भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023)
अध्याय – I (प्रारंभिक)
धारा 1 : संक्षिप्त नाम, लागू क्षेत्र और प्रवर्तन
धारा 1 की व्याख्या हिंदी में
धारा 1 में तीन मुख्य बिंदु (Essentials) दिए गए हैं :
(1) अधिनियम का संक्षिप्त नाम
"This Act may be called the Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023."
</>🔹 अर्थ – इस अधिनियम का नाम भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 रखा गया है।
🔹 महत्त्व – जब भी साक्ष्य से संबंधित मामलों में इस कानून का हवाला दिया जाएगा, तो इसे इसी नाम से संदर्भित किया जाएगा।
(2) लागू क्षेत्र
<>"It applies to all judicial proceedings in or before any Court, including Courts-martial,
but not to affidavits presented to any Court or officer, nor to proceedings before an arbitrator."
🔹 अर्थ –
- यह अधिनियम सभी न्यायिक कार्यवाहियों पर लागू होगा, जो किसी भी न्यायालय के समक्ष लंबित हों।
- यह सैन्य न्यायालयों (Courts-Martial) पर भी लागू होगा।
- किन पर लागू नहीं होगा –
- हलफ़नामों (Affidavits) पर लागू नहीं होगा।
- मध्यस्थ (Arbitrator) के समक्ष चल रही कार्यवाहियों पर भी लागू नहीं होगा।
🔹 कारण –
- हलफ़नामों में तथ्य शपथपूर्वक प्रस्तुत किए जाते हैं, इसलिए वहाँ अलग प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।
- मध्यस्थ (Arbitrator) की कार्यवाही न्यायिक नहीं बल्कि अर्ध-न्यायिक (quasi-judicial) होती है, इसलिए साक्ष्य अधिनियम वहाँ बाध्यकारी नहीं है।
(3) प्रवर्तन तिथि
"It shall come into force on such date as the Central Government may, by notification in the Official Gazette, appoint."
</>🔹 अर्थ – यह अधिनियम उसी दिन से प्रभावी होगा, जिसे केंद्रीय सरकार अधिसूचना (Notification) द्वारा राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित करेगी।
🔹 महत्त्व – जब तक सरकार अधिसूचना जारी नहीं करती, यह अधिनियम लागू नहीं माना जाएगा।
धारा 1 के मुख्य बिंदु (Essentials at a Glance)
बिंदु | विवरण |
---|---|
संक्षिप्त नाम | भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 |
लागू क्षेत्र | सभी न्यायालय, कोर्ट-मार्शल सहित |
अपवाद (नहीं लागू) | हलफ़नामे, मध्यस्थ की कार्यवाही |
प्रवर्तन तिथि | केंद्र सरकार की अधिसूचना से तय |
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023) की धारा 1(2) में साफ़ कहा गया है कि हलफ़नामों (Affidavits) और मध्यस्थता (Mediation / Arbitration) की कार्यवाहियों पर यह अधिनियम लागू नहीं होगा। इसका विधिक कारण (Legal Reasoning) निम्न प्रकार से है:
(A) हलफ़नामों (Affidavits) पर लागू न होने का विधिक कारण
1. साक्ष्य की परिभाषा से संबंधित
- हलफ़नामा एक लिखित बयान होता है जो शपथ (Oath) पर दिया जाता है और संबंधित व्यक्ति स्वयं तथ्यों की सत्यता की गारंटी देता है।
- जब कोई तथ्य हलफ़नामे में शपथपूर्वक प्रस्तुत किया गया है, तो अदालत उसे प्रारंभिक रूप से सही मान लेती है।
- इसलिए, हलफ़नामे की सत्यता की जाँच साक्ष्य अधिनियम के तहत नहीं की जाती।
📌 प्रमुख केस लॉ
के.के. वेलायुधन बनाम सुकुमरन (AIR 1991 SC 1083)
