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September 07, 2025

आपराधिक मामलों में देरी ‘मानसिक कारावास’ के समान : सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी आपराधिक मुकदमे को अनुचित रूप से लंबा खींचना अभियुक्त के लिए “मानसिक कारावास” के समान है।

न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया और ए.एस. चंदुरकर की पीठ ने यह टिप्पणी तब की, जब उसने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दोषी ठहराई गई 75 वर्षीय महिला की सजा में राहत दी।


मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 22 वर्ष पुराना है, जिसमें महिला पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क निरीक्षक के पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार का आरोप था।

  • निचली अदालत ने महिला को एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।
  • मद्रास उच्च न्यायालय ने अगस्त 2010 में इस सजा को बरकरार रखा।
  • इसके खिलाफ महिला ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।


सुप्रीम कोर्ट का फैसला

  • दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए, अदालत ने महिला की सजा को घटाकर वही अवधि कर दी, जो वह पहले ही जेल में बिता चुकी थी।
  • हालांकि, अदालत ने जुर्माने की राशि में ₹25,000 की वृद्धि की।
  • अदालत ने कहा, “22 वर्षों तक मुकदमे का बोझ उठाना स्वयं में ही एक सजा के समान है।”


महत्वपूर्ण अवलोकन

पीठ ने स्पष्ट किया कि:

किसी व्यक्ति को दशकों तक आपराधिक कार्यवाही में उलझाए रखना उसकी स्वतंत्रता, गरिमा और मानसिक शांति पर गंभीर आघात है। यह ‘मानसिक कारावास’ के समान कष्टकारी है।

यह फैसला इस बात पर जोर देता है कि न्याय में अनावश्यक देरी न केवल अभियुक्त के मौलिक अधिकारों का हनन है, बल्कि त्वरित न्याय की संवैधानिक भावना के भी विपरीत है।


September 05, 2025

“साफ़ समाज, सुरक्षित समाज — कानून का पालन सबका कर्तव्य।”



"समाज में हर व्यक्ति को स्वतंत्रता है… लेकिन जब किसी की स्वतंत्रता दूसरों की शांति और सुरक्षा में बाधा डालती है, तब कानून दखल देता है। आज हम बात करेंगे भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 292 की, जो ‘सार्वजनिक उपद्रव’ यानी Public Nuisance से जुड़ी है।"


  • सड़क पर कूड़ा फेंकते हुए लोग
  • सार्वजनिक स्थान पर तेज आवाज में लाउडस्पीकर
  • भीड़भाड़ वाले बाजार में उत्पन्न अव्यवस्था

📜 धारा का कानूनी सार
भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 292 उन कार्यों को दंडित करती है,

  • जो सार्वजनिक स्वास्थ्य,
  • सुरक्षा,
  • सुविधा
    या समाज के शांतिपूर्ण वातावरण के लिए हानिकारक हों।

लेकिन एक शर्त है — यदि वह कार्य किसी अन्य धारा के तहत पहले से दंडनीय नहीं है।


⚖️ दंड का प्रावधान
यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक उपद्रव करता है,
तो उसे अधिकतम ₹1,000 तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।


🧩 उदाहरण

  • सड़क पर कूड़ा फेंकना
  • सार्वजनिक स्थान पर अत्यधिक शोर मचाना
  • किसी पार्क या मंदिर परिसर में गंदगी फैलाना
  • ऐसी कोई भी हरकत जो समाज की सामान्य जीवनशैली और शांतिपूर्ण वातावरण को बिगाड़ती हो


"याद रखिए, कानून सिर्फ सज़ा देने के लिए नहीं है, बल्कि समाज में अनुशासन और संतुलन बनाए रखने के लिए है। बीएनएस की धारा 292 हमें यही सिखाती है — आपकी आज़ादी वहीं तक है, जहाँ तक दूसरों की शांति और सुरक्षा बरकरार रहे।"





September 05, 2025

धारा 80 से 87 (BNS) “विवाह से संबंधित अपराधों”

 




BNS धारा 80 – दहेज मृत्यु (Dowry Death)

80. (1) Where the death of a woman is caused by any burns or bodily injury or occurs otherwise than under normal circumstances within seven years of her marriage and it is shown that soon before her death she was subjected to cruelty or harassment by her husband or any relative of her husband for, or in connection with, any demand for dowry, such death shall be called “dowry death”, and such husband or relative shall be deemed to have caused her death.

Explanation.—For the purposes of this sub-section, “dowry” shall have the same meaning as in section 2 of the Dowry Prohibition Act, 1961.

(2) Whoever commits dowry death shall be punished with imprisonment for a term which shall not be less than seven years but which may extend to imprisonment for life.


यदि किसी विवाहित महिला की विवाह के सात वर्ष के भीतर जलने, शारीरिक चोट या अस्वाभाविक परिस्थितियों में मृत्यु हो जाती है, और यह सिद्ध हो कि मृत्यु से ठीक पहले उसे पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा दहेज की मांग के लिए क्रूरता या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था, तो ऐसी मृत्यु को दहेज मृत्यु कहा जाएगा।

दंड:

  • न्यूनतम सजा: 7 वर्ष का कठोर कारावास
  • अधिकतम सजा: आजीवन कारावास

Essentials (आवश्यक तत्व):

  1. महिला की मृत्यु विवाह के 7 वर्षों के भीतर हो।
  2. मृत्यु जलने, शारीरिक चोट या अस्वाभाविक परिस्थितियों में हो।
  3. मृतका को मृत्यु से ठीक पहले क्रूरता या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो।
  4. क्रूरता या उत्पीड़न दहेज की मांग से संबंधित हो।
  5. पति या उसके रिश्तेदार पर आरोप सिद्ध होना चाहिए।

