध के लिए अधिकतम सजा नहीं दी जा सकती जो संबंधित अदालत द्वारा किसी एक अपराध के लिए दी जा सकती थी।


उदाहरण:

(a) अगर A, Z को डंडे से 50 बार मारता है, तो A ने "जानबूझकर चोट पहुँचाने" का अपराध किया है – यह पूरे पीटने के कार्य से भी सिद्ध होता है और हर एक चोट (हर एक बार मारना) भी अपने-आप में अपराध है।

अगर हर एक मारने पर A को एक साल की सजा हो, तो कुल 50 साल की सजा हो सकती है। लेकिन कानून के अनुसार, A को सिर्फ पूरे पीटने के लिए एक ही सजा दी जा सकती है – हर एक मार के लिए अलग-अलग नहीं।


निष्कर्ष:

धारा 9 इस सिद्धांत को दर्शाती है कि एक ही अपराध के लिए बार-बार सजा नहीं दी जा सकती (यह "Double Jeopardy" सिद्धांत से भी जुड़ा है)।




धारा 9, भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 — जो पहले धारा 71, IPC, 1860 के सिद्धांत से मेल खाती है — इसके अंतर्गत कुछ प्रमुख न्यायिक निर्णय (case laws) हैं, जो इस सिद्धांत की व्याख्या करते हैं कि "एक ही अपराध के लिए बार-बार सजा नहीं दी जा सकती"।


 Case law  


1. तथ्य: अभियुक्त पर हत्या और चोट पहुंचाने के दो अलग-अलग अपराधों में मुकदमा चला।


निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब एक ही घटना कई अपराधों में आती है, तो अभियुक्त को एक ही सजा दी जाएगी — जो अधिकतम सख्त हो। दोहराव से बचना आवश्यक है।

Mohan Baitha v. State of Bihar (2001) 4 SCC 350



प्रभाव: यह धारा 9(1) के उद्देश्य को दर्शाता है — एक घटना जो कई हिस्सों में विभाजित हो सकती है, फिर भी एक ही अपराध मानी जाएगी यदि वह समग्र रूप से एक ही अपराध है।



2. तथ्य: अभियुक्त पर धोखाधड़ी के कई मामलों में अलग-अलग सजा दी गई।


निर्णय: कोर्ट ने कहा कि यदि अलग-अलग कार्य अलग-अलग अपराध हैं, और वे मिलकर कोई अन्य बड़ा अपराध बनाते हैं, तो सबसे कठोर सजा ही दी जा सकती है।

K. Satwant Singh v. State of Punjab, AIR 1960 SC 266


प्रभाव: यह धारा 9(2)(b) पर प्रकाश डालता है — जब कई छोटे अपराध मिलकर एक बड़ा अपराध बनाते हैं।



निष्कर्ष:

धारा 9 का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि:


एक ही अपराध के लिए व्यक्ति को बार-बार सजा न दी जाए।


यदि कोई कार्य कई कानूनों का उल्लंघन करता है, तो सबसे कठोर और उपयुक्त सजा ही दी जाए।


न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता और समानता बनी रहे।


May 22, 2025

आजीवन कारावास और सजा के अंश

      BNS 2023 धारा 6  /  IPC की धारा 57      

 
आजीवन कारावास और सजा के अंश 

In calculating fractions of terms of punishment, imprisonment for life shall be reckoned as equivalent to imprisonment for twenty years unless otherwise provided.

