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August 27, 2025

मीडिया की स्वतंत्रता बनाम पीड़ित की गरिमा । यौन अपराध मामलों में पहचान उजागर करना: कब अपराध, कब अपवाद । Advocate Rahul Goswami

 

मीडिया की स्वतंत्रता बनाम पीड़ित की गरिमा । यौन अपराध मामलों में पहचान उजागर करना: कब अपराध, कब अपवाद । Advocate Rahul Goswami

⚖️ यौन अपराध मामलों में पहचान उजागर करना: कब अपराध, कब अपवाद
Section 72 (BNS),
  

उपधारा (1): अगर कोई व्यक्ति किसी पीड़ित ( जिसके साथ यौन अपराध, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, बच्चों पर अपराध हुआ) की पहचान छापता है या प्रकाशित करता है जैसे पीड़ित का नाम, फोटो, पता, स्कूल, ऑफिस, रिश्तेदार, या कोई भी ऐसी जानकारी जिससे पीड़ित की पहचान उजागर हो सकती है, तो ऐसा करना दंडनीय अपराध होगा। Section 72 (1) BNS 


⚖️ दंड:


कैद: अधिकतम 2 वर्ष (कठोर या साधारण)


जुर्माना: न्यायालय तय करेगा

या दोनों हो सकते हैं।




 

⚖️ अपवाद (exceptions)
Section 72 (2) BNS 
 

नीचे बताए गए मामलों में पीड़ित की पहचान प्रकाशित की जा सकती है:


(a) अगर थाने का प्रभारी अधिकारी या जांच करने वाला पुलिस अधिकारी लिखित आदेश देकर अच्छी नीयत (good faith) से जांच के उद्देश्य से जानकारी प्रकाशित करने की अनुमति देता है।


(b) अगर स्वयं पीड़ित लिखित में अनुमति देता है कि उसकी पहचान प्रकाशित की जा सकती है।


(c) अगर पीड़ित की मृत्यु हो गई है, या वह बच्चा है, या मानसिक रूप से अस्वस्थ है, तो उसके निकट संबंधी (next of kin) लिखित में अनुमति दे सकते हैं।



लेकिन, शर्त:


निकट संबंधी केवल मान्यता प्राप्त सामाजिक कल्याण संस्थान के अध्यक्ष या सचिव को ही अनुमति दे सकते हैं।


कोई अन्य व्यक्ति या संगठन सीधे अनुमति नहीं ले सकता।




उदाहरण 1:


किसी लड़की के साथ बलात्कार हुआ है। अगर कोई अखबार, वेबसाइट, यूट्यूब चैनल, या सोशल मीडिया उसकी तस्वीर या नाम प्रकाशित करता है, तो वह धारा 72(1) के तहत अपराध है।


उदाहरण 2:

अगर पीड़ित स्वयं वीडियो में आकर अपना नाम बताना चाहती है, और वह लिखित में अनुमति देती है, तो यह धारा 72(2)(b) के तहत वैध होगा।


उदाहरण 3:

अगर पुलिस जांच के दौरान जानकारी सार्वजनिक करना चाहती है, तो वह धारा 72(2)(a) के तहत लिखित आदेश जारी कर सकती है।



August 26, 2025

गैंग रेप के मामलों में सख्त और स्पष्ट नियम । सजा । BNS SECTION 70 ।

 
गैंग रेप के मामलों में सख्त और स्पष्ट नियम । सजा । BNS SECTION 70 ।BNS SECTION 70 । #Advocate_Rahul_Goswami_Gonda

“भारत में महिलाओं की सुरक्षा संवैधानिक और कानूनी रूप से सबसे बड़ी प्राथमिकता है। हाल ही में Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS), 2023 ने गैंग रेप के मामलों में सख्त और स्पष्ट नियम लागू किए हैं, जो समाज को एक मजबूत संदेश देते हैं कि महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन सहन नहीं किया जाएगा।”