BNS धारा 81 – धोखे से विवाह का विश्वास दिलाकर सहवास (Cohabitation by Deceitful Marriage)

परिभाषा:
यदि कोई पुरुष, किसी महिला को यह झूठा विश्वास दिलाता है कि वह उससे कानूनी रूप से विवाहित है, और इस विश्वास के आधार पर महिला उसके साथ सहवास या यौन संबंध स्थापित करती है, तो यह अपराध है।

दंड:

  • अधिकतम सजा: 10 वर्ष का कारावास
  • साथ में जुर्माना भी लग सकता है।

Essentials:

  1. आरोपी पुरुष हो।
  2. महिला कानूनी पत्नी न हो।
  3. पुरुष धोखे से महिला को वैवाहिक संबंध का विश्वास दिलाए।
  4. महिला उसी विश्वास के आधार पर सहवास या यौन संबंध बनाए।

BNS धारा 82 – द्विविवाह (Bigamy)

परिभाषा:
यदि कोई व्यक्ति, पति या पत्नी जीवित होने के बावजूद, दूसरी शादी करता है, और वह शादी कानूनन शून्य (Void) है, तो यह अपराध है।

दंड:

  • उपधारा (1): अधिकतम 7 वर्ष का कारावास + जुर्माना।
  • उपधारा (2): यदि आरोपी ने पहले विवाह की जानकारी छिपाई है, तो सजा 10 वर्ष तक बढ़ सकती है + जुर्माना।

Exception:

  • यदि पहला विवाह न्यायालय द्वारा शून्य घोषित किया गया हो।
  • यदि पहला पति/पत्नी 7 वर्षों से लापता हो और कोई जीवित होने की सूचना न हो।
  • लेकिन — नए विवाह से पहले व्यक्ति को सच्चाई बताना अनिवार्य है।

Essentials:

  1. पहला विवाह वैध होना चाहिए।
  2. पति/पत्नी जीवित हो।
  3. दूसरा विवाह जानबूझकर किया गया हो।
  4. यदि दूसरा विवाह छुपाकर किया जाए → अधिक सजा

BNS धारा 83 – धोखे से विवाह का ढोंग (Fraudulent Marriage Ceremony)

परिभाषा:
यदि कोई व्यक्ति, ईमानदारी के विरुद्ध या धोखाधड़ी से, विवाह का ढोंग रचता है जबकि वह जानता है कि वह विवाह वैध नहीं है, तो यह अपराध है।

दंड:

  • अधिकतम 7 वर्ष का कारावास + जुर्माना।

Essentials:

  1. आरोपी जानबूझकर विवाह का ढोंग रचे।
  2. आरोपी जानता हो कि विवाह कानूनी रूप से वैध नहीं है।
  3. धोखाधड़ी का इरादा साबित होना चाहिए।

BNS धारा 84 – किसी की पत्नी को बहलाना-फुसलाना (Enticing Away Wife)

परिभाषा:
यदि कोई व्यक्ति, किसी महिला को, जो किसी और की पत्नी है, यह जानते हुए कि वह विवाहित है, अवैध संबंध बनाने के इरादे से ले जाता है, बहकाता है, छुपाता है या रोकता है, तो यह अपराध है।

दंड:

  • अधिकतम 2 वर्ष का कारावास
  • या जुर्माना
  • या दोनों।

Essentials:

  1. महिला किसी और की पत्नी हो।
  2. आरोपी को महिला की वैवाहिक स्थिति की जानकारी हो।
  3. उद्देश्य महिला को अवैध यौन संबंध के लिए बहकाना, ले जाना, छिपाना या रोकना हो।

BNS धारा 85 – पत्नी पर क्रूरता (Cruelty by Husband or Relatives)

परिभाषा:
यदि पति या पति का कोई रिश्तेदार किसी महिला पर क्रूरता करता है, तो यह अपराध है।

दंड:

  • अधिकतम 3 वर्ष का कारावास
  • साथ में जुर्माना

BNS धारा 86 – क्रूरता की परिभाषा (Definition of Cruelty)

क्रूरता के दो प्रकार:

(a) शारीरिक/मानसिक क्रूरता

  • कोई भी ऐसा जानबूझकर किया गया आचरण जो महिला को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित कर सकता है,
    या उसके जीवन, अंग, शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति पहुँचा सकता है।

(b) दहेज हेतु उत्पीड़न

  • महिला या उसके रिश्तेदारों से अवैध दहेज की मांग के लिए किया गया उत्पीड़न,
    या दहेज न मिलने पर दिया गया मानसिक/शारीरिक कष्ट।

BNS धारा 87 – महिला का अपहरण कर जबरन विवाह या अवैध संबंध (Kidnapping to Compel Marriage or Illicit Intercourse)

परिभाषा:
यदि कोई व्यक्ति, किसी महिला का अपहरण या अपहरण का प्रयास इस इरादे से करता है कि:

  1. उसे जबरन विवाह करने पर मजबूर करे,
  2. या उसे अवैध यौन संबंध के लिए बाध्य करे,
    तो यह अपराध है।

दंड:

  • अधिकतम 10 वर्ष का कारावास + जुर्माना।

Essentials:

  1. आरोपी ने महिला का अपहरण या अवरोध किया हो।
  2. उद्देश्य महिला को जबरन विवाह या अवैध यौन संबंध के लिए बाध्य करना हो।
  3. अपराध जानबूझकर किया गया हो।



BNS धारा 80 से 87 पर आधारित MCQ

(Of Offences Relating to Marriage)


धारा 80 – दहेज मृत्यु (Dowry Death)

Q1. BNS की धारा 80 के अनुसार, दहेज मृत्यु किस अवधि के भीतर होने पर लागू होती है?
a) 5 वर्ष
b) 7 वर्ष ✅
c) 10 वर्ष
d) 12 वर्ष
Answer: b) 7 वर्ष


