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बीएनएस धारा 333 क्या है?

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 बीएनएस धारा 333 क्या है?


भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 333 एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है, जो घर में अनधिकृत प्रवेश (House Trespass) के साथ-साथ चोट पहुंचाने, हमला करने, या गलत तरीके से रोकने की तैयारी करने वाले अपराध को दंडित करती है। यह धारा पहले की भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 452 का स्थान लेती है ।




333. Whoever commits house-trespass, having made preparation for causing hurt to any person or for assaulting any person, or for wrongfully restraining any person, or for putting any person in fear of hurt, or of assault, or of wrongful restraint, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine. Bare act



धारा 333 के तहत, यदि कोई व्यक्ति किसी के घर में बिना अनुमति प्रवेश करता है और उसने पहले से ही निम्नलिखित में से किसी एक की Planning की हो, तो वह इस धारा के तहत अपराधी माना जाएगा:



चोट पहुंचाने की मंशा (Hurt)।



हमला करने की मंशा ।



गलत तरीके से रोकने की मंशा (Wrongful Restraint)।किसी को चोट, हमले, या गलत रोक के भय में डालने की मंशा।




धारा 333 के आवश्यक तत्व 


इस धारा के तहत अपराध साबित करने के लिए निम्नलिखित तत्व मौजूद होने चाहिए:



अनधिकृत प्रवेश: व्यक्ति ने बिना अनुमति किसी के घर या निजी संपत्ति में प्रवेश किया हो।



पूर्व तैयारी: प्रवेश करने से पहले अपराधी ने चोट पहुंचाने, हमला करने, या गलत तरीके से रोकने की योजना बनाई हो या इसके लिए साधन (जैसे हथियार) साथ लाया हो।



मंशा: अपराधी का इरादा घर के निवासियों को नुकसान पहुंचाने, डराने, या उनकी स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने का हो।




सजा (Punishment)धारा 333 के तहत अपराध के लिए निम्नलिखित दंड का प्रावधान है:


🪄कारावास: अधिकतम 7 वर्ष तक की सजा (साधारण या कठोर कारावास)।


🪄जुर्माना: अदालत द्वारा अपराध की गंभीरता के आधार पर तय किया गया आर्थिक दंड।


🪄सजा की अवधि अपराध की गंभीरता, अपराधी की मंशा, और इस्तेमाल किए गए साधनों (जैसे हथियार) पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, घातक हथियार के साथ प्रवेश करने पर अधिकतम सजा दी जा सकती है।



 कानूनी विशेषताएं 


संज्ञेय अपराध (Cognizable): पुलिस बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के FIR दर्ज कर सकती है और आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है।


गैर-जमानती (Non-Bailable): जमानत का अधिकार स्वतः नहीं है। जमानत के लिए अदालत में अपील करनी पड़ती है, जहां जज अपराध की गंभीरता और आरोपी के व्यवहार को देखकर फैसला लेते हैं।


गैर-समझौता योग्य (Non-Compoundable): इस अपराध में पीड़ित और आरोपी के बीच समझौता नहीं हो सकता। मामले का फैसला केवल अदालत ही कर सकती है।




 जमानत (Bail) 


यह अपराध गैर-जमानती है,  हालांकि, निम्नलिखित परिस्थितियों में जमानत मिल सकती है:

⚡यदि अपराध का व्यवहार कम गंभीर हो।

⚡यदि आरोपी को झूठे मामले में फंसाया गया हो।

⚡यदि आरोपी का आपराधिक इतिहास न हो।