⚖️ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) की धारा 47
मूल प्रावधान:
दंड प्रक्रिया (Criminal Proceedings) में यह तथ्य कि अभियुक्त (Accused) का चरित्र अच्छा है, प्रासंगिक (Relevant) है।
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क्रिमिनल मामलों में जब किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगाया जाता है, तब उसका सदाचार / अच्छा चरित्र न्यायालय के समक्ष प्रासंगिक माना जाएगा।
👉 अर्थात यदि अभियुक्त का चरित्र समाज में अच्छा, ईमानदार और अपराधविरहित माना जाता है, तो यह तथ्य उसके पक्ष में गिना जाएगा।
🔹 क्यों प्रासंगिक है?
- आपराधिक न्याय में अभियुक्त को “निर्दोष मानने का सिद्धांत” (Presumption of Innocence) प्राप्त है।
- यदि अभियुक्त का चरित्र अच्छा है, तो यह उसके विरुद्ध आरोप की संभावना को कम कर सकता है।
- इससे अभियुक्त को लाभ मिलता है, जबकि बुरे चरित्र को सामान्य रूप से अभियुक्त के विरुद्ध इस्तेमाल नहीं किया जाता (क्योंकि यह उसे पूर्वाग्रहित करेगा)।
🔹 उदाहरण (Illustration):
- A पर चोरी का आरोप है। यदि यह सिद्ध किया जाए कि A लंबे समय से एक ईमानदार व्यापारी है और समाज में उसकी प्रतिष्ठा सदाचारी व्यक्ति की है, तो यह तथ्य उसके पक्ष में प्रासंगिक होगा।
- B पर हत्या का आरोप है। यदि यह सिद्ध किया जाए कि B का आचरण सदा शांतिप्रिय और नैतिक रहा है, तो यह तथ्य अदालत में उसके बचाव में गिना जाएगा।
🔹 जोड़ने का कारण:
- आपराधिक न्याय प्रणाली अभियुक्त को बचाव का पूरा अवसर देती है।
- अदालत को यह समझने में मदद मिले कि क्या अभियुक्त की अच्छे चरित्र की प्रवृत्ति उस पर लगे अपराध के आरोप से मेल खाती है या नहीं।
- यह प्रावधान अभियुक्त को अनुचित पूर्वाग्रह से बचाता है।
⚖️ निष्कर्ष:
धारा 47 यह सिद्धांत स्थापित करती है कि क्रिमिनल मामलों में अभियुक्त का अच्छा चरित्र साक्ष्य के रूप में प्रासंगिक होता है और उसे लाभ पहुँचा सकता है।