Q2. दहेज मृत्यु का दंड क्या है?
a) न्यूनतम 5 वर्ष, अधिकतम 10 वर्ष
b) न्यूनतम 7 वर्ष, अधिकतम आजीवन कारावास ✅
c) केवल 10 वर्ष
d) केवल आजीवन कारावास
Answer: b) न्यूनतम 7 वर्ष, अधिकतम आजीवन कारावास


Q3. धारा 80 के तहत दहेज मृत्यु सिद्ध करने के लिए कौन-सा आवश्यक तत्व नहीं है?
a) मृत्यु विवाह के 7 वर्ष में होनी चाहिए
b) मृत्यु दहेज उत्पीड़न से पहले हुई हो
c) मृत्यु अस्वाभाविक परिस्थितियों में हुई हो
d) मृत्यु से पहले महिला को दहेज के लिए उत्पीड़न हुआ हो ✅
Answer: d)


धारा 81 – धोखे से विवाह का विश्वास दिलाना (Cohabitation by Deceitful Marriage)

Q4. BNS धारा 81 के तहत अपराध की अधिकतम सजा क्या है?
a) 5 वर्ष
b) 7 वर्ष
c) 10 वर्ष ✅
d) आजीवन कारावास
Answer: c) 10 वर्ष


Q5. धारा 81 लागू होने के लिए कौन-सा तत्व आवश्यक है?
a) पुरुष महिला को विवाह का विश्वास दिलाए ✅
b) महिला विवाहित हो
c) महिला ने सहमति न दी हो
d) महिला की आयु 18 वर्ष से कम हो
Answer: a)


धारा 82 – द्विविवाह (Bigamy)

Q6. BNS धारा 82(1) के तहत दूसरी शादी करने पर अधिकतम सजा क्या है?
a) 3 वर्ष
b) 5 वर्ष
c) 7 वर्ष ✅
d) 10 वर्ष
Answer: c) 7 वर्ष


Q7. यदि आरोपी ने पहले विवाह की जानकारी छिपाई हो, तो धारा 82(2) के तहत अधिकतम सजा क्या होगी?
a) 7 वर्ष
b) 8 वर्ष
c) 10 वर्ष ✅
d) 12 वर्ष
Answer: c) 10 वर्ष


Q8. धारा 82 के तहत अपराध नहीं होगा यदि —
a) आरोपी की पहली पत्नी जीवित हो
b) आरोपी की पहली शादी न्यायालय द्वारा शून्य घोषित की गई हो ✅
c) आरोपी ने पहला विवाह छुपाया हो
d) आरोपी ने दूसरा विवाह गुप्त रूप से किया हो
Answer: b)


धारा 83 – धोखे से विवाह का ढोंग (Fraudulent Marriage Ceremony)

Q9. धारा 83 के तहत अपराध की अधिकतम सजा क्या है?
a) 3 वर्ष
b) 5 वर्ष
c) 7 वर्ष ✅
d) 10 वर्ष
Answer: c) 7 वर्ष


Q10. धारा 83 लागू होने के लिए आरोपी में क्या साबित होना चाहिए?
a) महिला अविवाहित हो
b) आरोपी का विवाह वैध हो
c) आरोपी का धोखाधड़ी का इरादा होना चाहिए ✅
d) महिला की सहमति होनी चाहिए
Answer: c)


धारा 84 – किसी की पत्नी को बहलाना-फुसलाना (Enticing Away Wife)

Q11. धारा 84 के तहत अधिकतम कारावास की अवधि क्या है?
a) 1 वर्ष
b) 2 वर्ष ✅
c) 5 वर्ष
d) 7 वर्ष
Answer: b) 2 वर्ष


Q12. धारा 84 लागू होने का आवश्यक तत्व कौन-सा है?
a) महिला विवाहित हो ✅
b) महिला अविवाहित हो
c) पति-पत्नी अलग रहते हों
d) महिला की सहमति हो
Answer: a)


धारा 85 – पत्नी पर क्रूरता (Cruelty by Husband or Relatives)

Q13. धारा 85 के तहत अपराध की अधिकतम सजा क्या है?
a) 1 वर्ष
b) 2 वर्ष
c) 3 वर्ष ✅
d) 5 वर्ष
Answer: c) 3 वर्ष


Q14. धारा 85 केवल किन व्यक्तियों पर लागू होती है?
a) पति पर ✅
b) पति के रिश्तेदारों पर ✅
c) महिला के रिश्तेदारों पर
d) a और b दोनों ✅
Answer: d)


धारा 86 – क्रूरता की परिभाषा (Definition of Cruelty)

Q15. निम्न में से कौन-सा धारा 86 के अंतर्गत क्रूरता में नहीं आता?
a) आत्महत्या के लिए उकसाने वाला आचरण
b) मानसिक या शारीरिक चोट
c) दहेज की मांग के लिए उत्पीड़न
d) प्रेम विवाह में सहमति देना ✅
Answer: d)


धारा 87 – महिला का अपहरण कर जबरन विवाह या अवैध संबंध (Kidnapping to Compel Marriage)

Q16. धारा 87 के तहत अपराध की अधिकतम सजा क्या है?
a) 5 वर्ष
b) 7 वर्ष
c) 10 वर्ष ✅
d) आजीवन कारावास
Answer: c) 10 वर्ष


Q17. धारा 87 लागू होने के लिए कौन-सा तत्व आवश्यक है?
a) महिला का अपहरण हुआ हो ✅
b) महिला विवाहित हो
c) महिला नाबालिग हो
d) महिला सहमत हो
Answer: a)



September 04, 2025

"अब पैतृक संपत्ति बंटवारा आसान! यूपी सरकार ने दी बड़ी राहत"

