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September 14, 2025

“वसीयत, बैनामा और दान पत्र में हसिया गवाह Hostile" । दस्तावेज़ का execution साबित कैसे?

 


⚖️ जब Attesting Witness (हसिया गवाह) Hostile हो जाए: कानूनी उपाय 


जब दस्तावेज (जैसे वसीयत, gift deed, sale deed), का निष्पादन करने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाए या किसी कारण से मौजूद न रहे तो दस्तावेज़ की वैधता साबित करने में attesting witness (हसिया गवाह) की भूमिका बेहद अहम होती है। ऐसे दस्तावेज़ जो कानून के अनुसार attested होने चाहिए  उनकी प्रामाणिकता अक्सर गवाह के माध्यम से सिद्ध की जाती है।

लेकिन सवाल उठता है – यदि गवाह hostile हो जाए या इनकार कर दे, तो क्या होगा? भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) की धारा 70 इस स्थिति को स्पष्ट रूप से संबोधित करती है।


⚖️  Hostile या Forgetful Witness की स्थिति
  • गवाह इनकार करता है कि उसने दस्तावेज़ को देखा या हस्ताक्षर की पुष्टि की।
  • या कहता है कि उसे याद नहीं कि दस्तावेज़ किस समय निष्पादित हुआ।
  • ऐसे में दस्तावेज़ के execution को सीधे सिद्ध करना मुश्किल हो जाता है।

⚖️ धारा 70 के तहत कानूनी उपाय


धारा 70 यह अनुमति देती है कि यदि attesting witness निष्पादन (execution) को सिद्ध करने में मदद न कर सके, तो “अन्य साक्ष्य” (Other Evidence) के माध्यम से दस्तावेज़ की प्रामाणिकता सिद्ध की जा सकती है।


⚖️ अन्य साक्ष्य के विकल्प
  1. हस्तलेख विशेषज्ञ (Handwriting Expert)

    • दस्तावेज़ पर निष्पादक और गवाह के हस्ताक्षर की पहचान करवा सकते हैं।
    • Expert गवाही से अदालत को पता चलता है कि दस्तावेज़ वास्तव में संबंधित व्यक्ति ने निष्पादित किया।
  2. दस्तावेज़ लेखक/लिपिक (Scribe) की गवाही

    • जिसने दस्तावेज़ लिखा या तैयार किया, वह गवाही देकर दस्तावेज़ के execution की पुष्टि कर सकता है।
  3. परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence)

    • जैसे स्टाम्प पेपर की खरीदारी, दस्तावेज़ तैयार होने की तारीख, पक्षकार की व्यवहारिक गतिविधियाँ।
    • यह दर्शाता है कि निष्पादन वास्तविक था।
  4. पार्टी का स्वीकृति/Admission

    • यदि निष्पादक स्वयं दस्तावेज़ के execution को स्वीकार करता है, तो वह भी पर्याप्त साक्ष्य माना जाता है (धारा 69 BSA)।

⚖️ महत्त्व
  • दस्तावेज़ की वैधता में बाधा नहीं आती।
  • कानून लचीलापन देता है, ताकि hostile witness के बावजूद execution सिद्ध किया जा सके।
  • न्यायालय परिस्थितियों के अनुसार अन्य साक्ष्य स्वीकार करता है।

⚖️ उदाहरण

मान लीजिए:

  • X ने जमीन का sale deed बनाया।
  • Attesting witness Y अदालत में कह देता है कि “मुझे याद नहीं कि X ने हस्ताक्षर किए।”
  • अब अदालत handwriting expert, scribe, और X के conduct (जैसे जमीन का कब्जा लेने के बाद व्यवहार) को देखकर निष्पादन सिद्ध कर सकती है।

⚖️ ✅ निष्कर्ष


धारा 70 BSA यह सुनिश्चित करती है कि attesting witness hostile होने पर भी दस्तावेज़ की प्रामाणिकता साबित की जा सके

  • यह न्यायिक प्रक्रिया में बाधा नहीं डालता।
  • दस्तावेज़ के execution को सिद्ध करने के लिए विविध प्रकार के साक्ष्य स्वीकार्य हैं।


September 13, 2025

अभियुक्त का अच्छा चरित्र ,क्या कोर्ट में बचाव का सहारा बन सकता है?