"हलफ़नामे में जो तथ्य प्रस्तुत किए जाते हैं, वे शपथ पर आधारित होते हैं। इसलिए साक्ष्य अधिनियम की विस्तृत प्रक्रिया यहाँ लागू नहीं होती।"
2. प्रक्रिया संबंधी प्रावधान
- सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908 की आदेश XIX (Order XIX) में हलफ़नामों का प्रावधान है।
- वहाँ स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जहाँ अदालत हलफ़नामे को स्वीकार करती है, वहाँ मौखिक साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती।
- इसीलिए, साक्ष्य अधिनियम की धाराएँ (जैसे जिरह, गवाही की प्रामाणिकता, दस्तावेज़ प्रमाणन) यहाँ लागू नहीं की जातीं।
(B) मध्यस्थता / मेडिएशन (Arbitration / Mediation) पर लागू न होने का विधिक कारण
1. मध्यस्थता न्यायिक कार्यवाही नहीं है
- मध्यस्थता (Arbitration) और मेडिएशन अर्ध-न्यायिक (Quasi-Judicial) प्रकृति की प्रक्रिया हैं, न कि पूर्ण न्यायिक।
- साक्ष्य अधिनियम विशेष रूप से न्यायिक कार्यवाहियों के लिए बनाया गया है।
- इसलिए, मध्यस्थता में पक्षकारों को लचीलापन (Flexibility) दिया गया है, ताकि वे साक्ष्य, दस्तावेज़, और गवाही को सरल तरीक़े से प्रस्तुत कर सकें।
2. विधिक प्रावधान
- मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 (Arbitration and Conciliation Act, 1996) की धारा 19 कहती है:
“मध्यस्थता न्यायाधिकरण भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (अब 2023) की धाराओं से बाध्य नहीं होगा।”
</>इसका उद्देश्य है कि मध्यस्थता प्रक्रिया को तेज़, सरल और कम तकनीकी बनाया जाए।
📌 प्रमुख केस लॉ
Fali S. Nariman बनाम Union of India (2004) 5 SCC 1
"मध्यस्थता की प्रकृति न्यायिक नहीं, बल्कि समझौते पर आधारित है। इसलिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम यहाँ बाध्यकारी नहीं है।"
</>मैं आपको भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (Bharatiya Sakshya Adhiniyam - BSA) की धारा 2 को सरल, विधिक और विस्तारपूर्वक हिंदी में समझाऊँगा। प्रत्येक उपधारा (sub-section) को अलग-अलग समझाते हुए महत्वपूर्ण बिंदुओं को हाइलाइट करूँगा ताकि यह कोर्ट में काम आए।
धारा 2 – परिभाषाएँ (Definitions)
इस धारा में साक्ष्य अधिनियम में प्रयुक्त प्रमुख शब्दों की कानूनी परिभाषाएँ दी गई हैं। अदालत में साक्ष्य की स्वीकार्यता, प्रासंगिकता और प्रमाणिकता तय करने में ये परिभाषाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
(a) “Court” (अदालत)
<>अर्थ:
“अदालत” में सभी न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट और वे सभी व्यक्ति आते हैं जो विधि द्वारा साक्ष्य लेने के लिए अधिकृत हैं।
ध्यान दें → अरबिट्रेटर (मध्यस्थ) इसमें शामिल नहीं हैं।
🔹 महत्व: यदि कोई व्यक्ति अदालत द्वारा अधिकृत नहीं है, तो वहाँ दिये गये साक्ष्य BSA के अंतर्गत नहीं आएँगे।
(b) “Conclusive Proof” (निश्चायक प्रमाण)
जब इस अधिनियम के तहत किसी एक तथ्य को किसी अन्य तथ्य का निश्चायक प्रमाण घोषित कर दिया गया है, तो:
- कोर्ट को इसे अंतिम मानना ही होगा।
- इसके विरुद्ध कोई साक्ष्य स्वीकार नहीं होगा।
📌 उदाहरण:
यदि जन्म प्रमाणपत्र से यह साबित हो जाए कि A की जन्मतिथि 01.01.2000 है, तो कोई अन्य साक्ष्य यह साबित नहीं कर सकता कि जन्मतिथि कुछ और है।