Legal updates online




"उत्तर प्रदेश सरकार ने पैतृक संपत्ति बंटवारे से जुड़े लाखों परिवारों को बड़ी राहत दी है। योगी कैबिनेट के ताज़ा फैसले से अब पैतृक संपत्ति के विभाजन की लिखा-पढ़ी मात्र 10,000 रुपये में पूरी हो जाएगी। लेकिन राहत के साथ कुछ महत्वपूर्ण शर्तें भी जुड़ी हैं।


 सरकार का बड़ा फैसला


"योगी कैबिनेट की मंगलवार की बैठक में फैसला लिया गया कि पैतृक अचल संपत्ति के बंटवारे पर अब स्टाम्प शुल्क और रजिस्ट्री शुल्क दोनों मिलाकर केवल 10,000 रुपये ही लगेंगे।

  • स्टाम्प शुल्क – ₹5,000
  • रजिस्ट्री शुल्क – ₹5,000
    पहले यह खर्च संपत्ति के मूल्य का 4% तक होता था।"

 राहत की शर्तें


"यह छूट हर किसी के लिए नहीं है। सरकार ने कुछ खास शर्तें तय की हैं –

  1. अधिकतम तीन पीढ़ियां:
    • छूट सिर्फ परिवार के सदस्यों के बीच तीन पीढ़ियों तक के वंशजों के लिए लागू होगी।

  2. कुटुंब रजिस्टर अनिवार्य:
    • लाभ लेने के लिए पक्षकारों को तीन पीढ़ियों का स्पष्ट उल्लेख करते हुए कुटुंब रजिस्टर देना होगा।
  3. वैधानिक अंश का पालन:
    • बंटवारा वर्तमान उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार होना चाहिए।
  4. सिर्फ वास्तविक व्यक्तियों की संपत्ति:
    • यह छूट केवल उन संपत्तियों पर मिलेगी जो वास्तविक व्यक्तियों के नाम पर हैं।"

 किन पर लागू नहीं होगी छूट



"सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह सुविधा केवल आवासीय, व्यावसायिक और कृषि भूमि के बंटवारे पर उपलब्ध होगी।

  • लागू नहीं: फर्म, कंपनी, ट्रस्ट और संस्थाओं की संपत्ति।"

 कानूनी प्रावधान और पृष्ठभूमि


"रजिस्ट्रेशन अधिनियम, 1908 की धारा 17 के तहत पैतृक संपत्ति के बंटवारे का पंजीकरण अनिवार्य है।
अब तक विभाजन विलेख पर बॉन्ड विलेख की तरह संपत्ति के मूल्य का 4% स्टाम्प शुल्क देना पड़ता था, जिससे आम लोगों पर भारी बोझ पड़ता था।"


नतीजे और असर


"सरकार के मुताबिक, इस कदम से प्रदेश में रजिस्ट्री को बढ़ावा मिलेगा और अविभाजित संपत्तियों के बंटवारे में तेजी आएगी।
हालांकि, इस छूट के चलते सरकार को लगभग 6.39 करोड़ रुपये की राजस्व हानि का अनुमान है, लेकिन इसका सीधा फायदा आम जनता को मिलेगा।"


 निष्कर्ष



"उत्तर प्रदेश में पैतृक संपत्ति बंटवारे की प्रक्रिया अब सरल और किफायती हो गई है।
तीन पीढ़ियों तक के परिवारों को राहत जरूर मिलेगी, लेकिन बंटवारा कानूनी प्रक्रिया, कुटुंब रजिस्टर और उत्तराधिकार कानूनों के दायरे में ही होना चाहिए।
सरकार का मकसद है – परिवारों के बीच संपत्ति विवाद कम हों और पारदर्शिता बढ़े।"



September 04, 2025

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक के प्रावधान । Adv. Sanjay Tiwari

 


⚖️ हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत तलाक के प्रावधान


हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13B के अनुसार, आपसी सहमति से तलाक (Divorce by Mutual Consent) के लिए पति-पत्नी को शादी की तारीख से कम से कम एक साल तक अलग-अलग रहना आवश्यक है। इसके बाद ही वे कोर्ट में संयुक्त याचिका दायर कर सकते हैं।


हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में, एक साल की अवधि से पहले भी याचिका दायर की जा सकती है। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 14 कहती है कि विशेष परिस्थितियों में, कोर्ट तलाक की याचिका को स्वीकार कर सकता है, भले ही शादी को एक साल पूरा न हुआ हो।



⚖️ विशेष परिस्थितियाँ (Exceptional Circumstances)


कोर्ट यह तय करता है कि क्या परिस्थितियाँ "विशेष" हैं। इसमें क्रूरता, परित्याग या किसी अन्य गंभीर कारण को शामिल किया जा सकता है। आपके मामले में, पत्नी का किसी अन्य व्यक्ति के साथ भाग जाना एक ऐसी ही गंभीर परिस्थिति मानी जा सकती है।

September 03, 2025

अविवाहित बेटी यदि वह खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ तो हिंदू पिता धारा 20 HAM एक्ट के तहत उसके भरण-पोषण के लिए बाध्य

 




    शैलेन्द्र कुमार सिंह एडवोकेट    

     सिविल कोर्ट गोण्डा 

     M.N.9918900024


⚖️ अविवाहित बेटी यदि वह खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ तो हिंदू पिता धारा 20 HAM एक्ट के तहत उसके भरण-पोषण के लिए बाध्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट


⚫  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20 के तहत हिंदू व्यक्ति पर अपनी अविवाहित बेटी का भरण-पोषण करने का वैधानिक दायित्व है, जो अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।


जस्टिस मनीष कुमार निगम की पीठ ने टिप्पणी की,


🟤 "हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 20(3) बच्चों और वृद्ध माता-पिता के भरण-पोषण के संबंध में हिंदू कानून के सिद्धांतों को मान्यता देने के अलावा और कुछ नहीं है। धारा 20(3) के तहत अब हिंदू व्यक्ति का यह वैधानिक दायित्व है कि वह अपनी अविवाहित बेटी का भरण-पोषण करे, जो अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।"


