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October 20, 2025

“चेक बाउंस पर 20% राशि देने का कानूनी प्रावधान”

 


⚖️  “चेक बाउंस पर 20% राशि देने का कानूनी प्रावधान” 


चेक बाउंस के मामलों में कानूनी प्रावधान, जिसमें अदालत अभियुक्त से मुकदमे की शुरुआत में ही चेक राशि का 20% पीड़ित व्यक्ति को देने का आदेश दे सकती है।


⚖️ Legal Background

कई बार लोग किसी लेन-देन में नकद रकम न देकर चेक दे देते हैं।
पर जब बैंक में वह चेक जमा होता है, तो कई बार वह बाउंस हो जाता है — यानी खाते में पर्याप्त रकम नहीं होती, सिग्नेचर गलत होते हैं, या खाता बंद होता है।

ऐसे में यह act of dishonour विश्वासघात और आर्थिक धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है।
इसी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 138 लागू होती है।
यह धारा कहती है कि अगर किसी का चेक बाउंस हो जाता है, तो वह एक अपराध (offence) है, और पीड़ित व्यक्ति न्यायालय में परिवाद (complaint) दाखिल कर सकता है।


⚖️ नया प्रावधान – धारा 143(ए)

चेक बाउंस मामलों की बढ़ती संख्या और धीमी प्रक्रिया को देखते हुए संसद ने Section 143(A) जोड़ा।
इसके तहत, जब आरोपी व्यक्ति अदालत में पेश होता है,
तो न्यायालय उसे आदेश दे सकता है कि वह चेक राशि का 20% पीड़ित पक्ष को अंतरिम प्रतिकर (interim compensation) के रूप में तुरंत दे।


⚖️ उदाहरण से समझिए

मान लीजिए, किसी व्यक्ति ने किसी को ₹1,00,000 का चेक दिया।
चेक बाउंस हो गया।
पीड़ित ने कोर्ट में केस दायर किया।
जब आरोपी कोर्ट में उपस्थित होता है, तब कोर्ट कह सकती है कि —
"तुम्हें इस ₹1,00,000 की 20% राशि यानी ₹20,000 अभी पीड़ित को देनी होगी।"


⚖️ अगर आरोपी दोषमुक्त हो जाए

अगर केस में आरोपी निर्दोष साबित होता है,
तो अदालत यह 20% राशि वापस कराने का आदेश देती है।

लेकिन, अगर आरोपी दोषी पाया जाता है,
तो उसे बाकी की राशि, ब्याज और न्यायालय शुल्क तक भरना पड़ता है।


⚖️ अपील की स्थिति

अगर आरोपी सत्र न्यायालय में अपील करता है,
तो अपील पर सुनवाई तब तक नहीं होती जब तक वह कुल राशि का 20% कोर्ट के आदेश अनुसार नहीं भर देता।


⚖️ न्यायिक मंतव्य (Judicial Intention)

इस प्रावधान का मकसद साफ है —
“जो व्यक्ति चेक देता है, उसने किसी वैध लेन-देन के तहत ही दिया होगा।”
क्योंकि कोई भी व्यक्ति यूं ही किसी को चेक नहीं देता।
इसलिए कोर्ट मानती है कि पीड़ित पक्ष को प्रारंभिक राहत (early relief) मिलनी चाहिए।


यह कानून अब यह सुनिश्चित करता है कि
जो व्यक्ति चेक के भरोसे किसी को भुगतान करता है,
वह उस भरोसे को तोड़ने की कीमत पहले ही अदा करे
कानून कहता है —
"भरोसे से दिया गया चेक, जिम्मेदारी से निभाया जाए।"



April 20, 2025

चेक बाउंस से संबंधित कानूनी मामले

  




           Cheque Dishonour       

              चेक बाउंस क्या होता है?             

