रोकथामात्मक पुलिस शक्तियाँ: सार्वजनिक सुरक्षा बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता
“रोकथामात्मक पुलिस शक्तियों का नया ढांचा: BNSS की धाराएँ 168 से 172 का विधिक परीक्षण”
भारत की आपराधिक न्याय-व्यवस्था में पुलिस की भूमिका केवल अपराध के बाद की कार्रवाइयों तक सीमित नहीं है। विधि पुलिस को यह अधिकार भी प्रदान करती है कि वह संज्ञेय अपराध को उसके प्रारम्भिक चरण में ही रोक सके।
BNSS 2023 की धाराएँ 168 से 172 इसी रोकथामात्मक (preventive) ढांचे का संवैधानिक व विधिक स्वरूप प्रस्तुत करती हैं। यह प्रावधान न केवल प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करते हैं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संतुलन को भी बनाए रखते हैं।
धारा 168 पुलिस अधिकारी पर दोहरी जिम्मेदारी स्थापित करती है—
पहला, उसे यह अधिकार है कि वह संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए तत्काल हस्तक्षेप करे;
दूसरा, यह उसका विधिक दायित्व भी है कि वह अपनी सर्वोत्तम क्षमता से अपराध-निरोध सुनिश्चित करे।
यह धारा पुलिस की भूमिका को प्रतिक्रियात्मक नहीं बल्कि सक्रिय (proactive) बनाती है।
कानून का स्पष्ट संदेश है—
अपराध की रोकथाम पुलिस का मूल कर्तव्य है, न कि वैकल्पिक विकल्प।
यदि किसी पुलिस अधिकारी को अपराध की पूर्व-योजना (preparation) की सूचना प्राप्त होती है,
तो उसे इस सूचना को अपने वरिष्ठ अधिकारी तथा उस अधिकारी को संप्रेषित करना होगा,
जो अपराध-निरोध या संज्ञान से संबंधित कर्तव्य का निर्वहन करता है।
यह धारा पुलिस-व्यवस्था के भीतर सूचना के औपचारिक प्रवाह (information flow) को बाध्यकारी बनाती है और रोकथामात्मक कार्रवाई को संस्थागत रूप देती है।
धारा 170 रोकथामात्मक गिरफ्तारी का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है।
यदि पुलिस अधिकारी को ज्ञात हो कि कोई व्यक्ति संज्ञेय अपराध करने की योजना बना रहा है,
और अधिकारी के समक्ष यह प्रतीत हो कि अपराध को रोकना किसी अन्य उपाय से संभव नहीं है,
तो वह बिना वारंट और बिना मजिस्ट्रेट के आदेश उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है।
यह प्रावधान सार्वजनिक सुरक्षा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन को जटिल रूप से छूता है।
हालाँकि रोकथामात्मक गिरफ्तारी सुव्यवस्था के लिए आवश्यक है, किन्तु इसके दुरुपयोग की आशंका को भी नकारा नहीं जा सकता।
कानून यह व्यवस्था करता है कि
ऐसे व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता,
जब तक कि आगे की हिरासत विधि द्वारा अधिकृत न हो।
यह सीमा अनावश्यक और मनमानी हिरासत (arbitrary detention) पर रोक लगाती है और न्यायसंगत प्रक्रिया (due process) की रक्षा करती है।
धारा 171 पुलिस अधिकारी को यह अधिकार देती है कि
वह अपने सामने किसी भी सार्वजनिक संपत्ति—
चाहे वह चल संपत्ति हो, अचल संपत्ति हो,
या नेविगेशन संबंधी चिन्ह—को नुकसान पहुँचाते हुए व्यक्ति को
तुरंत रोक सके।
यह प्रावधान सार्वजनिक हित और सरकारी संपत्ति की सुरक्षा के लिए स्वतःस्फूर्त हस्तक्षेप (spontaneous intervention) को स्वीकृति देता है।
धारा 172 के अनुसार,
प्रत्येक व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा दिए गए वैध निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य है।
यदि कोई व्यक्ति इन निर्देशों की अवहेलना करता है,
तो पुलिस अधिकारी उसे हटाने, हिरासत में लेने या मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार रखता है।
यह धारा सार्वजनिक व्यवस्था (public order) को बनाए रखने हेतु पुलिस को तत्काल कार्रवाई की शक्ति प्रदान करती है।
BNSS की धाराएँ 168 से 172 पुलिस की रोकथामात्मक शक्तियों का एक संतुलित ढांचा प्रस्तुत करती हैं।
जहाँ एक ओर ये प्रावधान अपराध-निरोध की प्रभावी व्यवस्था स्थापित करते हैं,
वहीं दूसरी ओर व्यक्तिगत स्वतंत्रता की विधिक सुरक्षा को भी संरक्षित रखते हैं।
वर्तमान परिस्थितियों में, जब अपराध की प्रकृति और पद्धति में निरंतर परिवर्तन हो रहा है,
इन धाराओं का व्यावहारिक और संवैधानिक उपयोग भारतीय विधि-व्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।










