"High Court ने कहा – Cash Loan पर Check Bounce Case नहीं चलेगा!"
यह निर्णय हमारे देश की न्याय व्यवस्था और आर्थिक अनुशासन दोनों के लिए एक अहम संदेश लेकर आया है।
केरल हाईकोर्ट ने P.C. Hari बनाम Shine Varghese (2025) मामले में साफ कहा — 
₹20,000 से अधिक की नकद लेनदेन को अदालतें कानूनी नहीं ठहराएंगी, जब तक कि उसका उचित कारण साबित न किया जाए।
मामला साधारण था — शिकायतकर्ता ने कहा कि उसने ₹9 लाख नकद उधार दिए, जिसके बदले में आरोपी ने चेक दिया जो बाउंस हो गया। ट्रायल कोर्ट और सेशन कोर्ट दोनों ने आरोपी को दोषी ठहराया, लेकिन हाईकोर्ट ने फैसला पलट दिया।
न्यायमूर्ति P.V. Kunhikrishnan ने कहा कि आयकर अधिनियम की धारा 269SS के तहत ₹20,000 से अधिक नकद उधार या जमा लेना-देना मना है। इस कानून का उद्देश्य है कि देश में काले धन और नकद लेनदेन को रोका जा सके।
अगर फिर भी कोई व्यक्ति इतनी बड़ी राशि नकद में लेता या देता है, तो वह खुद कानून तोड़ रहा है। ऐसे में वह अदालत से यह नहीं कह सकता कि “मेरा पैसा लौटाओ” क्योंकि वह पैसा कानूनी तरीके से दिया ही नहीं गया था।
जज ने यह भी कहा कि जब देश डिजिटल इंडिया की दिशा में बढ़ रहा है, तो अदालतें उन नकद सौदों को वैध नहीं मान सकतीं जो कानून के खिलाफ हैं। उन्होंने साफ शब्दों में लिखा
अगर कोई व्यक्ति ₹20,000 से अधिक नकद देता है और फिर उस पर चेक लेता है, तो वह खुद जिम्मेदार है कि उसे पैसा वापस न मिले।
इस फैसले का असर बड़ा है। अब से अगर किसी ने ₹20,000 से अधिक नकद उधार दिया और बाद में चेक बाउंस हो गया, तो धारा 138 N.I. Act के तहत केस नहीं चलेगा। जब तक यह साबित न किया जाए कि नकद लेनदेन का कोई उचित कारण था (जैसे किसी आपात स्थिति में)।
संक्षेप में — यह फैसला बताता है कि कानून केवल अपराधियों के लिए नहीं, बल्कि हर नागरिक के लिए समान है। अगर सरकार डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा दे रही है, तो न्यायालय भी उसी दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं।

      
      
      