🔵 सिंगल जज ने अवधेश सिंह नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर विचार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय, हाथरस के सितंबर 2023 के फैसले और आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उन्होंने पति को पत्नी (उर्मिला) को 25,000/- रुपये प्रति माह और बेटी (कुमारी गौरी नंदिनी) को 20,000/- रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया था। पत्नी और बेटी ने भरण-पोषण राशि में वृद्धि की मांग करते हुए एक और याचिका दायर की। दोनों याचिकाओं को एक साथ मिला दिया गया और एक साथ निर्णय लिया गया।


🟢 पत्नी का मामला था कि उसकी शादी 1992 में अवधेश सिंह से हुई थी। उसके बाद, उसके और उसकी बेटी के साथ पति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा बुरा व्यवहार किया गया और अंततः फरवरी 2009 में उसे उसकी बेटी के साथ उसके ससुराल से निकाल दिया गया।


🟣 आवेदक-पत्नी के पास खुद और अपनी बेटी का भरण-पोषण करने का कोई साधन नहीं था, इसलिए उसने वैवाहिक घर से निकाले जाने की तारीख से भरण-पोषण की मांग करते हुए अदालत का रुख किया। यह आवेदन अक्टूबर 2009 में दायर किया गया था।


🔴  दूसरी ओर, पति/पिता का मामला था कि विपरीत पक्ष संख्या 3/कुमारी गौरी नंदिनी (बेटी) का जन्म 25 जून, 2005 को हुआ था और वह 25 जून, 2023 को वयस्क हो गई थी, जो कि 26 सितंबर, 2023 को पारित आदेश से पहले की बात है।


🛑 इसलिए, यह प्रस्तुत किया गया कि पारिवारिक न्यायालय ने बेटी को भरण-पोषण देने में कानूनी गलती की, जो आदेश की तिथि पर वयस्क थी और धारा 125 सीआरपीसी के प्रावधानों के मद्देनजर भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं थी।


🟡 दोनो पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद न्यायालय ने शुरू में ही यह उल्लेख किया कि संहिताकरण से पहले, शास्त्रीय हिंदू कानून के तहत, एक हिंदू पुरुष को हमेशा अपने वृद्ध माता-पिता, एक गुणी पत्नी और एक शिशु बच्चे का भरण-पोषण करने के लिए नैतिक और कानूनी रूप से उत्तरदायी माना जाता था। इस बात पर जोर देते हुए कि हिंदू कानून ने हमेशा अविवाहित बेटी के भरण-पोषण के लिए पिता के दायित्व को मान्यता दी है, न्यायालय ने 1956 की धारा 20(3) के अधिदेश पर भी विचार किया कि यह बच्चों और वृद्ध माता-पिता के भरण-पोषण के संबंध में हिंदू कानून के सिद्धांतों को मान्यता देता है।


⭕ यहां, यह ध्यान दिया जा सकता है कि 1956 के अधिनियम की धारा 20(3) के तहत एक हिंदू का यह वैधानिक दायित्व है कि वह अपनी अविवाहित बेटी का भरण-पोषण करे, जो अपनी कमाई या अन्य संपत्ति से अपना भरण-पोषण नहीं कर सकती है।


➡️ इसके अलावा, न्यायालय ने जगदीश जुगतावत बनाम मंजू लता 2002 के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें पारिवारिक न्यायालय ने 2000 रुपये का भरण-पोषण प्रदान किया था। धारा 125 सीआरपीसी के तहत एक आवेदन के आधार पर याचिकाकर्ता की नाबालिग अविवाहित बेटी को 500 रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया।


⬜ न्यायालय ने उल्लेख किया कि उपर्युक्त मामले में, जब याचिकाकर्ता ने इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसमें तर्क दिया गया कि बेटी केवल वयस्क होने तक ही भरण-पोषण की हकदार है, तो हाईकोर्ट ने इस बात पर सहमति जताते हुए कि धारा 125 सीआरपीसी के तहत, एक नाबालिग बेटी केवल वयस्क होने तक ही भरण-पोषण की हकदार है, यह माना कि 1956 अधिनियम की धारा 20(3) वयस्क होने के बाद भी भरण-पोषण के अधिकार को बढ़ाते हुए बेटी की सहायता करेगी।


🟪 सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय की पुष्टि करते हुए कहा कि वयस्क होने के बाद अपनी शादी तक नाबालिग लड़की का अपने माता-पिता से भरण-पोषण का अधिकार हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20(3) में मान्यता प्राप्त है। इसलिए, पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित आदेश को बनाए रखने के लिए विद्वान एकल न्यायाधीश द्वारा पारित निर्णय/आदेश पर कोई अपवाद नहीं लिया जा सकता है, जो कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 और हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20(3) के संयुक्त वाचन पर आधारित है।


▶️ इस पृष्ठभूमि के विरुद्ध, एकल न्यायाधीश ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा, यह देखते हुए कि विवादित आदेश पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित किया गया था, जिसके पास पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984, धारा 125 सीआरपीसी और 1956 अधिनियम की धारा 20 दोनों के तहत क्षेत्राधिकार है।


न्यायालय ने पिता की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए कहा,


⏺️ “चूंकि, वर्तमान मामले में, पारिवारिक न्यायालय द्वारा आदेश पारित किया गया है, जिसके पास धारा 125 सीआरपीसी के तहत आवेदन के साथ-साथ 1956 अधिनियम की धारा 20 के उप-खंड (3) के तहत आवेदन पर विचार करने का क्षेत्राधिकार है, इसलिए संशोधन में हस्तक्षेप करने और बेटी को कानून के विभिन्न प्रावधानों यानी 1956 अधिनियम की धारा 20 (3) के तहत उसी न्यायालय के समक्ष एक नया आवेदन प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा, और इसलिए, मैं आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं हूं…,”