⚖️ वयस्क महिलाओं के साथ गैंग रेप
Section 70 (1) BNS


यदि किसी महिला के साथ एक या अधिक लोगों का समूह बलात्कार करता है, या सभी आरोपी साझी मंशा (common intention) के तहत अपराध करते हैं, तो समूह का हर सदस्य अपराधी माना जाएगा।


⚖️ सजा:


कम से कम 20 साल का कठोर कारावास,

अधिकतम आजीवन कारावास, यानी पूरा जीवन जेल में बिताना।

इसके अलावा जुर्माना भी लगेगा।



⚖️ जुर्माने की विशेष शर्तें:


यह “न्यायपूर्ण और उचित” होना चाहिए।

पीड़िता के चिकित्सा खर्च और पुनर्वास के लिए इस्तेमाल होगा।

जुर्माना सीधे पीड़िता को दिया जाएगा।



⚖️ 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के साथ गैंग रेप
section 70 (2) BNS


  

यदि पीड़िता अल्पवयस्क (18 साल से कम) है, और अपराध समूह या साझा मंशा के तहत हुआ है, तो हर आरोपी को बलात्कार का अपराधी माना जाएगा।




⚖️ सजा:


आजीवन कारावास, या मृत्यु दंड, इसके साथ जुर्माना, जो पीड़िता के चिकित्सा और पुनर्वास के लिए दिया जाएगा।



 संदेश: कानून ने स्पष्ट कर दिया कि किसी भी समूह द्वारा किए गए अपराध में सभी आरोपी जिम्मेदार होंगे, और न्याय पीड़िता के पक्ष में सुनिश्चित होगा। 

बच्चों के खिलाफ अपराधों को सबसे गंभीर अपराध माना है। यह सख्त दंड और जुर्माना सुनिश्चित करता है कि समाज में इस तरह की हरकतों पर कड़ा रोक लगे।




August 24, 2025

इन परिस्थितियों में धारा 197 CrPC के तहत सरकार की अनुमति नहीं चाहिए:

 

इन परिस्थितियों में धारा 197 CrPC के तहत सरकार की अनुमति नहीं चाहिए:


1. अगर पुलिस ने ड्यूटी की आड़ में निजी बदले की भावना से अपराध किया हो।


🏛 Supreme Court Judgement In एस.के. मिस्त्री बनाम बिहार राज्य (2001) , – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पुलिस अधिकारी का कार्य ड्यूटी से संबंधित नहीं है, तो उसे धारा 197 CrPC की सुरक्षा नहीं मिलेगी।




2. अगर अपराध बहुत गंभीर है, जैसे हत्या, बलात्कार, फर्जी मुठभेड़ या यातना।


🏛 Supreme Court Judgement In डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी बनाम मनमोहन सिंह (2012) , – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार जैसे गंभीर अपराधों में सरकारी अनुमति की आवश्यकता नहीं है।




3. अगर पुलिस ने ड्यूटी की सीमा से बाहर जाकर अपराध किया हो।

🏛 Supreme Court Judgement In प्रेमचंद बनाम पंजाब राज्य (1958), – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पुलिस अधिकारी ड्यूटी से बाहर जाकर अवैध कार्य करता है, तो उसे सरकारी अनुमति की जरूरत नहीं।




4. अगर मामला भ्रष्टाचार से संबंधित है।

🏛 Supreme Court Judgement In एन. कलाइसेल्वी बनाम तमिलनाडु सरकार (2019) , – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों में धारा 197 CrPC की सुरक्षा नहीं मिलेगी।





5. अगर कोर्ट खुद संज्ञान लेकर केस दर्ज करने का आदेश दे।

🏛 Supreme Court Judgement In सीबीआई बनाम जनार्दनन (1998) , सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि न्यायालय प्रथम दृष्टया (Prima Facie) मानता है कि अपराध हुआ है, तो वह सरकार की अनुमति के बिना भी केस दर्ज करने का निर्देश दे सकता है।


