किसी भी गिरफ्तारी के बाद आरोपी के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा राज्य का दायित्व है।
धारा 53 (BNSS) इसी संवैधानिक सिद्धांत पर आधारित है, जो सुनिश्चित करती है कि गिरफ्तारी के दौरान किसी व्यक्ति के साथ शारीरिक या मानसिक दुर्व्यवहार न हो, और आवश्यक चिकित्सीय परीक्षण द्वारा साक्ष्य भी संरक्षित रहे।
⚖️ विधिक प्रावधान (Legal Provision)
धारा 53 के अंतर्गत –
प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति का सरकारी चिकित्सा अधिकारी या पंजीकृत चिकित्सक द्वारा मेडिकल परीक्षण किया जाना अनिवार्य है।
यदिआरोपी महिला है, तो परीक्षण केवल महिला चिकित्सा अधिकारी या महिला पंजीकृत चिकित्सक द्वारा किया जाएगा।
⚖️ अभिलेख और रिपोर्ट (Medical Record & Report)
- परीक्षण के दौरान पाए गए चोट या हिंसा के निशान, उनके अनुमानित समय और प्रकृति का पूर्ण विवरण रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है।
- इस रिपोर्ट की एक प्रति आरोपी या उसके नामित व्यक्ति को देना भी कानूनन आवश्यक है।
⚖️ उद्देश्य और न्यायिक भावना (Purpose & Judicial Spirit)
इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य है:
- आरोपी के अधिकारों की रक्षा करना,
- पुलिस दुर्व्यवहार की रोकथाम,
- और साक्ष्यों के संरक्षण को सुनिश्चित करना।
यह व्यवस्था पुलिस कार्यवाही में पारदर्शिता लाती है और यह सुनिश्चित करती है कि आरोपी के साथ किसी प्रकार की यातना या गैरकानूनी बल प्रयोग न हो।
⚖️ नारी गरिमा की रक्षा (Female Dignity)
महिला आरोपी के मामले में अलग से व्यवस्था करना विधि की संवेदनशीलता को दर्शाता है।
यह न केवल शारीरिक गरिमा की रक्षा है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की भी पुष्टि करता है।
⚖️ निष्कर्ष (Conclusion)
धारा 53 एक संतुलन का प्रावधान है — जहाँ एक ओर यह जांच एजेंसियों को साक्ष्य प्राप्त करने का वैधानिक साधन देती है, वहीं दूसरी ओर यह आरोपी के मौलिक अधिकारों की रक्षा की ढाल भी है।
यह धारणा न्याय प्रणाली की उस मूल भावना को पुष्ट करती है कि — न्याय केवल किया ही नहीं जाना चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए।