 


⚖️ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) की धारा 47

मूल प्रावधान:

दंड प्रक्रिया (Criminal Proceedings) में यह तथ्य कि अभियुक्त (Accused) का चरित्र अच्छा है, प्रासंगिक (Relevant) है।


🔹 

क्रिमिनल मामलों में जब किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगाया जाता है, तब उसका सदाचार / अच्छा चरित्र न्यायालय के समक्ष प्रासंगिक माना जाएगा।
👉 अर्थात यदि अभियुक्त का चरित्र समाज में अच्छा, ईमानदार और अपराधविरहित माना जाता है, तो यह तथ्य उसके पक्ष में गिना जाएगा।


🔹 क्यों प्रासंगिक है?

  • आपराधिक न्याय में अभियुक्त को “निर्दोष मानने का सिद्धांत” (Presumption of Innocence) प्राप्त है।
  • यदि अभियुक्त का चरित्र अच्छा है, तो यह उसके विरुद्ध आरोप की संभावना को कम कर सकता है।
  • इससे अभियुक्त को लाभ मिलता है, जबकि बुरे चरित्र को सामान्य रूप से अभियुक्त के विरुद्ध इस्तेमाल नहीं किया जाता (क्योंकि यह उसे पूर्वाग्रहित करेगा)।

🔹 उदाहरण (Illustration):

  1. A पर चोरी का आरोप है। यदि यह सिद्ध किया जाए कि A लंबे समय से एक ईमानदार व्यापारी है और समाज में उसकी प्रतिष्ठा सदाचारी व्यक्ति की है, तो यह तथ्य उसके पक्ष में प्रासंगिक होगा।
  2. B पर हत्या का आरोप है। यदि यह सिद्ध किया जाए कि B का आचरण सदा शांतिप्रिय और नैतिक रहा है, तो यह तथ्य अदालत में उसके बचाव में गिना जाएगा।

🔹 जोड़ने का कारण:

  • आपराधिक न्याय प्रणाली अभियुक्त को बचाव का पूरा अवसर देती है।
  • अदालत को यह समझने में मदद मिले कि क्या अभियुक्त की अच्छे चरित्र की प्रवृत्ति उस पर लगे अपराध के आरोप से मेल खाती है या नहीं।
  • यह प्रावधान अभियुक्त को अनुचित पूर्वाग्रह से बचाता है।

⚖️ निष्कर्ष:
धारा 47 यह सिद्धांत स्थापित करती है कि क्रिमिनल मामलों में अभियुक्त का अच्छा चरित्र साक्ष्य के रूप में प्रासंगिक होता है और उसे लाभ पहुँचा सकता है।


September 03, 2025

कब और कैसे न्यायालय लगाता है तथ्य का अनुमान आरोपी के खिलाफ़ भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 119 Legal Updates Online





भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 119


"न्यायालय किसी तथ्य के अस्तित्व के बारे में अनुमान लगा सकता है, अगर सामान्य परिस्थितियाँ, मानव आचरण, प्राकृतिक घटनाएँ, व्यापारिक व्यवहार और आम अनुभव यह दिखाते हैं कि वह तथ्य संभवतः हुआ होगा।"

●  मतलब, अगर कोई तथ्य सीधे सबूत से साबित नहीं हो रहा,


●  लेकिन परिस्थितियाँ, अनुभव और सामान्य व्यवहार यह बताते हैं कि ऐसा होना संभावना के अनुसार सही है, तो न्यायालय मान सकता है कि वह तथ्य हुआ है।




⚖️ यह अनुमान कब लगाया जाता है


न्यायालय दो चीज़ों को देखता है:


(i) सामान्य मानव आचरण → लोग आम तौर पर कैसे बर्ताव करते हैं।


(ii) प्राकृतिक घटनाएँ व व्यवसायिक लेन-देन → दुनिया में आमतौर पर क्या होता है।



अगर कोई घटना सामान्य प्रवृत्ति के अनुसार लगती है,

तो न्यायालय अनुमान लगाएगा।

अगर घटना असामान्य लगती है,

तो न्यायालय अनुमान नहीं लगाएगा।





⚖️ उदाहरणों (Illustrations) से समझिए


(a) चोरी की संपत्ति


●  अगर चोरी हुई है और किसी के पास चोरी के माल मिलते हैं तुरंत बाद,

तो न्यायालय मान सकता है:


●  या तो वह व्यक्ति चोर है,


●  या उसे पता था कि माल चोरी का है।


●  लेकिन, अगर वह व्यक्ति यह साबित कर दे कि उसने माल ईमानदारी से खरीदा, तो अनुमान हट जाएगा।



(b) सह-अपराधी की गवाही


●  अगर कोई सह-अपराधी (Accomplice) गवाही देता है,


●  तो न्यायालय मान सकता है कि वह पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है, जब तक उसकी गवाही महत्वपूर्ण बिंदुओं पर दूसरे सबूतों से मेल न खाती हो।




(c) बिल ऑफ एक्सचेंज / हंडी


● अगर कोई बिल ऑफ एक्सचेंज (हंडी) पर हस्ताक्षर करता है,


●  तो न्यायालय मान सकता है कि उसने असली लेन-देन के लिए ही किया होगा।


(d) किसी अवस्था की निरंतरता


● अगर पाँच दिन पहले नदी का बहाव एक दिशा में था,

और सामान्य रूप से नदी का रास्ता जल्दी नहीं बदलता,

●  तो न्यायालय मान सकता है कि नदी आज भी उसी दिशा में बह रही है।

● लेकिन, अगर बीच में बाढ़ आई थी,

तो अनुमान नहीं लगाया जाएगा।



(e) सरकारी और न्यायिक कार्यों की नियमितता


● अगर कोई न्यायिक आदेश या सरकारी कार्य हुआ है,

तो सामान्यतः न्यायालय मान लेगा कि वह नियमों के अनुसार हुआ है।



(f) व्यापार का सामान्य तरीका


● अगर डाक द्वारा चिट्ठी भेजी गई है,

तो न्यायालय मान सकता है कि वह पोस्ट हो गई होगी और पहुँच गई होगी।


● लेकिन, अगर सबूत मिले कि उस दिन डाक सेवा बाधित थी,

तो अनुमान नहीं लगाया जाएगा।



(g) सबूत न देने की स्थिति


●  अगर कोई व्यक्ति ऐसा दस्तावेज़ नहीं दिखाता


●  जो आसानी से वह पेश कर सकता था,


●  तो न्यायालय मान सकता है कि वह दस्तावेज़ उसके खिलाफ़ जाता।



(h) प्रश्न का उत्तर देने से इनकार


●  अगर कोई व्यक्ति ऐसा प्रश्न का उत्तर देने से मना करता है

जिसका जवाब देने के लिए वह क़ानूनन बाध्य नहीं है,

तो न्यायालय मान सकता है कि उसका उत्तर उसके खिलाफ़ जाता।



(i) दायित्व से जुड़ा दस्तावेज़


●  अगर कोई बांड (Bond) या दायित्व से जुड़ा दस्तावेज़ ऋणी (Obligor) के पास पाया जाता है, तो न्यायालय मान सकता है कि दायित्व खत्म हो गया है।




⚖️ न्यायालय क्या-क्या देखता है


धारा 119(2) कहती है कि अनुमान लगाते समय


न्यायालय निम्न बातों पर विचार करेगा:


●  दुकानदार रोज़ाना बहुत से सिक्के लेता है, तो एक चिह्नित सिक्का मिलना प्रमाण नहीं होगा।


●  बाढ़ आने के बाद नदी के पुराने रास्ते का अनुमान नहीं लगाया जाएगा।



●  डाक सेवा बाधित होने पर चिट्ठी मिलने का अनुमान नहीं लगाया जाएगा।


●  दस्तावेज़ छिपाने का कारण व्यक्तिगत प्रतिष्ठा भी हो सकता है।





⚖️ महत्वपूर्ण न्यायालयीन निर्णय (Case Laws)