जब कोई व्यक्ति किसी को भुगतान करने के लिए बैंक चेक देता है, और वह चेक बैंक द्वारा "अपर्याप्त धनराशि (Insufficient Funds)", "अकाउंट बंद", या किसी अन्य कारण से रिजेक्ट कर दिया जाता है, तो इसे Cheque Dishonour या Cheque Bounce कहा जाता है।


(चेक बाउंस) से संबंधित कानूनी मामले मुख्य रूप से Negotiable Instruments Act, 1881 की धारा 138 से 142 तक में आते हैं। 



    दंडनीय अपराध          


अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर ऐसा चेक देता है जो कि बाउंस हो जाता है, तो यह एक Criminal Offence होता है। ( धारा 138 N.I Act, 1881 )


शर्तें:

🪄चेक किसी कर्ज या देनदारी को चुकाने के लिए होना चाहिए।


🪄चेक 3 महीने के भीतर जमा किया गया हो।


🪄बाउंस होने के बाद, धारक को 30 दिनों के भीतर लिखित नोटिस देना होगा।


🪄यदि नोटिस मिलने के 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किया गया, तभी मामला दर्ज किया जा सकता है।



      सजा        


⚡ अधिकतम 2 साल की सजा या

⚡ दो गुना तक जुर्माना या दोनों




  धारक के पक्ष में अनुमान       


यह धारा मानती है कि चेक किसी कानूनी देनदारी के लिए दिया गया था। अभियुक्त को यह साबित करना होता है कि ऐसा नहीं था।           धारा 139 N.I Act, 1881


नोट: सुप्रीम कोर्ट ने कहा: धारा 139 में दिया गया अनुमान (presumption) अभियुक्त द्वारा प्रत्येक परिस्थिति के प्रमाणों से rebut (खंडन) किया जा सकता है। Kumar Exports v. Sharma Carpets (2009)



 कुछ बचाव मान्य नहीं           


अभियुक्त यह नहीं कह सकता कि उसे भुगतान करने का इरादा नहीं था।     धारा 140 N.I Act, 1881




 शिकायत कब और कहां दर्ज करें         


चेक बाउंस का मामला केवल मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के समक्ष दर्ज किया जा सकता है।     धारा 142 N.I Act, 1881

शिकायत केवल चेक धारक द्वारा ही की जा सकती है।




 महत्वपूर्ण न्यायालयी निर्णय    


⚡ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चेक बाउंस का मामला उसी स्थान पर दर्ज होगा जहाँ चेक प्रस्तुत किया गया था (बैंक की शाखा)। Dashrath Rupsingh Rathod v. State of Maharashtra (2014) 


⚡ बाद में, संसद ने Negotiable Instruments (Amendment) Act, 2015 द्वारा यह तय किया कि मामला पेयिंग ब्रांच (जिस बैंक में आरोपी का खाता है) के स्थान पर चलेगा।



 बचाव पक्ष (Accused/Defense) की कानूनी प्रक्रियाएं (Legal Defenses) 



1. वैधानिक देनदारी का अभाव (No Legal Liability):

धारा 138 तभी लागू होती है जब चेक किसी वैध कर्ज या देनदारी को चुकाने के लिए दिया गया हो। अगर आरोपी यह साबित कर दे कि चेक उपहार स्वरूप या उधार के बिना दिया गया था, तो वह दोषमुक्त हो सकता है।

> उदाहरण: यदि चेक उधार के बदले नहीं बल्कि donation के रूप में दिया गया था।




2. चेक पर हस्ताक्षर न होना / जबरदस्ती लिया गया चेक:

यदि आरोपी यह सिद्ध कर दे कि चेक उसके हस्ताक्षर से नहीं लिखा गया या जबरदस्ती / धोखे से लिया गया, तो बचाव संभव है।




3. नोटिस का पालन न होना (Defective Legal Notice):

यदि शिकायतकर्ता द्वारा धारा 138 के तहत दिया गया 15 दिन का नोटिस सही तरीके से नहीं दिया गया, तो पूरा मुकदमा रद्द हो सकता है।




4. समय सीमा का पालन न होना (Limitation):

यदि चेक जमा करने, नोटिस भेजने और केस दर्ज करने की तय समय-सीमा का पालन नहीं किया गया, तो मुकदमा अमान्य हो सकता है।





5. चेक का गलत उपयोग / Blank Cheque Defence:

यदि चेक को कोरा (Blank) दिया गया था और शिकायतकर्ता ने उसमें मनमानी राशि भर दी, तो आरोपी यह साबित कर सकता है कि चेक का गलत उपयोग हुआ है।




6. भुगतान हो गया था (Payment Already Made):

यदि चेक जारी करने के बाद भुगतान नकद या किसी अन्य माध्यम से कर दिया गया हो, तो आरोपी निर्दोष माना जा सकता है।




7. संदेह का लाभ (Benefit of Doubt):

अगर न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि मामला पूरी तरह संदेह से परे नहीं है, तो आरोपी को संदेह का लाभ दिया जा सकता है।