जब माता-पिता या अभिभावक, जिन्हें बच्चों की रक्षा करनी चाहिए, उसे असहाय छोड़ देते हैं — तो भारतीय न्याय संहिता की धारा 93 इसी अमानवीय कृत्य को दंडित करती है।
यदि कोई पिता, माता या संरक्षक, जो 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे की देखभाल करता है, उस बच्चे को किसी स्थान पर जानबूझकर छोड़ देता है या त्याग देता है, इस इरादे से कि वह बच्चा सदा के लिए छोड़ दिया जाए,
तो ऐसा व्यक्ति सात वर्ष तक की कैद, जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यह कानून सिर्फ़ परित्याग को अपराध नहीं मानता, बल्कि इसके पीछे के इरादे (intention) को भी देखता है।
अगर किसी ने बच्चे को छोड़ने का ऐसा कार्य इस सोच के साथ किया कि वह दोबारा कभी लौटकर न आए — तो यह “पूरी तरह से परित्याग” (wholly abandoning) कहलाता है।
कानून यह स्पष्ट संदेश देता है —
माता-पिता होना एक जिम्मेदारी है, अधिकार नहीं।
बच्चे को त्यागना, उसे जीवन के खतरे में डालना है — और यह अपराध है।
धारा 93 हमें याद दिलाती है कि समाज की संवेदनशीलता की शुरुआत, सबसे पहले अपने बच्चों की सुरक्षा से होती है।

      
      
      
