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विवाह विच्छेद के आधार / Grounds of Divorce



भारत में तलाक के विभिन्न आधार हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) की धारा 13 में दिए गए हैं। 


विवाह विच्छेद के आधार/ Grounds of Divorce –


1.       व्यभिचार (Adultery)      

पति या पत्नी में से कोई एक विवाहेतर संबंध बनाए तो यह तलाक का आधार हो सकता है।



Case - Joseph Shine v. Union of India (2018)



 सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 497 (व्यभिचार) को असंवैधानिक करार दिया। कोर्ट ने कहा कि यह धारा महिलाओं को पुरुष की “मालिकियत” मानती है, जो समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

प्रभाव: तलाक के मामलों में "व्यभिचार" अब अपराध नहीं रहा, लेकिन यह तलाक का दीवानी आधार बना रह सकता है।



2.    क्रूरता (Cruelty)      

शारीरिक या मानसिक रूप से अत्याचार करना – जैसे मारपीट, ताने देना, मानसिक तनाव देना आदि।



Case - Naveen Kohli v. Neelu Kohli (2006)



 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पति-पत्नी के बीच अत्यधिक तनाव और झगड़े हैं, और साथ रहना असंभव हो गया है, तो यह मानसिक क्रूरता मानी जाएगी।

कोर्ट की टिप्पणी:

"यदि विवाह केवल नाम का रह जाए और उसमें कोई भावनात्मक जुड़ाव न हो, तो उसे ज़बरदस्ती बनाए रखना न्याय नहीं है।"




3.          परित्याग (Desertion)   

पति या पत्नी बिना किसी वैध कारण के लगातार 2 वर्षों तक साथ नहीं रहता, तो यह तलाक का आधार हो सकता है।



Case- Shilpa Sailesh v. Varun Sreenivasan (2023)



 सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकार का प्रयोग करते हुए 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि को समाप्त कर सकता है, यदि पति-पत्नी लंबे समय से अलग रह रहे हैं और संबंधों में सुधार की कोई संभावना नहीं है।

महत्व: यह फैसला जल्दी न्याय दिलाने की दिशा में अहम कदम है।


4.    र्म परिवर्तन (Conversion)

अगर कोई पति या पत्नी अपना धर्म बदलकर किसी और धर्म को अपनाता है, तो दूसरा पक्ष तलाक मांग सकता है।




5. मानसिक विकृति (Mental Disorder)

यदि जीवनसाथी को गंभीर मानसिक बीमारी है जिससे सामान्य वैवाहिक जीवन संभव नहीं है।




6.     संक्रामक बीमारी (Virulent/Incurable Disease)    

जैसे कुष्ठ रोग (leprosy – अब हटाया गया है), संक्रामक रोग आदि।




7. सन्यास (Renunciation of the World)

यदि पति या पत्नी ने संन्यास ले लिया हो (धार्मिक जीवन अपना लिया हो), तो दूसरा पक्ष तलाक ले सकता है।




8. सात वर्षों की अनुपस्थिति (Presumption of Death)

यदि पति या पत्नी लगातार 7 वर्षों तक लापता हो और कोई जानकारी न हो, तो उसे मृत मानकर तलाक लिया जा सकता है।




9.  विवाह की सहमति के समय मानसिक असमर्थता

यदि विवाह के समय पति या पत्नी मानसिक रूप से अयोग्य था तो यह विवाह निरस्त भी किया जा सकता है या तलाक लिया जा सकता है।




10. पारस्परिक सहमति से तलाक (Mutual Consent Divorce)

पति और पत्नी दोनों अगर यह मानते हैं कि वे साथ नहीं रह सकते, तो कम से कम 1 वर्ष अलग रहने के बाद वे आपसी सहमति से तलाक ले सकते हैं। यह धारा 13B के अंतर्गत आता है।



Case- Amardeep Singh v. Harveen Kaur (2017)



निर्णय: कोर्ट ने कहा कि यदि पति-पत्नी के बीच मेल-मिलाप की कोई संभावना नहीं है, तो फैमिली कोर्ट 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि को माफ कर सकती है।