(c) “Disproved” (असिद्ध)
जब अदालत उपलब्ध साक्ष्यों पर विचार करने के बाद:
- यह मानती है कि कोई तथ्य अस्तित्व में नहीं है, या
- यह मानती है कि उसका अस्तित्व अत्यधिक असंभावित है,
तो वह तथ्य असिद्ध (Disproved) कहलाता है।
(d) “Document” (दस्तावेज़)
कोई भी सामग्री जिस पर किसी विषय को दर्ज, लिखा, छापा, फोटोग्राफ़ किया या डिजिटल रूप से संग्रहीत किया गया हो।
उदाहरण:
- हाथ से लिखा कागज
- प्रिंटेड किताब
- नक्शा या प्लान
- शिलालेख
- कार्टून या व्यंग्यचित्र
- डिजिटल साक्ष्य: ईमेल, सर्वर लॉग, कंप्यूटर/मोबाइल फाइलें, लोकेशन ट्रैक, वॉइसमेल आदि
🔹 महत्व → अब इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल साक्ष्य भी BSA के तहत “दस्तावेज़” माने जाते हैं।
(e) “Evidence” (साक्ष्य)
साक्ष्य दो प्रकार के होते हैं:
- Oral Evidence (मौखिक साक्ष्य) →
- गवाह द्वारा अदालत में दिये गये बयान,
- चाहे वह व्यक्तिगत रूप से हो या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से।
- Documentary Evidence (दस्तावेजी साक्ष्य) →
- कोई भी दस्तावेज़ (फिजिकल या डिजिटल),
- जिसे अदालत के निरीक्षण हेतु प्रस्तुत किया जाता है।
(f) “Fact” (तथ्य)
तथ्य दो प्रकार के होते हैं:
- भौतिक तथ्य → जो इंद्रियों द्वारा महसूस किए जा सकते हैं।
- मानसिक स्थिति → व्यक्ति की राय, इरादा, सद्भावना, धोखाधड़ी, भावना आदि।
उदाहरण:
- “A ने B को गोली मारी” → तथ्य
- “A ने B की हत्या करने का इरादा किया” → मानसिक तथ्य
(g) “Facts in Issue” (विवादित तथ्य)
वे तथ्य जिनका अस्तित्व या अनस्तित्व तय करना किसी मुकदमे या कार्यवाही के निर्णय के लिए आवश्यक हो।
उदाहरण:
यदि A पर B की हत्या का आरोप है, तो ये facts in issue होंगे:
- क्या A ने B की हत्या की?
- क्या A का इरादा था?
- क्या A ने अचानक उकसावे में हत्या की?
- क्या A मानसिक रूप से अस्वस्थ था?
(h) “May Presume” (मानने की अनुमति)
जब कानून कहता है कि अदालत मान सकती है कि कोई तथ्य सही है, तो अदालत:
- चाहे तो इसे सही मान सकती है, या
- चाहे तो उस पर अतिरिक्त साक्ष्य भी मांग सकती है।
(i) “Not Proved” (अप्रमाणित)
जब कोई तथ्य न तो सिद्ध होता है और न ही असिद्ध, तो वह अप्रमाणित कहलाता है।
(j) “Proved” (सिद्ध)
जब अदालत को उपलब्ध साक्ष्यों से विश्वास हो जाता है कि कोई तथ्य मौजूद है, या
- उसकी संभावना इतनी अधिक है कि एक सावधान व्यक्ति भी इसे सही मानेगा,
तो वह तथ्य सिद्ध कहलाता है।
(k) “Relevant” (प्रासंगिक)
कोई तथ्य तब प्रासंगिक माना जाता है जब वह सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से मुख्य विवादित तथ्य से जुड़ा हुआ हो।
📌 उदाहरण:
हत्या के मुकदमे में आरोपी के मोबाइल लोकेशन का रिकॉर्ड प्रासंगिक साक्ष्य होगा।
(l) “Shall Presume” (अनिवार्य अनुमान)
जब अधिनियम कहता है कि अदालत मान ही लेगी कि कोई तथ्य सही है,
- तब तक उसे सही माना जाएगा जब तक कोई इसे असिद्ध न कर दे।
📌 उदाहरण:
रजिस्टर्ड डाक का डिलीवरी रिकॉर्ड अदालत मान ही लेती है कि पत्र पहुंचा, जब तक इसका उल्टा साबित न हो।
(2) अन्य अधिनियमों से परिभाषाएँ
यदि किसी शब्द की परिभाषा BSA में नहीं दी गई है, तो उसकी परिभाषा IT Act 2000, BNS 2023 या BNSS 2023 से ली जाएगी।