इसका मतलब यह है कि पुलिस ड्यूटी के दौरान किया गया हर अपराध धारा 197 CrPC की सुरक्षा के अंतर्गत नहीं आएगा। यदि अपराध व्यक्तिगत, भ्रष्टाचार या गंभीर प्रकृति का है, तो सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती और पुलिस अधिकारी पर सीधे मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।

August 23, 2025

नशे का बचाव (धारा 24)

 


नशे का बचाव (धारा 24):

यह धारा बताती है कि नशे की स्थिति में अपराध करने वाला व्यक्ति यह बहाना नहीं बना सकता कि वह नशे में था, जब तक कि नशा जबरदस्ती न किया गया हो।

August 22, 2025

किसी भी स्तर पर किसी भी अदालत में किशोर होने की दलील उठाई जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया


किसी भी स्तर पर किसी भी अदालत में किशोर होने की दलील उठाई जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया



 सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील वर्ष 1993 में पारित एक आदेश के विरुद्ध की गई थी, जिसके तहत अपीलकर्ता-अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 342 और 376 के तहत दोषी ठहराया गया था और सजा सुनाई गई थी।


भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह, सर्वोच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि नाबालिग होने का दावा किसी भी अदालत में किया जा सकता है, बलात्कार के एक आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है, लेकिन निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सज़ा को रद्द कर दिया है और उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा है। सर्वोच्च न्यायालय ने अब इस मामले को किशोर न्याय बोर्ड को भेज दिया है। 


सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील वर्ष 1993 में पारित एक आदेश के विरुद्ध की गई थी, जिसके तहत अपीलकर्ता-अभियुक्त को दोषी ठहराया गया था और आईपीसी की धारा 342 (गलत कारावास) के तहत 6 महीने के कठोर कारावास और धारा 376 (बलात्कार) के तहत 5 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई थी। राज्य के इस तर्क को खारिज करते हुए कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष पहली बार किशोर होने की दलील उठाना जायज़ नहीं है, 

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा, "...इस न्यायालय द्वारा हरि राम बनाम राजस्थान राज्य और अन्य, उसके बाद धर्मबीर बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) और अन्य (सुप्रा) से पारित प्रामाणिक निर्णयों के आलोक में इसे केवल खारिज करने की आवश्यकता है, जहाँ यह स्पष्ट रूप से माना गया है कि किशोर होने की दलील किसी भी अदालत के समक्ष उठाई जा सकती है और मामले के निपटारे के बाद भी किसी भी स्तर पर इसे मान्यता दी जानी चाहिए। आगे यह माना गया है कि इस तरह के दावे को 2000 के अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों, यानी 2007 के नियमों में निहित प्रावधानों के अनुसार निर्धारित किया जाना आवश्यक है, भले ही किशोर 2000 के अधिनियम के लागू होने की तारीख को या उससे पहले किशोर न रहा हो, जैसा कि वर्तमान मामले में है।" 


एओआर विश्व पाल सिंह ने अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व किया, जबकि अतिरिक्त महाधिवक्ता संस्कृति पाठक ने प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व किया। 


तथ्यात्मक पृष्ठभूमि अपीलकर्ता ने 17 नवंबर, 1988 को एक 11 वर्षीय लड़की के साथ कथित तौर पर बलात्कार किया था। पीड़िता ने पूरी कहानी अपनी माँ को बताई और शिकायत दर्ज कराई गई। बहस अपीलकर्ता ने अभियोजन पक्ष के मामले में विसंगतियों के संबंध में तर्क देते हुए कहा था कि कथित घटना के लगभग 20 घंटे बाद प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 


सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष पहली बार प्रस्तुत एक अन्य दलील यह थी कि कथित घटना के समय अपीलकर्ता-अभियुक्त किशोर था और कार्यवाही जारी नहीं रह सकती।


