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ललिता कुमारी बनाम सरकार उत्तर प्रदेश

 






 संज्ञेय (Cognizable) अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस के लिए एफआईआर (FIR) दर्ज करना अनिवार्य है।   Lalita Kumari v. State of U.P., (2013) 6 SCC 384 



 सुप्रीम कोर्ट ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2013) के मामले में स्पष्ट और सख्त निर्देश दिए 


मुख्य बिंदु – 

1. धारा 154 CrPC (173 BNSS) के तहत अगर किसी संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को मिलती है, तो एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है।



2. पुलिस को एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच (preliminary inquiry) करने की जरूरत केवल कुछ खास मामलों में ही है, जैसे:


👉पारिवारिक विवाद (जैसे दहेज उत्पीड़न)


👉व्यापारिक लेन-देन


👉डॉक्टरों के खिलाफ लापरवाही के मामले


👉देरी से की गई शिकायतें, आदि।




3. यदि पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करती, तो पीड़ित धारा 156(3) CrPC (173 (4) BNSS) के तहत मजिस्ट्रेट से शिकायत कर सकता है।



प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराते समय पीड़ित को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:


1. घटना का सटीक विवरण दें –

घटना कब, कहां, कैसे और किसके द्वारा की गई, इसका स्पष्ट और क्रमवार विवरण दें। अनुमान और अफवाहों से बचें।



2. साक्ष्यों का उल्लेख करें –

यदि आपके पास कोई सबूत (जैसे – वीडियो, फोटो, दस्तावेज, गवाहों के नाम) हैं तो उनका स्पष्ट उल्लेख करें।



3. आरोपी की जानकारी –

यदि आरोपी की पहचान हो तो उसका नाम, पता, हुलिया आदि बताएं। यदि नहीं जानते तो संदेह के आधार पर जानकारी दें, लेकिन सावधानीपूर्वक।



4. अपने विवरण की सत्यता की पुष्टि करें –

FIR में दी गई जानकारी आपके अपने ज्ञान और विश्वास के अनुसार सत्य होनी चाहिए। झूठी FIR दर्ज कराना अपराध है (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 की धारा 221 के अंतर्गत)।



5. भाषा का ध्यान रखें –

स्पष्ट, संयमित और सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करें। असंवैधानिक या अपमानजनक भाषा से बचें।



6. प्राप्ति रसीद लेना न भूलें –

FIR दर्ज होने के बाद उसकी कॉपी या प्राप्ति रसीद (जिसमें FIR नंबर लिखा हो) अवश्य लें। यह आपका कानूनी अधिकार है (धारा 154, CrPC  / BNSS की धारा 173  के तहत)।



7. मेडिकल जांच की मांग करें (यदि आवश्यक हो) –

यदि पीड़ित पर शारीरिक हमला या यौन अपराध हुआ है तो मेडिकल परीक्षण की मांग करें ताकि सबूत संरक्षित किए जा सकें।



8. FIR की एक प्रति निशुल्क प्राप्त करें –

पीड़ित को FIR की एक प्रति बिना किसी शुल्क के मिलनी चाहिए। यदि पुलिस मना करे तो आप वरिष्ठ अधिकारी से शिकायत कर सकते हैं।



9. किसी दबाव में न आएं –

पुलिस या अन्य किसी व्यक्ति के दबाव में आकर FIR में कोई बदलाव न करें और ना ही घटना को हल्का बताएं।



10. FIR दर्ज करने से इनकार हो तो क्या करें –

अगर पुलिस FIR दर्ज नहीं कर रही है, तो आप संबंधित पुलिस अधीक्षक (SP) को लिखित रूप में शिकायत कर सकते हैं या ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से रिपोर्ट दर्ज करा सकते हैं।



 BNSS की धारा 173  

1. संज्ञेय अपराध की सूचना (Cognizable Offence) मिलने पर पुलिस अधिकारी को लिखित रूप में FIR दर्ज करनी होगी।


2. यदि पीड़ित महिला है, तो महिला पुलिस अधिकारी द्वारा बयान लिया जाना चाहिए।


3. FIR दर्ज न करने पर, वरीय पुलिस अधिकारी से शिकायत की जा सकती है।


4. पीड़ित को FIR की एक निशुल्क प्रति दी जानी चाहिए।



अतिरिक्त बदलाव (BNSS के अनुसार):

🪄अब FIR को ऑनलाइन या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दर्ज करने की भी अनुमति दी गई है।

🪄पीड़ित की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग भी प्रक्रिया का हिस्सा बन सकती है, खासकर संवेदनशील मामलों में।


Online FIR दर्ज करने की सामान्य प्रक्रिया:

1. राज्य की पुलिस वेबसाइट खोलें
 आप उत्तर प्रदेश में हैं, तो वेबसाइट होगी:
https://uppolice.gov.in



2. "Citizen Services" या "Online FIR" विकल्प पर क्लिक करें


3. "Register FIR" या "Lodge Complaint" चुनें


4. FIR फॉर्म भरें

आपको ये जानकारी भरनी होगी:

👉 आपका नाम और पता

👉 मोबाइल नंबर / Email

👉 घटना की तिथि, समय और स्थान

👉 घटना का विवरण

👉 आरोपी की जानकारी (यदि उपलब्ध हो)



5. साक्ष्य अपलोड करें (यदि कोई हो)
जैसे फोटो, वीडियो, दस्तावेज़ आदि


6. Submit बटन दबाएं


7. Acknowledgement / FIR नंबर प्राप्त करें
एक Reference Number या FIR ID मिलेगी, जिसे भविष्य के लिए सुरक्षित रखें।