⏹️ जहां तक पत्नी और बेटी द्वारा दायर पुनरीक्षण का सवाल है, न्यायालय ने कहा कि चूंकि पारिवारिक न्यायालय द्वारा दी गई भरण-पोषण की राशि उचित थी, इसलिए पत्नी और बेटी के कहने पर दिए गए आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी। परिणामस्वरूप, उक्त याचिका खारिज कर दी गई।


👉🏽  हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पुनरीक्षण याचिका खारिज होने से पुनरीक्षणकर्ताओं को धारा 127 सीआरपीसी के प्रावधानों के मद्देनजर आदेश में उचित संशोधन का दावा करने या पारिवारिक* न्यायालय के समक्ष उचित आवेदन पेश करके भरण-पोषण की राशि बढ़ाने से नहीं रोका जा सकेगा।


केस टाइटलः अवधेश सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी 

   

   

September 03, 2025

कब और कैसे न्यायालय लगाता है तथ्य का अनुमान आरोपी के खिलाफ़ भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 119 Legal Updates Online





भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 119


"न्यायालय किसी तथ्य के अस्तित्व के बारे में अनुमान लगा सकता है, अगर सामान्य परिस्थितियाँ, मानव आचरण, प्राकृतिक घटनाएँ, व्यापारिक व्यवहार और आम अनुभव यह दिखाते हैं कि वह तथ्य संभवतः हुआ होगा।"

●  मतलब, अगर कोई तथ्य सीधे सबूत से साबित नहीं हो रहा,


●  लेकिन परिस्थितियाँ, अनुभव और सामान्य व्यवहार यह बताते हैं कि ऐसा होना संभावना के अनुसार सही है, तो न्यायालय मान सकता है कि वह तथ्य हुआ है।




⚖️ यह अनुमान कब लगाया जाता है


न्यायालय दो चीज़ों को देखता है:


(i) सामान्य मानव आचरण → लोग आम तौर पर कैसे बर्ताव करते हैं।


(ii) प्राकृतिक घटनाएँ व व्यवसायिक लेन-देन → दुनिया में आमतौर पर क्या होता है।



अगर कोई घटना सामान्य प्रवृत्ति के अनुसार लगती है,

तो न्यायालय अनुमान लगाएगा।

अगर घटना असामान्य लगती है,

तो न्यायालय अनुमान नहीं लगाएगा।





⚖️ उदाहरणों (Illustrations) से समझिए


(a) चोरी की संपत्ति


●  अगर चोरी हुई है और किसी के पास चोरी के माल मिलते हैं तुरंत बाद,

तो न्यायालय मान सकता है:


●  या तो वह व्यक्ति चोर है,


●  या उसे पता था कि माल चोरी का है।


●  लेकिन, अगर वह व्यक्ति यह साबित कर दे कि उसने माल ईमानदारी से खरीदा, तो अनुमान हट जाएगा।



(b) सह-अपराधी की गवाही


●  अगर कोई सह-अपराधी (Accomplice) गवाही देता है,


●  तो न्यायालय मान सकता है कि वह पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है, जब तक उसकी गवाही महत्वपूर्ण बिंदुओं पर दूसरे सबूतों से मेल न खाती हो।




(c) बिल ऑफ एक्सचेंज / हंडी


● अगर कोई बिल ऑफ एक्सचेंज (हंडी) पर हस्ताक्षर करता है,


●  तो न्यायालय मान सकता है कि उसने असली लेन-देन के लिए ही किया होगा।


(d) किसी अवस्था की निरंतरता


● अगर पाँच दिन पहले नदी का बहाव एक दिशा में था,

और सामान्य रूप से नदी का रास्ता जल्दी नहीं बदलता,

●  तो न्यायालय मान सकता है कि नदी आज भी उसी दिशा में बह रही है।

● लेकिन, अगर बीच में बाढ़ आई थी,

तो अनुमान नहीं लगाया जाएगा।



(e) सरकारी और न्यायिक कार्यों की नियमितता


● अगर कोई न्यायिक आदेश या सरकारी कार्य हुआ है,

तो सामान्यतः न्यायालय मान लेगा कि वह नियमों के अनुसार हुआ है।



(f) व्यापार का सामान्य तरीका


● अगर डाक द्वारा चिट्ठी भेजी गई है,

तो न्यायालय मान सकता है कि वह पोस्ट हो गई होगी और पहुँच गई होगी।


● लेकिन, अगर सबूत मिले कि उस दिन डाक सेवा बाधित थी,

तो अनुमान नहीं लगाया जाएगा।



(g) सबूत न देने की स्थिति


●  अगर कोई व्यक्ति ऐसा दस्तावेज़ नहीं दिखाता


●  जो आसानी से वह पेश कर सकता था,


●  तो न्यायालय मान सकता है कि वह दस्तावेज़ उसके खिलाफ़ जाता।



(h) प्रश्न का उत्तर देने से इनकार


●  अगर कोई व्यक्ति ऐसा प्रश्न का उत्तर देने से मना करता है

जिसका जवाब देने के लिए वह क़ानूनन बाध्य नहीं है,

तो न्यायालय मान सकता है कि उसका उत्तर उसके खिलाफ़ जाता।



(i) दायित्व से जुड़ा दस्तावेज़


●  अगर कोई बांड (Bond) या दायित्व से जुड़ा दस्तावेज़ ऋणी (Obligor) के पास पाया जाता है, तो न्यायालय मान सकता है कि दायित्व खत्म हो गया है।