तर्क मामले के तथ्यात्मक पहलुओं पर विचार करते हुए, पीठ ने पाया कि पुलिस स्टेशन पीड़िता के घर से 26 किलोमीटर दूर था और प्राथमिकी कुछ घंटों बाद दर्ज की गई। 


पीठ के अनुसार, प्राथमिकी दर्ज करने में देरी का उचित कारण बताया गया था। उसी दिन, पीड़िता का मेडिकल परीक्षण किया गया और आरोपी-अपीलकर्ता का पुरुषत्व परीक्षण किया गया, जिससे अपीलकर्ता की यौन संबंध बनाने की क्षमता स्थापित हुई। दोषसिद्धि के लिए अभियोजन पक्ष की एकमात्र गवाही पर भरोसा करने के मुद्दे पर, पीठ ने कहा, 

"इस प्रकार, स्थापित कानूनी स्थिति यह है कि अभियोजन पक्ष का बयान, यदि विश्वसनीय है, तो उसे किसी पुष्टिकरण की आवश्यकता नहीं है और वह दोषसिद्धि का एकमात्र आधार बन सकता है। 


इसके अलावा, वर्तमान मामले में, अभियोजन पक्ष का मामला केवल पीड़िता की गवाही पर आधारित नहीं है; बल्कि, यह अन्य गवाहों के बयानों और पुष्टिकारी चिकित्सा साक्ष्यों द्वारा पर्याप्त रूप से समर्थित है, जो सामूहिक रूप से अभियोजन पक्ष के मामले को स्थापित करते हैं।" 


इसके बाद, पीठ ने अपीलकर्ता की इस दलील पर विचार किया कि घटना के समय वह किशोर था। पीठ ने कहा कि गवाहों के बयानों और स्कूल रिकॉर्ड सहित प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर, उसकी जन्मतिथि 14 सितंबर, 1972 दर्शाई गई है और उसे सही माना गया है। अपराध के समय उसकी आयु के संबंध में निष्कर्ष अपराध की तिथि को 16 वर्ष 2 महीने और 3 दिन बताए गए हैं। 

पीठ ने कहा, "इसलिए, अपराध की तिथि पर अपीलकर्ता किशोर था।


पीठ ने कहा, "इसलिए, प्रासंगिक कारक यह है कि आरोपी को किशोर होने के नाते, अपराध की तिथि पर 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं करनी चाहिए थी, जो उसे 2000 अधिनियम के लाभ के लिए हकदार बनाता है।"


इस प्रकार, यह मानते हुए कि 2000 के अधिनियम में निहित प्रावधान लागू होंगे, पीठ ने अभियुक्त पर लगाई गई सज़ा को रद्द कर दिया। पीठ ने निष्कर्ष निकाला, "यह मामला 2000 के अधिनियम की धारा 15 और 16 के आलोक में उचित आदेश पारित करने के लिए बोर्ड को भेजा जाता है।" 


वाद शीर्षक: सुआ बनाम राजस्थान राज्य (तटस्थ उद्धरण: 2025 आईएनएससी 887)

August 19, 2025

झूठे वादे या धोखे से संबंध बनाना अपराध , धारा 69 BNS , धोखे से बनाए गए शारीरिक संबंध की सज़ा


झूठे वादे या धोखे से संबंध बनाना अपराध है । धारा 69 BNS , धोखे से बनाए गए शारीरिक संबंध की सज़ा #Advocate_Rahul_Goswami




⚖️ धारा 69 : धोखे से बनाए गए शारीरिक संबंध की सज़ा


यदि कोई पुरुष किसी महिला के साथ धोखे या झूठे वादे (जैसे शादी का वादा करने पर भी वास्तव में शादी का इरादा न होना) के आधार पर शारीरिक संबंध स्थापित करता है, और यह संबंध बलात्कार की परिभाषा में नहीं आता, तब भी इसे अपराध माना जाएगा।




