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"Not Speaking Order: न्यायिक प्रक्रिया या मनमानी?"




 "Not speaking order" , एक ऐसा न्यायिक आदेश (judicial order), जिसमें न्यायालय केवल अंतिम निर्णय बताता है लेकिन उसके पीछे का तर्क (reasoning) नहीं देता। यानी, इसमें यह नहीं बताया जाता कि कोर्ट ने वह निर्णय क्यों लिया।


अगर कोई अदालत कहती है: 

"The petition is dismissed."

लेकिन यह नहीं बताती कि याचिका को खारिज करने का कारण क्या है, तो इसे "Not Speaking Order" कहा जाएगा।


कानूनी महत्व:

भारतीय न्याय व्यवस्था में Speaking Order को ज़्यादा महत्व दिया जाता है क्योंकि:


🪄यह न्याय में पारदर्शिता (transparency) लाता है।


🪄ऊपरी अदालत में अपील करने में सहूलियत होती है।


🪄व्यक्ति को यह समझ में आता है कि उसके पक्ष में या खिलाफ फैसला क्यों हुआ।



Supreme Court का दृष्टिकोण:

Kranti Associates Pvt. Ltd. v. Masood Ahmed Khan (2010) 9 SCC 496


सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

 "Reason is the heartbeat of every conclusion."

Not speaking order से न केवल transparency प्रभावित होती है, बल्कि यह न्यायिक समीक्षा (judicial review) को भी कठिन बना देता है।



निष्कर्ष:

Not Speaking Order न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

ऐसा आदेश जिसमें कारणों का अभाव हो, वह मनमाना (arbitrary) माना जा सकता है और उसे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।