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मीडिया की स्वतंत्रता बनाम पीड़ित की गरिमा । यौन अपराध मामलों में पहचान उजागर करना: कब अपराध, कब अपवाद । Advocate Rahul Goswami

 

मीडिया की स्वतंत्रता बनाम पीड़ित की गरिमा । यौन अपराध मामलों में पहचान उजागर करना: कब अपराध, कब अपवाद । Advocate Rahul Goswami

⚖️ यौन अपराध मामलों में पहचान उजागर करना: कब अपराध, कब अपवाद
Section 72 (BNS),
  

उपधारा (1): अगर कोई व्यक्ति किसी पीड़ित ( जिसके साथ यौन अपराध, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, बच्चों पर अपराध हुआ) की पहचान छापता है या प्रकाशित करता है जैसे पीड़ित का नाम, फोटो, पता, स्कूल, ऑफिस, रिश्तेदार, या कोई भी ऐसी जानकारी जिससे पीड़ित की पहचान उजागर हो सकती है, तो ऐसा करना दंडनीय अपराध होगा। Section 72 (1) BNS 


⚖️ दंड:


कैद: अधिकतम 2 वर्ष (कठोर या साधारण)


जुर्माना: न्यायालय तय करेगा

या दोनों हो सकते हैं।




 

⚖️ अपवाद (exceptions)
Section 72 (2) BNS 
 

नीचे बताए गए मामलों में पीड़ित की पहचान प्रकाशित की जा सकती है:


(a) अगर थाने का प्रभारी अधिकारी या जांच करने वाला पुलिस अधिकारी लिखित आदेश देकर अच्छी नीयत (good faith) से जांच के उद्देश्य से जानकारी प्रकाशित करने की अनुमति देता है।


(b) अगर स्वयं पीड़ित लिखित में अनुमति देता है कि उसकी पहचान प्रकाशित की जा सकती है।


(c) अगर पीड़ित की मृत्यु हो गई है, या वह बच्चा है, या मानसिक रूप से अस्वस्थ है, तो उसके निकट संबंधी (next of kin) लिखित में अनुमति दे सकते हैं।



लेकिन, शर्त:


निकट संबंधी केवल मान्यता प्राप्त सामाजिक कल्याण संस्थान के अध्यक्ष या सचिव को ही अनुमति दे सकते हैं।


कोई अन्य व्यक्ति या संगठन सीधे अनुमति नहीं ले सकता।




उदाहरण 1:


किसी लड़की के साथ बलात्कार हुआ है। अगर कोई अखबार, वेबसाइट, यूट्यूब चैनल, या सोशल मीडिया उसकी तस्वीर या नाम प्रकाशित करता है, तो वह धारा 72(1) के तहत अपराध है।


उदाहरण 2:

अगर पीड़ित स्वयं वीडियो में आकर अपना नाम बताना चाहती है, और वह लिखित में अनुमति देती है, तो यह धारा 72(2)(b) के तहत वैध होगा।


उदाहरण 3:

अगर पुलिस जांच के दौरान जानकारी सार्वजनिक करना चाहती है, तो वह धारा 72(2)(a) के तहत लिखित आदेश जारी कर सकती है।