⚖️ ✅ सज़ा

ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की कैद (साधारण या कठोर) और जुर्माना दोनों हो सकते हैं।




⚖️ स्पष्टीकरण (Explanation):


 धोखे के साधन” (Deceitful Means) में शामिल हैं:


● झूठा वादा करके शादी का विश्वास दिलाना।


● नौकरी देने या पदोन्नति का झूठा लालच देना।


● अपनी पहचान (Identity) छुपाकर शादी करना।




➡️ सारांश:

महिला को बहकाकर, धोखा देकर या झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाना कानूनन अपराध है, भले ही इसे "बलात्कार" की श्रेणी में न रखा जाए।

August 18, 2025

अधिकार का दुरुपयोग और धारा 68

 



समाज में जब किसी व्यक्ति को अधिकार या जिम्मेदारी दी जाती है, तो उससे अपेक्षा की जाती है कि वह उसका सही उपयोग करेगा। लेकिन जब यही अधिकार किसी महिला को बहलाने, फुसलाने या दबाव डालने के लिए इस्तेमाल होता है, तब कानून सख्त हो जाता है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 68 इसी स्थिति को संबोधित करती है।




⚖️ अधिकार का दुरुपयोग और धारा 68



“Whoever, being in a position of authority or in a fiduciary relationship…”


धारा 68 कहती है कि यदि कोई व्यक्ति—


● अधिकार या विश्वास की स्थिति में है,


● सरकारी कर्मचारी है,


● जेल, रिमांड होम, महिला/बाल गृह का अधीक्षक या कर्मचारी है,


● या अस्पताल का प्रबंधक/स्टाफ है,


 और वह अपने पद या विश्वास का दुरुपयोग कर किसी महिला को यौन संबंध के लिए प्रेरित करता है, तो यह अपराध है।


⚠️ बलात्कार से अलग स्थिति:

➡ यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि यह अपराध बलात्कार (Section 63, BNS) की श्रेणी में नहीं आता।

➡ यहाँ संबंध जबरदस्ती बलपूर्वक नहीं होता, बल्कि पद, अधिकार या भरोसे का गलत फायदा उठाकर बनाया जाता है।





⚖️ सज़ा और दंड



कानून इस अपराध को गंभीर मानता है और इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान है:


●  न्यूनतम 5 साल की कैद (सख्त कैद)


●  अधिकतम 10 साल तक की कैद


●  साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा।




⚖️ स्पष्टीकरण (Explanations)



1. यौन संबंध वही है जो धारा 63 में बताया गया है।


2. सहमति (consent) से जुड़ी व्याख्या भी धारा 63 से लागू होगी।


3. "Superintendent" का मतलब सिर्फ अधीक्षक नहीं, बल्कि कोई भी अधिकारी होगा जो नियंत्रण रखता हो।


4. "अस्पताल" और "महिला/बाल गृह" की परिभाषा धारा 64(2) से ली जाएगी।




⚖️ उदाहरण


● जेल का अधीक्षक महिला कैदी को दबाव डालकर यौन संबंध बनाता है।


● डॉक्टर इलाज के बहाने मरीज से संबंध स्थापित करता है।


●  यदि कोई शिक्षक अपने पद/विश्वास का दुरुपयोग करके किसी छात्रा को यौन संबंध बनाने के लिए बहलाता, फुसलाता या दबाव डालता है ।


●  सरकारी कर्मचारी अपनी पद-शक्ति का इस्तेमाल कर महिला को बहलाता है।

August 17, 2025

बलात्कार के दौरान महिला की मृत्यु या वेजिटेटिव स्टेट ! सज़ा क्या होगी

बलात्कार के दौरान महिला की मृत्यु या वेजिटेटिव स्टेट ! सज़ा क्या होगी



 