🏛 Supreme Court Judgement In State of Rajasthan v. Kashi Ram (2006) 12 SCC 254 , न्यायालय ने कहा:“धारा 119 के तहत, न्यायालय सामान्य मानव आचरण और तार्किक परिस्थितियों के आधार पर अनुमान लगा सकता है।”



🏛 Supreme Court Judgement In  Trimukh Maroti Kirkan v. State of Maharashtra (2006) 10 SCC 681, सुप्रीम कोर्ट ने कहा:“जहाँ प्रत्यक्ष सबूत नहीं है, वहाँ न्यायालय परिस्थितिजन्य साक्ष्य और तार्किक संभावनाओं पर निर्णय कर सकता है।”





 निष्कर्ष


धारा 119 न्यायालय को तथ्यों का अनुमान लगाने की शक्ति देती है।

September 03, 2025

“Confession in Police Custody: कब मान्य, कब अमान्य?” “भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 23: अभियुक्त के मौलिक अधिकारों की ढाल”

 

“Confession in Police Custody: कब मान्य, कब अमान्य?”  “भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 23: अभियुक्त के मौलिक अधिकारों की ढाल” #Advocate #Rahul_Goswami #Gonda #Criminal_Lawyer

⚖️ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)
धारा 23


"भारतीय दंड प्रक्रिया में अभियुक्त द्वारा दी गई स्वीकारोक्ति (Confession) साक्ष्य के सबसे संवेदनशील पहलुओं में से एक है।


धारा 23 भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 का उद्देश्य  —


पुलिस के समक्ष दिया गया स्वीकारोक्ति (Confession)  सामान्यतः अविश्वसनीय है और अभियुक्त के विरुद्ध इस्तेमाल नहीं की जा सकती।

क्योंकि पुलिस हिरासत में बयान देते समय अभियुक्त पर डर, दबाव, प्रलोभन, या धमकी का असर हो सकता है।"


 धारा 23(1) 


●  किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष अभियुक्त द्वारा किया गया स्वीकारोक्ति (Confession) न्यायालय में अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

●  मतलब यह कि पुलिस के सामने दिया गया बयान मान्य साक्ष्य नहीं है, क्योंकि पुलिस के दबाव, डर या प्रलोभन में दिए गए बयान की सत्यता पर संदेह रहता है।


 धारा 23(2) 


●  यदि कोई व्यक्ति पुलिस अभिरक्षा (Police Custody) में रहते हुए स्वीकारोक्ति (confession) करता है, तो वह भी अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य के रूप में उपयोग नहीं की जाएगी,

●  जब तक कि वह स्वीकारोक्ति किसी मजिस्ट्रेट के तत्कालीन (Immediate) समक्ष न की गई हो।

●  यह प्रावधान अभियुक्त को सुरक्षा प्रदान करता है कि पुलिस हिरासत में उसका बयान स्वतंत्र और स्वेच्छा से ही दर्ज हो।


 

⚖️ प्रावधान (Proviso) –


●  यदि पुलिस अभिरक्षा में अभियुक्त से कोई सूचना प्राप्त होती है और उस सूचना के आधार पर कोई तथ्य (Fact) खोज निकाला जाता है, तो

●  उस सूचना का उतना ही हिस्सा साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होगा, जो सीधे-सीधे उस खोजे गए तथ्य से संबंधित हो।

भले ही वह सूचना स्वीकारोक्ति का हिस्सा हो या न हो।


⚖️ उदाहरण –



मान लीजिए अभियुक्त पुलिस अभिरक्षा में कहता है – “मैंने चाकू कुएँ में फेंका है।”


यदि पुलिस उस कुएँ से चाकू बरामद कर लेती है, तो अभियुक्त का यह कथन “कुएँ में चाकू है” स्वीकार्य होगा।


लेकिन यह हिस्सा “मैंने हत्या की है” स्वीकार्य नहीं होगा, क्योंकि वह आत्मस्वीकारोक्ति है।