धारा 23
"भारतीय दंड प्रक्रिया में अभियुक्त द्वारा दी गई स्वीकारोक्ति (Confession) साक्ष्य के सबसे संवेदनशील पहलुओं में से एक है।
धारा 23 भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 का उद्देश्य —
पुलिस के समक्ष दिया गया स्वीकारोक्ति (Confession) सामान्यतः अविश्वसनीय है और अभियुक्त के विरुद्ध इस्तेमाल नहीं की जा सकती।
क्योंकि पुलिस हिरासत में बयान देते समय अभियुक्त पर डर, दबाव, प्रलोभन, या धमकी का असर हो सकता है।"
धारा 23(1)
● किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष अभियुक्त द्वारा किया गया स्वीकारोक्ति (Confession) न्यायालय में अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
● मतलब यह कि पुलिस के सामने दिया गया बयान मान्य साक्ष्य नहीं है, क्योंकि पुलिस के दबाव, डर या प्रलोभन में दिए गए बयान की सत्यता पर संदेह रहता है।
धारा 23(2)
● यदि कोई व्यक्ति पुलिस अभिरक्षा (Police Custody) में रहते हुए स्वीकारोक्ति (confession) करता है, तो वह भी अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य के रूप में उपयोग नहीं की जाएगी,
● जब तक कि वह स्वीकारोक्ति किसी मजिस्ट्रेट के तत्कालीन (Immediate) समक्ष न की गई हो।
● यह प्रावधान अभियुक्त को सुरक्षा प्रदान करता है कि पुलिस हिरासत में उसका बयान स्वतंत्र और स्वेच्छा से ही दर्ज हो।
● यदि पुलिस अभिरक्षा में अभियुक्त से कोई सूचना प्राप्त होती है और उस सूचना के आधार पर कोई तथ्य (Fact) खोज निकाला जाता है, तो
● उस सूचना का उतना ही हिस्सा साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होगा, जो सीधे-सीधे उस खोजे गए तथ्य से संबंधित हो।
भले ही वह सूचना स्वीकारोक्ति का हिस्सा हो या न हो।
मान लीजिए अभियुक्त पुलिस अभिरक्षा में कहता है – “मैंने चाकू कुएँ में फेंका है।”
यदि पुलिस उस कुएँ से चाकू बरामद कर लेती है, तो अभियुक्त का यह कथन “कुएँ में चाकू है” स्वीकार्य होगा।
लेकिन यह हिस्सा “मैंने हत्या की है” स्वीकार्य नहीं होगा, क्योंकि वह आत्मस्वीकारोक्ति है।