⚖️ धारा 66 BNS – बलात्कार के दौरान महिला की मृत्यु या वेजिटेटिव स्टेट


अगर कोई व्यक्ति धारा 64(1) या 64(2) के अंतर्गत बलात्कार करता है और उस अपराध के दौरान महिला को ऐसी चोट पहुँचाता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है, या महिला Persistent Vegetative State (यानी कोमा जैसी स्थिति जिसमें महिला लंबे समय तक बेहोश, निर्जीव अवस्था में रहती है और सामान्य जीवन जीने में असमर्थ हो जाती है) में चली जाती है, तो ऐसे अपराधी को –


● कम से कम 20 वर्ष की कठोर कारावास होगी,


● जो बढ़ाकर आजीवन कारावास (पूरी प्राकृतिक जीवन भर जेल में रहना) तक हो सकती है,


● या फिर मृत्युदंड (Death Penalty) भी दिया जा सकता है।







⚖️ धारा 67 BNS – पत्नी से जबरन यौन संबंध (पति-पत्नी का अलग रहना)


👉 अगर कोई पति अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाता है, जबकि पत्नी उससे अलग रह रही हो (चाहे न्यायालय के आदेश से अलग रह रही हो या अपने स्तर पर), और पत्नी की सहमति न हो, तो पति को –


● कम से कम 2 साल की सजा,


● जो बढ़ाकर 7 साल तक की कैद हो सकती है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।






⚖️ स्पष्टीकरण (Explanation):


इस धारा में “यौन संबंध (sexual intercourse)” का अर्थ वही है जो धारा 63 में बताया गया है ।





⚠️ 📝 सरल शब्दों में:
धारा 66: अगर बलात्कार से महिला की मौत हो जाए या वह हमेशा के लिए बेहोशी/असहाय अवस्था में चली जाए 
→ सजा = 20 साल से लेकर फाँसी तक।


धारा 67: अगर पति अलग रह रही पत्नी से उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाए 

→ सजा = 2 से 7 साल तक + जुर्माना।


August 17, 2025

"नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार करने वालों को – उम्रकैद या फिर फाँसी।”

  
"नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार करने वालों को  –  उम्रकैद या फिर फाँसी।”



देश में अपराध की सबसे वीभत्स घटनाओं में से एक है – नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार। यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि पूरी मानवता के लिए शर्मनाक कलंक है। इसी गंभीर समस्या से निपटने के लिए भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 65 बनाई गई है।


📝 इस प्रावधान में नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार के मामलों में कानून ने अत्यधिक कठोर दंड का प्रावधान किया है ताकि ऐसे अपराधों पर सख्ती से रोक लगाई जा सके।





    Section 65 (1) BNS    


● यदि कोई व्यक्ति 16 वर्ष से कम आयु की महिला/लड़की के साथ बलात्कार करता है,


● उसे कम से कम 20 वर्ष का कठोर कारावास दिया जाएगा।


● यह सज़ा आजीवन कारावास तक बढ़ाई जा सकती है ( "आजीवन कारावास" का अर्थ है – उस व्यक्ति के जीवन की शेष प्राकृतिक आयु तक जेल में रहना।)


● साथ ही अपराधी को जुर्माने (fine) से भी दंडित किया जाएगा।


● यह जुर्माना पीड़िता के चिकित्सकीय खर्च व पुनर्वास (rehabilitation) के लिए न्यायसंगत और उचित होना चाहिए।


● यह जुर्माना सीधे पीड़िता को दिया जाएगा।






   विशेष परिस्थितियों में बलात्कार की सज़ा   

   Section 65 (2) BNS     


● यदि कोई व्यक्ति 12 वर्ष से कम आयु की महिला/लड़की के साथ बलात्कार करता है,


● उसे कम से कम 20 वर्ष का कठोर कारावास दिया जाएगा।


● यह सज़ा आजीवन कारावास (प्राकृतिक जीवन की शेष अवधि तक) या फिर मृत्युदंड तक हो सकती है।