⚖️ न्यायालय क्या-क्या देखता है


धारा 119(2) कहती है कि अनुमान लगाते समय


न्यायालय निम्न बातों पर विचार करेगा:


●  दुकानदार रोज़ाना बहुत से सिक्के लेता है, तो एक चिह्नित सिक्का मिलना प्रमाण नहीं होगा।


●  बाढ़ आने के बाद नदी के पुराने रास्ते का अनुमान नहीं लगाया जाएगा।



●  डाक सेवा बाधित होने पर चिट्ठी मिलने का अनुमान नहीं लगाया जाएगा।


●  दस्तावेज़ छिपाने का कारण व्यक्तिगत प्रतिष्ठा भी हो सकता है।





⚖️ महत्वपूर्ण न्यायालयीन निर्णय (Case Laws)


🏛 Supreme Court Judgement In State of Rajasthan v. Kashi Ram (2006) 12 SCC 254 , न्यायालय ने कहा:“धारा 119 के तहत, न्यायालय सामान्य मानव आचरण और तार्किक परिस्थितियों के आधार पर अनुमान लगा सकता है।”



🏛 Supreme Court Judgement In  Trimukh Maroti Kirkan v. State of Maharashtra (2006) 10 SCC 681, सुप्रीम कोर्ट ने कहा:“जहाँ प्रत्यक्ष सबूत नहीं है, वहाँ न्यायालय परिस्थितिजन्य साक्ष्य और तार्किक संभावनाओं पर निर्णय कर सकता है।”





 निष्कर्ष


धारा 119 न्यायालय को तथ्यों का अनुमान लगाने की शक्ति देती है।

September 03, 2025

“Confession in Police Custody: कब मान्य, कब अमान्य?” “भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 23: अभियुक्त के मौलिक अधिकारों की ढाल”

 

“Confession in Police Custody: कब मान्य, कब अमान्य?”  “भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 23: अभियुक्त के मौलिक अधिकारों की ढाल” #Advocate #Rahul_Goswami #Gonda #Criminal_Lawyer

⚖️ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)
धारा 23


"भारतीय दंड प्रक्रिया में अभियुक्त द्वारा दी गई स्वीकारोक्ति (Confession) साक्ष्य के सबसे संवेदनशील पहलुओं में से एक है।


धारा 23 भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 का उद्देश्य  —


पुलिस के समक्ष दिया गया स्वीकारोक्ति (Confession)  सामान्यतः अविश्वसनीय है और अभियुक्त के विरुद्ध इस्तेमाल नहीं की जा सकती।

क्योंकि पुलिस हिरासत में बयान देते समय अभियुक्त पर डर, दबाव, प्रलोभन, या धमकी का असर हो सकता है।"


 धारा 23(1) 


●  किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष अभियुक्त द्वारा किया गया स्वीकारोक्ति (Confession) न्यायालय में अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

●  मतलब यह कि पुलिस के सामने दिया गया बयान मान्य साक्ष्य नहीं है, क्योंकि पुलिस के दबाव, डर या प्रलोभन में दिए गए बयान की सत्यता पर संदेह रहता है।


 धारा 23(2) 


●  यदि कोई व्यक्ति पुलिस अभिरक्षा (Police Custody) में रहते हुए स्वीकारोक्ति (confession) करता है, तो वह भी अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य के रूप में उपयोग नहीं की जाएगी,

●  जब तक कि वह स्वीकारोक्ति किसी मजिस्ट्रेट के तत्कालीन (Immediate) समक्ष न की गई हो।

●  यह प्रावधान अभियुक्त को सुरक्षा प्रदान करता है कि पुलिस हिरासत में उसका बयान स्वतंत्र और स्वेच्छा से ही दर्ज हो।


 

⚖️ प्रावधान (Proviso) –


●  यदि पुलिस अभिरक्षा में अभियुक्त से कोई सूचना प्राप्त होती है और उस सूचना के आधार पर कोई तथ्य (Fact) खोज निकाला जाता है, तो

●  उस सूचना का उतना ही हिस्सा साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होगा, जो सीधे-सीधे उस खोजे गए तथ्य से संबंधित हो।

भले ही वह सूचना स्वीकारोक्ति का हिस्सा हो या न हो।


⚖️ उदाहरण –



मान लीजिए अभियुक्त पुलिस अभिरक्षा में कहता है – “मैंने चाकू कुएँ में फेंका है।”


यदि पुलिस उस कुएँ से चाकू बरामद कर लेती है, तो अभियुक्त का यह कथन “कुएँ में चाकू है” स्वीकार्य होगा।


लेकिन यह हिस्सा “मैंने हत्या की है” स्वीकार्य नहीं होगा, क्योंकि वह आत्मस्वीकारोक्ति है।

September 01, 2025

"BNS 76: महिला की गरिमा पर हमला!"

 

"BNS 76: महिला की गरिमा पर हमला!"।  #Advocate #Rahul_Goswami #D.K.GIRI #Gonda #Criminal_Lawyer

⚖️ BNS की धारा 76 – किसी महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला या बल का प्रयोग


 "जो कोई किसी स्त्री पर आक्रमण करता है या उस पर आपराधिक बल का प्रयोग करता है, या ऐसे कृत्य को उकसाता है, इस आशय से कि वह उसे निर्वस्त्र कर सके या उसे नग्न होने के लिए बाध्य कर सके, वह ऐसे अपराध के लिए तीन वर्ष से कम नहीं, किन्तु सात वर्ष तक की कारावास से, और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।"



⚖️  अपराध के आवश्यक तत्व 
( Essentials to Attract Section )


धारा 76 तभी लागू होगी जब निम्नलिखित शर्तें पूरी हों:


(1) पीड़िता महिला होनी चाहिए


● यह धारा केवल महिलाओं के लिए सुरक्षा प्रदान करती है।


● यदि पीड़ित पुरुष है, तो यह धारा लागू नहीं होगी।




(2) हमला (Assault) या आपराधिक बल (Criminal Force) का प्रयोग होना चाहिए


● Assault = ऐसा कोई भी कृत्य जिससे महिला के मन में चोट पहुँचाने, छेड़छाड़ करने या हानि पहुँचाने का भय उत्पन्न हो।


● Criminal Force = किसी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध बलपूर्वक छूना, पकड़ना, खींचना, धक्का देना आदि।




(3) निर्वस्त्र करने का इरादा (Intention to Disrobe or Compel Nakedness)


● हमलावर का उद्देश्य महिला के कपड़े उतारना या उसे नग्न होने पर मजबूर करना होना चाहिए।


● यदि हमले के पीछे यह इरादा नहीं है, तो धारा 76 नहीं लगेगी, बल्कि अन्य धाराएँ जैसे धारा 74 (modesty outrage) लागू होंगी।





(4) उकसाना या सहायता करना (Abetment)


यदि कोई व्यक्ति खुद हमला नहीं करता, बल्कि किसी और को इस काम के लिए उकसाता है या मदद करता है, तब भी वह धारा 76 के अंतर्गत दोषी होगा।




(5) दोषी मनःस्थिति (Mens Rea) अनिवार्य है


● अभियुक्त के पास स्पष्ट इरादा होना चाहिए कि महिला को निर्वस्त्र किया जाए।


● बिना इरादे के गलती से कपड़े खिंच जाने पर यह धारा लागू नहीं होगी।




⚖️ दंड (Punishment)


● न्यूनतम सज़ा → 3 वर्ष


● अधिकतम सज़ा → 7 वर्ष


● जुर्माना → अनिवार्य, न्यायालय परिस्थिति देखकर तय करेगा।




⚖️ उदाहरण (Illustration)


उदाहरण 1: यदि कोई व्यक्ति सड़क पर किसी महिला के कपड़े खींचकर उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश करता है → धारा 76 लागू होगी।


उदाहरण 2: यदि किसी महिला से झगड़े में उसका दुपट्टा अनजाने में खिंच जाता है, बिना किसी अश्लील उद्देश्य के → धारा 76 लागू नहीं होगी।


August 31, 2025

यौन उत्पीड़न के 4 प्रकार और सज़ा | BNS 2023


 

यौन उत्पीड़न के 4 प्रकार और सज़ा | BNS 2023 #Advocate #Rahul_Goswami #Gonda #Best_Criminal_Lawyer


⚖️ धारा 75 – यौन उत्पीड़न
(Sexual Harassment)


 यदि कोई पुरुष (man) महिला की इच्छा के विरुद्ध किसी भी प्रकार का अनुचित यौन व्यवहार करता है, तो वह अपराध माना जाएगा।


यदि कोई पुरुष निम्नलिखित में से कोई भी कार्य करता है, तो वह यौन उत्पीड़न का दोषी होगा:


(i) शारीरिक संपर्क और अग्रसरता (Physical Contact & Advances)


यदि कोई पुरुष अनचाहे शारीरिक संपर्क करता है और यौन इच्छाओं से प्रेरित स्पष्ट अग्रसरता (explicit sexual overtures) दिखाता है तो यह अपराध माना जाएगा।



(ii) लैंगिक स्वीकृति की मांग या अनुरोध (Demand or Request for Sexual Favours)


यदि कोई पुरुष किसी महिला से यौन संबंध बनाने की मांग करता है या यौन स्वीकृति का अनुरोध करता है, तो यह भी अपराध है।



(iii) अश्लील सामग्री दिखाना (Showing Pornography)


यदि कोई पुरुष महिला की इच्छा के विरुद्ध पोर्नोग्राफिक सामग्री (pornography) दिखाता है, तो वह भी यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आएगा।



(iv) यौन टिप्पणी करना (Sexually Coloured Remarks)


यदि कोई पुरुष महिला के प्रति अशोभनीय, अश्लील या यौन अभिप्राय वाली टिप्पणियाँ करता है, तो यह भी अपराध है।




⚖️ (2) दंड
(Punishment)


(a) Clause (i), (ii), (iii) के अंतर्गत यदि पुरुष उपरोक्त तीनों में से कोई भी कार्य करता है, तो उसे कठोर कारावास (Rigorous Imprisonment) 3 वर्ष तक हो सकता है, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।



(b) क्लॉज़ (iv) के अंतर्गत यदि पुरुष केवल यौन टिप्पणी (Sexually Coloured Remarks) करता है, तो उसे साधारण या कठोर कारावास 1 वर्ष तक हो सकता है, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।



⚖️ Essentials of Section 75 BNS


1. अभियुक्त (Accused): केवल पुरुष



2. पीड़ित (Victim): केवल महिला



3. स्वीकृति आवश्यक (Consent Matters): महिला की इच्छा के विरुद्ध कार्य होना चाहिए।



4. चार मुख्य अपराध (Four Acts):


अनचाहा शारीरिक संपर्क


यौन एहसान की मांग


पोर्नोग्राफी दिखाना


यौन टिप्पणियाँ करना


⚖️ Bare Act
 


BNS 75. (1) A man committing any of the following acts:—


(i) physical contact and advances involving unwelcome and explicit sexual overtures; or


(ii) a demand or request for sexual favours; or


(iii) showing pornography against the will of a woman; or


(iv) making sexually coloured remarks, shall be guilty of the offence of sexual harassment.


(2) Any man who commits the offence specified in clause (i) or clause (ii) or clause (iii) of sub-section (1) shall be punished with rigorous imprisonment for a term which may extend to three years, or with fine, or with both.


(3) Any man who commits the offence specified in clause (iv) of sub-section (1) shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to one year, or with fine, or with both