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. “पारिवारिक समझौते को मिलेगी प्राथमिकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम फैसला”

 


⚖️ संपत्ति विवादों में पारिवारिक समझौते को प्राथमिकता – इलाहाबाद हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय


पारिवारिक विवाद अक्सर वर्षों तक अदालतों में चलते रहते हैं, जिससे परिवार की एकता टूटती है और आर्थिक संसाधन भी खर्च हो जाते हैं। ऐसे हालात में पारिवारिक समझौता (Family Settlement) न्याय का एक सरल और व्यावहारिक तरीका माना जाता है। हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसी मुद्दे पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि सह-पट्टेदारों के बीच वास्तविक और स्वैच्छिक समझौता हुआ है, तो संपत्ति का विभाजन उसी आधार पर होना चाहिए।


⚖️ केस पृष्ठभूमि
  • वाद में पैतृक संपत्ति को लेकर सह-खातेदारों में विवाद था।
  • याचिकाकर्ता ने कहा कि पहले ही मौखिक बंटवारा हो चुका है, लेकिन राजस्व लगान और भूखंडों के सही स्थान को लेकर विवाद बना हुआ है।
  • राजस्व बोर्ड ने कहा कि संपत्ति संयुक्त कब्जे में है, जबकि निचली अदालत ने पारिवारिक समझौते को मान्यता दी।
  • इसी आदेश के खिलाफ रिट याचिका दाखिल की गई।

⚖️ उच्च न्यायालय का अवलोकन


न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ ने कहा:

  1. पारिवारिक समझौता वास्तविक और न्यायसंगत होना चाहिए।
  2. यह समझौता स्वेच्छा से होना चाहिए, न कि धोखाधड़ी, दबाव या अनुचित प्रभाव से।
  3. पारिवारिक समझौता मौखिक भी हो सकता है और इसके लिए पंजीकरण आवश्यक नहीं है।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि पक्षकारों में इस समझौते को लेकर कोई विवाद नहीं है, तो इसे मान्यता देते हुए कुर्रा (राजस्व अभिलेखों में विभाजन) उसी आधार पर तैयार किया जाए।


⚖️ कानूनी आधार
  • उ.प्र. राजस्व संहिता नियमावली, 2016 के नियम 109(5)(छ) में पारिवारिक समझौते को विधिवत मान्यता दी गई है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के पूर्ववर्ती निर्णयों में भी कहा गया है कि पारिवारिक व्यवस्था का उद्देश्य परिवार को लंबी मुकदमेबाजी से बचाना और सौहार्द बनाए रखना है।

⚖️ न्यायालय की सोच


अदालत ने कहा कि “परिवार” शब्द को व्यापक अर्थ में समझना होगा। इसमें केवल नजदीकी रिश्तेदार ही नहीं, बल्कि वे सभी व्यक्ति शामिल हो सकते हैं जिनका कोई दावे का अधिकार बनता है। पारिवारिक समझौते का उद्देश्य भविष्य के विवादों को खत्म करके परिवार को अधिक रचनात्मक कार्यों की ओर अग्रसर करना है।


⚖️ निष्कर्ष


इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले में स्पष्ट संदेश दिया कि पारिवारिक समझौता अदालतों पर बोझ कम करने, न्याय की सरल उपलब्धता और पारिवारिक सौहार्द बनाए रखने का सर्वोत्तम साधन है। इसलिए यदि समझौता निष्पक्ष, स्वैच्छिक और बिना धोखाधड़ी के हुआ है, तो उसे अदालतों द्वारा प्राथमिकता दी जानी चाहिए।


केस शीर्षक

शहादत अली एवं अन्य बनाम राजस्व बोर्ड, उत्तर प्रदेश एवं अन्य