● साथ ही अपराधी पर जुर्माना भी लगाया जाएगा।


● यह जुर्माना भी पीड़िता के चिकित्सा खर्च और पुनर्वास के लिए होना चाहिए।


● यह जुर्माना सीधे पीड़िता को ही दिया जाएगा।




⚖️ सरल शब्दों में समझें:


यदि पीड़िता 16 साल से कम है → सज़ा = 20 साल से लेकर उम्रकैद तक + जुर्माना (जो पीड़िता को मिलेगा)।


यदि पीड़िता 12 साल से कम है → सज़ा = 20 साल से लेकर उम्रकैद या मृत्युदंड तक + जुर्माना (जो पीड़िता को मिलेगा)।



August 15, 2025

बलात्कार के मामलों में सज़ा ! अधिकार और पद का दुरुपयोग करने वालों के लिए प्राकृतिक जीवनकाल तक की कैद

 

बलात्कार के मामलों में सज़ा ! अधिकार और पद का दुरुपयोग करने वालों के लिए प्राकृतिक जीवनकाल तक की कैद


  बलात्कार मामलों में सज़ा:    BNS की धारा 64 में आजीवन कारावास तक का प्रावधान


📜  महिलाओं के खिलाफ होने वाले गंभीर अपराधों पर सख़्त कार्रवाई के लिए भारतीय न्याय संहिता, 2023 में धारा 64 जोड़ी गई है। यह धारा बलात्कार के मामलों में सज़ा का प्रावधान करती है, जिसमें अपराध की प्रकृति के आधार पर कम से कम 10 साल का कठोर कारावास और अधिकतम प्राकृतिक जीवनकाल तक की कैद दी जा सकती है। साथ ही, दोषी को जुर्माना भी भरना होगा।




⚖️ साधारण मामलों में सज़ा


धारा 64(1) के तहत, यदि कोई व्यक्ति बलात्कार करता है और वह मामला विशेष श्रेणियों में नहीं आता, तो उसे 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा और जुर्माना हो सकता है।





⚖️ विशेष परिस्थितियों में और सख़्ती


धारा 64(2) में उन परिस्थितियों का उल्लेख है जहाँ अपराध और भी गंभीर माना जाएगा। इनमें शामिल हैं:


● पुलिस अधिकारी द्वारा थाने के परिसर में या हिरासत में बलात्कार


● लोक सेवक द्वारा अपनी हिरासत में महिला के साथ बलात्कार


● सशस्त्र बल का सदस्य सरकार द्वारा तैनात क्षेत्र में बलात्कार करे


● जेल, रिमांड होम, महिला/बाल संस्था के कर्मचारी या प्रबंधन द्वारा बलात्कार


● अस्पताल के स्टाफ या प्रबंधन द्वारा बलात्कार


● रिश्तेदार, अभिभावक, शिक्षक या विश्वास/अधिकार की स्थिति का दुरुपयोग


● गर्भवती महिला, मानसिक/शारीरिक रूप से अक्षम महिला या हिंसा के दौरान बलात्कार


● बलात्कार के दौरान गंभीर चोट, अंग-भंग, चेहरा बिगाड़ना या जान को खतरा


● एक ही महिला के साथ बार-बार बलात्कार


📜 इन मामलों में सज़ा कम से कम 10 साल और अधिकतम दोषी के जीवनकाल तक की कैद होगी, साथ में जुर्माना भी।




⚖️ उद्देश्य


📜 यह धारा अपराधियों पर सख़्त संदेश देती है कि बलात्कार, खासकर पद और अधिकार का दुरुपयोग कर किए गए अपराध, बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।




📝 निष्कर्ष (Conclusion):

धारा 64 का उद्देश्य महिलाओं की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। सरकार और न्यायपालिका का मानना है कि कड़ी सज़ा से ऐसे अपराधों पर रोक लगाने में मदद मिलेगी।

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