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August 30, 2025

तीसरी पीढ़ी को मिली संपत्ति – पूर्वजीय संपत्ति मानी जाएगी या नहीं? Advocate Rahul Goswami


तीसरी पीढ़ी को मिली संपत्ति – पूर्वजों की मानी जाएगी या नहीं? Advocate Rahul Goswami Gonda


 पूर्वजीय (Ancestral) संपत्ति के महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु ।
 हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, 2005 संशोधन 



क्या दादा की संपत्ति पिता को मिली, लेकिन परदादा के समय में संपत्ति बंट चुकी थी। ऐसे में, क्या दादा की संपत्ति पूर्वजीय (Ancestral) मानी जाएगी या स्वअर्जित (Self-acquired)?



⚖️ मुख्य कानूनी सिद्धांत


(A) पूर्वजीय संपत्ति (Ancestral Property)


अगर कोई संपत्ति पूर्वजों से मिली है और चार पीढ़ियों तक बंटवारा नहीं हुआ है, तो वह पूर्वजीय संपत्ति मानी जाती है।


इस संपत्ति में जन्मसिद्ध अधिकार होता है — बेटा और बेटी दोनों के लिए।



(B) स्वअर्जित संपत्ति (Self-acquired Property)


अगर किसी भी समय कानूनी बंटवारा हो गया, तो उस बंटवारे के बाद जो हिस्सा किसी को मिला, वह स्वअर्जित संपत्ति बन जाता है।


उस हिस्से में बच्चों को जन्म से कोई अधिकार नहीं मिलता।


उस व्यक्ति को पूर्ण स्वतंत्रता होती है कि वह अपनी संपत्ति को बेच सकता है, दान कर सकता है, या वसीयत के जरिए किसी को भी दे सकता है।



 

⚖️ उदाहरण के अनुसार स्थिति


Case 1परदादा के समय बंटवारा हो गया था


परदादा की संपत्ति, मान लीजिए 20 एकड़ थी। परदादा के 2 बेटे थे: दादा और दादा के भाई। परदादा की मृत्यु के समय कानूनी रूप से बंटवारा हो गया और दादा को 10 एकड़ जमीन मिल गई।



इस स्थिति में:


● दादा की 10 एकड़ जमीन स्वअर्जित संपत्ति मानी जाएगी।


● कारण: परदादा की मृत्यु के समय कानूनी बंटवारा हो चुका है।


● इस 10 एकड़ जमीन पर दादा के बेटों या पोतों को जन्म से कोई अधिकार नहीं होगा।


● दादा अपनी 10 एकड़ जमीन को अपनी मर्जी से बेच, दान, या वसीयत कर सकते हैं।



Case 2 परदादा के समय बंटवारा नहीं हुआ था


अगर परदादा की 20 एकड़ जमीन पर कोई बंटवारा नहीं हुआ था। परदादा की मृत्यु के बाद दादा और दादा के भाई संयुक्त रूप से मालिक बने रहे। यह जमीन दादा से पिता, और पिता से बेटे तक बिना बंटवारे के चलती रही।



इस स्थिति में:


● यह जमीन पूर्वजीय संपत्ति मानी जाएगी।


● दादा, पिता, और पुत्र — तीनों coparceners हैं।


● इस जमीन में पुत्र और पुत्री को जन्म से ही समान अधिकार होगा।


● दादा अकेले अपनी मर्जी से पूरी जमीन बेच या दान नहीं कर सकते।



🏛 Supreme Court Judgement In Uttam v. Saubhag Singh, (2016) , "जब coparceners में कानूनी बंटवारा हो जाता है, तो प्रत्येक का हिस्सा उसकी स्वअर्जित संपत्ति बन जाता है।

June 14, 2025

उत्तराधिकार में पहले खरीदने का अधिकार क्या है?


🔷 हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 22 वरीयता का अधिकार (Preferential Right to Acquire Property)



📜 धारा 22 के प्रमुख प्रावधान 


1. यदि किसी हिंदू की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति के उत्तराधिकारी एक से अधिक हों और वे अविभाजित हिस्सों के मालिक हों (joint undivided interest),



2. और उनमें से कोई उत्तराधिकारी अपना हिस्सा किसी गैर-उत्तराधिकारी को बेचना चाहता हो,



3. तो अन्य सह-उत्तराधिकारियों को उस हिस्से को खरीदने का वरीयता (पहले खरीदने) का अधिकार होगा।



4. यदि सह-उत्तराधिकारी खरीदने को इच्छुक हों, पर मूल्य पर सहमति न बने —

तो वे न्यायालय में आवेदन कर सकते हैं, और न्यायालय उचित मूल्य निर्धारण कर उस हिस्से को उनके पक्ष में आदेशित कर सकता है।





🔎 Example 


राम की मृत्यु के बाद उसके तीन बच्चे – राहुल, सोनू और रीता – को ज़मीन में बराबर हिस्सेदारी मिली।

अब अगर रीता अपना हिस्सा किसी बाहर के व्यक्ति को बेचना चाहती है, तो राहुल और सोनू को यह हिस्सा पहले खरीदने का अधिकार मिलेगा।



📌 हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में   संशोधन का प्रभाव:

 

⚡बेटियों को पुत्रों के समान अधिकार देने के लिए वर्ष 2005 में धारा 6 में संशोधन किया गया था।


⚡ जिससे बेटियों को भी संयुक्त परिवार की सह-अधिकारिणी (coparcener) बना दिया गया।


⚡इसलिए अब बेटियों को भी धारा 22 के तहत वरीयता का अधिकार प्राप्त है।