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कोई व्यक्ति अपील करे और बदले में उसे और कठोर सजा मिल जाए, यह न्याय के खिलाफ है।

 


उच्च न्यायालय सजायाफ्ता की सजा स्वयं नहीं बढ़ा सकताअपीलकर्ता की स्थिति बदतर नहीं होनी चाहिए।"



📌 फैसले का संदर्भ:

सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में यह निर्णय दिया कि यदि कोई व्यक्ति अपनी सजा के खिलाफ अपील करता है, तो उच्च न्यायालय (High Court) उस व्यक्ति की सजा को बिना किसी याचिका या विशेष अनुरोध के स्वयं (suo motu) बढ़ा नहीं सकता।



⚖️ मुख्य तथ्य:


1. 🙋 मामला क्या था?

एक सजायाफ्ता अभियुक्त ने अपनी सजा कम कराने के लिए उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी।



2. ⚖️ हाईकोर्ट ने क्या किया?

हाईकोर्ट ने, बिना अभियोजन पक्ष (Prosecution) की याचिका के, उस व्यक्ति की सजा और अधिक बढ़ा दी।



3. 🧑‍⚖️ सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप:

सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत माना और कहा कि —


यह "principle of natural justice" (प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत) का उल्लंघन है।


कोई व्यक्ति अपील करे और बदले में उसे और कठोर सजा मिल जाए, यह न्याय के खिलाफ है।



🔎 कानूनी सिद्धांत (Legal Doctrine):


➡️ इसे “Doctrine of Reformation & Appeal Protection” कहा जाता है, जिसका मतलब: “Appeal should not result in worsening the appellant’s condition unless specifically sought by the opposite party.”




🔐 संविधानिक और विधिक महत्व:


यह निर्णय Article 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत आता है।


यह सुनिश्चित करता है कि अभियुक्त न्याय पाने के लिए अपील से डरें नहीं।