जब किसी अपराध में दी गई सज़ा की अवधि का कोई अंश (fraction) निकालने की आवश्यकता होती है — जैसे कि छूट, पैरोल, या अन्य मामलों में — तो आजन्म कारावास (life imprisonment) को 20 वर्षों की सजा के बराबर माना जाएगा, जब तक कि किसी अन्य कानून में कुछ अलग प्रावधान न हो।    धारा 6 (BNS)





सीमाएँ और अपवाद:

धारा 6 में उल्लेख है कि यह नियम तब तक लागू होगा "जब तक कि अन्यथा प्रदान न किया गया हो।" इसका अर्थ है कि यदि कोई विशेष कानून या अदालती आदेश आजीवन कारावास को अलग तरह से परिभाषित करता है, तो वह इस धारा पर प्राथमिकता लेगा। उदाहरण के लिए, आतंकवाद या संगठित अपराध से संबंधित मामलों में, आजीवन कारावास का अर्थ वास्तव में मृत्यु तक कारावास हो सकता है।



Fractions of terms of punishment

दंड की अवधियों के अंशों की गणना

 

सजा में कमी का मामला

मान लीजिए, किसी अपराधी को किसी अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा दी गई है, और अदालत यह निर्णय लेती है कि उसे सजा का केवल 1/3 हिस्सा भुगतना होगा। धारा 6 के अनुसार, आजीवन कारावास को 20 वर्ष के रूप में माना जाएगा।


गणना: 20 वर्ष का 1/3 = लगभग 6 वर्ष और 8 महीने।

इस प्रकार, अपराधी को केवल 6 वर्ष और 8 महीने की सजा काटनी होगी, यदि कोई अन्य विशेष प्रावधान लागू नहीं है।



 जुर्माने के साथ सजा

यदि किसी अपराध के लिए सजा 7 वर्ष की जेल और जुर्माना है, लेकिन अपराधी केवल आधी सजा भुगतने के लिए पात्र है (उदाहरण के लिए, अच्छे व्यवहार के कारण)। धारा 6 के तहत, यदि सजा आजीवन कारावास होती, तो 20 वर्ष का आधार लिया जाता। लेकिन चूंकि सजा 7 वर्ष की है, आधी सजा होगी


गणना: 7 वर्ष का 1/2 = 3.5 वर्ष।

अपराधी को 3.5 वर्ष जेल में बिताने होंगे, बशर्ते अन्य कोई शर्त लागू न हो। 



 परिवीक्षा (Probation) का मामला

यदि किसी अपराधी को आजीवन कारावास की सजा दी गई है, लेकिन उसे परिवीक्षा पर रिहा किया जाता है, और परिवीक्षा अवधि सजा के 1/4 हिस्से के बराबर है, तो


गणना: 20 वर्ष का 1/4 = 5 वर्ष।

अपराधी को 5 वर्ष की परिवीक्षा अवधि पूरी करनी होगी, जब तक कि कानून में अन्यथा निर्दिष्ट न हो।



May 21, 2025

परिस्थिति, इरादा और भागीदारी के आधार पर हर व्यक्ति पर अलग-अलग अपराध के आरोप

 



भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 3(9) / IPC की धारा 38 



 यदि दो या अधिक व्यक्ति एक अपराध में सम्मिलित हों, तो यह जरूरी नहीं कि सभी के ऊपर समान अपराध का आरोप लगे। बल्कि उनकी मानसिक अवस्था (mens rea) परिस्थिति, इरादा और भागीदारी के आधार पर हर व्यक्ति पर अलग-अलग अपराध के आरोप लग सकते हैं।धारा 3(9) BNS 



उदाहरण 


A ने Z को इतना उकसाया (grave provocation) कि उसने गुस्से में आकर Z की हत्या कर दी। ऐसे में A का अपराध "culpable homicide not amounting to murder" होगा, यानी वह हत्या है, लेकिन उसे हत्या (murder) नहीं माना जाएगा क्योंकि उसने उकसावे में आकर ऐसा किया।

वहीं B, जो पहले से Z से द्वेष रखता था और Z को मारने का पूरा इरादा रखता था, वह A की मदद करता है Z को मारने में। लेकिन चूंकि B को कोई उकसावा नहीं मिला था और उसने जानबूझकर और द्वेषभाव से Z को मारा, इसलिए B का अपराध मर्डर (Murder) माना जाएगा।


