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वकील और मुवक्किल के बीच गोपनीयता

 


वकील और मुवक्किल के बीच गोपनीयता: Attorney-Client Privilege क्या है?

कानून की दुनिया में मुवक्किल और वकील के बीच विश्वास एक मजबूत नींव है। इसी विश्वास को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण सिद्धांत अस्तित्व में है, जिसे कहते हैं – Attorney-Client Privilege यानी वकील-मुवक्किल गोपनीयता। यह सिद्धांत मुवक्किल को यह भरोसा देता है कि वह अपने वकील से बिना किसी डर या संकोच के सारी जानकारी साझा कर सकता है।


🔍 Attorney-Client Privilege का अर्थ


Attorney-Client Privilege एक ऐसा कानूनी अधिकार है, जो यह सुनिश्चित करता है कि:


 "कोई भी वकील अपने मुवक्किल द्वारा दी गई जानकारी को, जब तक वह अपराध से संबंधित न हो, किसी तीसरे पक्ष या अदालत में बिना मुवक्किल की अनुमति के उजागर नहीं कर सकता।"


यह गोपनीयता का अधिकार मुवक्किल को पूरी स्वतंत्रता देता है कि वह अपने वकील से सही सलाह लेने के लिए हर बात बिना झिझक साझा कर सके।



⚖️ भारतीय कानून में इसका प्रावधान


भारतीय विधि के अनुसार यह सिद्धांत Indian Evidence Act, 1872 की धारा 126 से 129 तक विस्तारित है:


📜 धारा 126 – वकील या मुंशी द्वारा प्राप्त गोपनीय जानकारी:


कोई वकील, मुंशी या उनका सहायक अपने मुवक्किल से प्राप्त कोई भी जानकारी तब तक उजागर नहीं कर सकता जब तक कि वह अपराध करने की योजना से संबंधित न हो।



📜 धारा 127 – सहायक कर्मियों पर भी लागू:


यह गोपनीयता का सिद्धांत वकील के लिपिक, सहायक या अनुवादक पर भी समान रूप से लागू होता है।



📜 धारा 128 – मुवक्किल की अनुमति:


यदि मुवक्किल स्वयं अनुमति देता है, तभी यह गोपनीयता हटाई जा सकती है।




📜 धारा 129 – मुवक्किल द्वारा खुलासा:


 मुवक्किल को भी अदालत में कोई ऐसा बयान देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जिससे उसके वकील से हुई बातचीत उजागर हो।




किन परिस्थितियों में Privilege लागू होता है?


1. वकील और मुवक्किल के बीच पेशेवर संबंध स्थापित होना चाहिए।



2. बातचीत का उद्देश्य कानूनी सलाह लेना होना चाहिए।



3. जानकारी गोपनीय रूप से साझा की गई हो।



किन परिस्थितियों में Privilege लागू नहीं होता?


मुवक्किल अपराध की योजना बना रहा हो यह नैतिक और कानूनी रूप से गलत है

जानकारी पहले से सार्वजनिक हो अब वह गोपनीय नहीं मानी जाएगी

मुवक्किल खुद गोपनीयता छोड़ दे तब वकील उसे उजागर कर सकता है



🧑‍⚖️ उदाहरण से समझिए:


मान लीजिए कोई व्यक्ति अपने वकील को बताता है कि उसने अतीत में कोई अपराध किया है और अब वह इसके लिए कानूनी सलाह चाहता है — तो यह बातचीत privileged communication मानी जाएगी।


लेकिन यदि वही व्यक्ति कहे कि वह आज रात अपराध करने वाला है और वकील से मदद मांगे, तो यह privilege के दायरे में नहीं आएगा।