"न्यायालय किसी तथ्य के अस्तित्व के बारे में अनुमान लगा सकता है, अगर सामान्य परिस्थितियाँ, मानव आचरण, प्राकृतिक घटनाएँ, व्यापारिक व्यवहार और आम अनुभव यह दिखाते हैं कि वह तथ्य संभवतः हुआ होगा।"
● मतलब, अगर कोई तथ्य सीधे सबूत से साबित नहीं हो रहा,
● लेकिन परिस्थितियाँ, अनुभव और सामान्य व्यवहार यह बताते हैं कि ऐसा होना संभावना के अनुसार सही है, तो न्यायालय मान सकता है कि वह तथ्य हुआ है।
न्यायालय दो चीज़ों को देखता है:
(i) सामान्य मानव आचरण → लोग आम तौर पर कैसे बर्ताव करते हैं।
(ii) प्राकृतिक घटनाएँ व व्यवसायिक लेन-देन → दुनिया में आमतौर पर क्या होता है।
अगर कोई घटना सामान्य प्रवृत्ति के अनुसार लगती है,
तो न्यायालय अनुमान लगाएगा।
अगर घटना असामान्य लगती है,
तो न्यायालय अनुमान नहीं लगाएगा।
(a) चोरी की संपत्ति
● अगर चोरी हुई है और किसी के पास चोरी के माल मिलते हैं तुरंत बाद,
तो न्यायालय मान सकता है:
● या तो वह व्यक्ति चोर है,
● या उसे पता था कि माल चोरी का है।
● लेकिन, अगर वह व्यक्ति यह साबित कर दे कि उसने माल ईमानदारी से खरीदा, तो अनुमान हट जाएगा।
(b) सह-अपराधी की गवाही
● अगर कोई सह-अपराधी (Accomplice) गवाही देता है,
● तो न्यायालय मान सकता है कि वह पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है, जब तक उसकी गवाही महत्वपूर्ण बिंदुओं पर दूसरे सबूतों से मेल न खाती हो।
(c) बिल ऑफ एक्सचेंज / हंडी
● अगर कोई बिल ऑफ एक्सचेंज (हंडी) पर हस्ताक्षर करता है,
● तो न्यायालय मान सकता है कि उसने असली लेन-देन के लिए ही किया होगा।
(d) किसी अवस्था की निरंतरता
● अगर पाँच दिन पहले नदी का बहाव एक दिशा में था,
और सामान्य रूप से नदी का रास्ता जल्दी नहीं बदलता,
● तो न्यायालय मान सकता है कि नदी आज भी उसी दिशा में बह रही है।
● लेकिन, अगर बीच में बाढ़ आई थी,
तो अनुमान नहीं लगाया जाएगा।
(e) सरकारी और न्यायिक कार्यों की नियमितता
● अगर कोई न्यायिक आदेश या सरकारी कार्य हुआ है,
तो सामान्यतः न्यायालय मान लेगा कि वह नियमों के अनुसार हुआ है।
(f) व्यापार का सामान्य तरीका
● अगर डाक द्वारा चिट्ठी भेजी गई है,
तो न्यायालय मान सकता है कि वह पोस्ट हो गई होगी और पहुँच गई होगी।
● लेकिन, अगर सबूत मिले कि उस दिन डाक सेवा बाधित थी,
तो अनुमान नहीं लगाया जाएगा।
(g) सबूत न देने की स्थिति
● अगर कोई व्यक्ति ऐसा दस्तावेज़ नहीं दिखाता
● जो आसानी से वह पेश कर सकता था,
● तो न्यायालय मान सकता है कि वह दस्तावेज़ उसके खिलाफ़ जाता।
(h) प्रश्न का उत्तर देने से इनकार
● अगर कोई व्यक्ति ऐसा प्रश्न का उत्तर देने से मना करता है
जिसका जवाब देने के लिए वह क़ानूनन बाध्य नहीं है,
तो न्यायालय मान सकता है कि उसका उत्तर उसके खिलाफ़ जाता।
(i) दायित्व से जुड़ा दस्तावेज़
● अगर कोई बांड (Bond) या दायित्व से जुड़ा दस्तावेज़ ऋणी (Obligor) के पास पाया जाता है, तो न्यायालय मान सकता है कि दायित्व खत्म हो गया है।
धारा 119(2) कहती है कि अनुमान लगाते समय
न्यायालय निम्न बातों पर विचार करेगा:
● दुकानदार रोज़ाना बहुत से सिक्के लेता है, तो एक चिह्नित सिक्का मिलना प्रमाण नहीं होगा।
● बाढ़ आने के बाद नदी के पुराने रास्ते का अनुमान नहीं लगाया जाएगा।
● डाक सेवा बाधित होने पर चिट्ठी मिलने का अनुमान नहीं लगाया जाएगा।
● दस्तावेज़ छिपाने का कारण व्यक्तिगत प्रतिष्ठा भी हो सकता है।
निष्कर्ष
धारा 119 न्यायालय को तथ्यों का अनुमान लगाने की शक्ति देती है।