Case law

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि दो या अधिक व्यक्ति एक अपराध में सम्मिलित हों, तो यह जरूरी नहीं कि सभी के ऊपर समान अपराध का आरोप लगे। अगर उनकी मानसिक अवस्था (mens rea) अलग है तो उन पर अलग-अलग अपराध के आरोप लग सकते हैं।Krishna Govind Patil v. State of Maharashtra, AIR 1963 SC 1413



April 19, 2025

"IPC धारा 328 बनाम BNS धारा 87: मादक पदार्थ और अपराध की मंशा"


 


किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने के इरादे से नशीला पदार्थ देना:


अगर कोई व्यक्ति किसी और को जानबूझकर कोई जहरीली चीज़, नशीली दवा या अन्य हानिकारक चीज़ इस इरादे से देता है, पिलाता है, या किसी तरह से शरीर में पहुंचाता है ताकि उसे बेहोश कर सके या उसकी मानसिक स्थिति बिगाड़ सके, और फिर उससे कोई अपराध करे — तो यह धारा 328 ( IPC ) / 87 (BNS )के तहत अपराध है।





2. आवश्यक तत्व (Essential Ingredients):


 अपराध सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं:


🪄 नशीली/हानिकारक वस्तु का प्रयोग या प्रयोग कराने की क्रिया (Actus Reus)


🪄 अपराध की मंशा (Mens Rea) — अर्थात यह कार्य किसी अपराध को करने के उद्देश्य से किया गया हो


🪄 पीड़ित को बेहोश करना या उसकी शक्ति कम करना


🪄 कार्य जानबूझकर (Intentionally) किया गया हो




3. महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय (Important Case Laws):


आरोपी ने महिला को नशीली चीज दी और फिर उससे बलात्कार किया।


सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

> "When a person administers any intoxicating substance with the intention to commit any offence, even prior to the actual commission of offence, Section 328 gets attracted."

State of Rajasthan v. Jaggu Ram, AIR 2006 SC 1507



अफीम देकर चोरी की गई।

कोर्ट ने कहा कि "mere intoxication is not sufficient; intention to facilitate commission of offence must be proved."

Khet Singh v. Union of India, 1994 Cri LJ 1378



4. Mens Rea का महत्व:


🪄धारा 328 (BNS की धारा 87 ) में Mens Rea (मंशा) अत्यंत आवश्यक तत्व है।

🪄यदि नशीली वस्तु का प्रयोग मज़ाक, अनजाने में, या इलाज के लिए किया गया हो और कोई अपराध नहीं किया गया या अपराध की मंशा न हो, तो धारा 328 लागू नहीं होगी।

🪄धारा 328 ( BNS की धारा 87 ) में "उद्देश्य" (intention) अत्यंत महत्वपूर्ण है। अभियोजन को यह सिद्ध करना होता है कि आरोपी ने जानबूझकर ऐसा किया ताकि अपराध को अंजाम दिया जा सके।

🪄सिर्फ बेहोश कर देना पर्याप्त नहीं है — यह भी साबित करना होगा कि ऐसा किसी अपराध को करने की मंशा से किया गया।


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5. व्यावहारिक उपयोग (Practical Use Cases):


🪄चोरी या डकैती के पहले व्यक्ति को बेहोश करना


🪄महिलाओं को नशीला पेय पिलाकर यौन अपराध


🪄ड्रग्स/स्पाइकिंग के मामले में विशेष रूप से कॉलेज, पार्टी या ट्रेनों में


🪄होटल या बार में बेहोशी का फायदा उठाकर मोबाइल/वस्तुएं चुराना






दंड (Punishment):


अधिकतम 10 वर्ष का कठोर कारावास


साथ में जुर्माना


यह गंभीर अपराध है और गैर-जमानती (non-bailable) और गंभीर प्रकृति का संज्ञेय अपराध (cognizable offense) माना जाता है।